सम्पादकीय

रंगनाथ सिंह का ब्लॉग: मैं आमिर खान की 'लाल सिंह चड्ढा' नहीं देखूँगा क्योंकि....

Rani Sahu
12 Aug 2022 3:32 PM GMT
रंगनाथ सिंह का ब्लॉग: मैं आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा नहीं देखूँगा क्योंकि....
x
हिन्दी में पैदा हुआ बहुत सारा साहित्य और सिनेमा इस पूर्वाग्रह पर टिका है कि पाठक या दर्शक अंग्रेजी नहीं जानता
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
हिन्दी में पैदा हुआ बहुत सारा साहित्य और सिनेमा इस पूर्वाग्रह पर टिका है कि पाठक या दर्शक अंग्रेजी नहीं जानता। उसे ले-देकर किसी एक स्थानीय भाषा का ज्ञान है। अंग्रेजी में बनी फिल्मों और किताबों तक उसकी पहुँच नहीं है। हिन्दी फिल्मों के बड़े-बड़े नाम धड़ल्ले से विदेशी फिल्मों को कॉपी-पेस्ट करके करोड़ों कमाते रहे हैं। नया फर्क यह आ गया है कि लोग रीमेक के अधिकार खरीदने को मजबूर हो रहे हैं क्योंकि इंटरनेट ने बौद्धिक चोरी पकड़ना काफी आसान बना दिया है।
दूसरा बड़ा बदलाव यह हुआ कि हॉलीवुड के कुछ बड़े प्रोड्यूसरों ने भारत के बड़े बाजार को ध्यान में रखकर यहाँ भी अपनी ब्रांच खोलनी शुरू कर दी है जिससे स्थानीय कारस्तानियों पर नजर रखना आसान हो गया है। इस कारण भी कुछ लोगों को रीमेक का राइट लेने पड़ा रहा है।
यह कोई छिपी बात नहीं है कि मौजूदा हिन्दी सिनेमा का एक हिस्सा अपने कंटेंट और फॉर्म दोनों में भौंड़ी नकल भर है। नकल करने वालों में भी तीन वर्ग हैं। एक जो हॉलीवुड की नकल करने को श्रेय समझते हैं। दूसरे जो यूरोपीय सिनेमा की नकल करने को मौलिकता समझते हैं। तीसरे महेश भट्ट सदृश बेगैरत नकलची।
बहुत से लोग आमिर खान द्वारा साल 2015 में दिए बयान के कारण 'लाल सिंह चड्ढा' का विरोध कर रहे हैं। देश के तत्कालीन माहौल से जुड़े एक सवाल पर आमिर ने कहा था कि 'मेरी पत्नी किरण कह रही थीं कि क्या हमें देश छोड़ देना चाहिए?' आमिर का वह विवादित बयान मुझे भी पसन्द नहीं आया था लेकिन इरफान के जाने के बाद बचे हुए खान में फिलहाल वही मेरे पसन्दीदा अभिनेता हैं इसलिए उनकी फिल्म का किसी राजनीतिक बयान के कारण विरोध करने का समर्थन नहीं कर सकता फिर भी मैं लाल सिंह चड्ढा का रीबूक संस्करण नहीं देखूँगा। आमिर ही नहीं अनुराग कश्यप द्वारा बनायी जा रही स्पैनिश फिल्म का रीबूक संस्करण भी नहीं देखूँगा। देखना होगा तो स्पैनिश ओरिजनल देखूँगा। वैसे भी फॉरेस्ट गम्प मेरी आल-टाइम-फेवरेट फिल्मों में रही है तो उसकी दुर्गति होते देख ज्यादा दुख होगा। जिन्हें अंग्रेजी से दिक्कत हो उनको मेरी सलाह होगी कि वो हॉलीवुड क्लासिक के हिन्दी डब संस्करण देखें तभी उन्हीं ओरिजनल फिल्म का सही आनन्द मिल सकेगा।
जो भी दर्शक अंग्रेजी फिल्में, अन्य विदेशी भाषाओं से अंग्रेजी या हिन्दी में डब फिल्में देख सकते हैं, उनको 'रीबॉक नहीं तो रीबूक' सही वाले फलसफे से परहेज करना चाहिए। भारत जैसे कथा-पुराण वाले देश में जिन्हें कहने के लिए कहानियाँ नहीं मिल रही हैं और वो दूसरों देशों से कहानी लाकर उसका सस्ता संस्करण भारतीय बाजार में बेच रहे हैं, उनसे मेरी जरा भी सहानुभूति नहीं है। मैं मुतमईन हूँ कि वो मेरे जैसे लोगों के लिए फिल्म नहीं बना रहे।
फिल्म ही नहीं हिन्दी वेबसीरीज पर भी यही बात लागू होती है। जो अंग्रेजी अफोर्ड कर सकते हैं उनके लिए यही बेहतर है कि सैक्रिड गेम्स और मिर्जापुर जैसे कैम्पस ब्राण्ड से बेहतर है नारकोज और मनी हाइस्ट जैसे रीबॉक ब्राण्ड देखें। अमीर-गरीब सबके पास एक दिन में 24 घण्टे ही होते हैं। सबकुछ देखना, हम अफोर्ड नहीं कर सकते।
मैंने ऊपर जो कहा है उसका सबसे बड़ा लाभ आपको आखिर में बता रहा हूँ। आप हिन्दी सिनेमा और वेबसीरीज को जितना भला-बुरा कहेंगे, जितना घटिया बताएँगे मौजूदा बॉलीवुड के बौद्धिकों में आपकी उतनी इज्जत बढ़ेगी, बशर्ते आप अंग्रेजी में गरियाएँ। हिन्दी सिनेमा को अंग्रेजी में कोसकर कई लोग हिन्दी फिल्मकार और विशेषज्ञ बन गए। हिन्दी में टोकेंगे तो बॉलीवुड के थानेदार आपसे नाराज भी हो सकते हैं क्योंकि वो जिस हिन्दी भाषा में फिल्म बनाकर करोड़पति-अरबपति बनते हैं उसी भाषा को दोयम दर्जे का समझने की मानसिक बीमारी से आज भी ग्रस्त हैं।
अतः मैं 'लाल सिंह चड्ढा' नहीं देखूँगा क्योंकि मैं फॉरेस्ट गम्प कई बार देख चुका हूँ।
आज इतना ही। शेष, फिर कभी।
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story