सम्पादकीय

अवसरों की सीमा

Subhi
16 March 2022 6:19 AM GMT
अवसरों की सीमा
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भारत में जितने डाक्टरों की जरूरत है, उतने मेडिकल कालेज यहां नहीं है। सरकारी और गैरसरकारी मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस की फीस इतनी है कि आम आदमी अपने बच्चों को डाक्टर बनाने के बारे में सोच भी नहीं सकता।

Written by जनसत्ता: भारत में जितने डाक्टरों की जरूरत है, उतने मेडिकल कालेज यहां नहीं है। सरकारी और गैरसरकारी मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस की फीस इतनी है कि आम आदमी अपने बच्चों को डाक्टर बनाने के बारे में सोच भी नहीं सकता। कम खर्च होने के कारण जो विद्यार्थी यूक्रेन या रूस में डाक्टरी करने जाते हैं, उनका स्तर भारतीय डाक्टरों के मुकाबले में बहुत नीचा होता है और जब वे पढ़ाई पूरी करके आते हैं तो उन्हें एक विशेष टेस्ट पास करना पड़ता है।

रूस और यूक्रेन में युद्ध की वजह से वहां फंसे विद्यार्थियों को जैसे-तैसे निकल कर देश वापस आने का मौका मिल सका। भविष्य में इस किस्म की समस्या को देखते हुए भारत सरकार को देश के भिन्न-भिन्न भागों में और ज्यादा मेडिकल कालेज तथा एम्स खोलकर उनमें एमबीबीएस की सीटें इतनी बढ़ा देनी चाहिए कि किसी विद्यार्थी को विदेश में न जाना पड़े और सरकारी तथा गैरसरकारी मेडिकल कालेजों में फीस कम कर देनी चाहिए।

हर रोज आगे बढ़ रहे दौर में ईमानदारी कहीं गुम-सी हो गई लगती है। ईमानदारी का रूप पहचानने वाले जरूर समझते होंगे कि पुरानी कथा-कहानियों में कितना महत्त्व दिया जाता था ईमानदारी को। आज के दौर में भ्रष्टाचार, गैरकानूनी, लूटपाट क्या-क्या नहीं देखने को मिलते। लेकिन इस सबके बीच ईमानदारी का कहीं नामों निशान नहीं दिखता। कभी-कभार कोई उदाहरण आता भी है तो वह अपवाद जैसा लगता है। सवाल है कि आखिर व्यक्ति और समाज के स्तर पर यह गिरावट कैसे और क्यों आई?


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