सम्पादकीय

विद्वेष का दायरा

Subhi
4 Jan 2022 2:44 AM GMT
विद्वेष का दायरा
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कई बार किसी अपराध की प्रकृति ऐसी होती है, जिसके जिम्मेदार लोगों को तो कानून के कठघरे लाया जा सकता है,

कई बार किसी अपराध की प्रकृति ऐसी होती है, जिसके जिम्मेदार लोगों को तो कानून के कठघरे लाया जा सकता है, लेकिन उससे सामाजिकता की व्यापक छवि को जो नुकसान पहुंचता है, उसकी भरपाई आसान नहीं होती। इंटरनेट के विस्तार के साथ-साथ इसकी उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके समांतर साइबर दुरुपयोग के जितने स्तर सामने आ रहे हैं, वे अपराधों का एक नया संजाल खड़ा कर रहे हैं।

आनलाइन ठगी से लेकर साइबर अपराधों के कई स्वरूपों ने पहले ही कई चुनौतियां खड़ी की हैं, अब पिछले कुछ समय से एक खास समुदाय की महिलाओं को निशाना बना कर जैसी हरकतें की जा रही हैं, वे बेहद गंभीर हैं। एक रिपोजेटरी होस्टिंग सेवा 'गिटहब' पर बनाए गए 'बुली बाई' नामक विवादास्पद ऐप के जरिए मुसलिम महिलाओं की तस्वीरों का जैसा बेजा और आपत्तिजनक इस्तेमाल किया गया, उससे यह साफ है कि इस तरह की गतिविधियों के पीछे केवल कुछ सिरफिरे लोगों की अराजकता नहीं है, बल्कि यह बदनामी और भय पैदा करने की सुनियोजित और संगठित कोशिश है।
इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि जिस दौर में साइबर अपराधों से निपटने के मामले में पुलिस महकमा अक्सर बढ़-चढ़ कर दावे करता रहता है, इसी बीच पिछले साल भर के भीतर एक तरह की यह दूसरी कोशिश सामने आई है। गौरतलब है कि पिछले साल 'गिटहब' पर ही 'सुल्ली डील्स' नाम से एक ऐप बना कर मुसलिम महिलाओं की तस्वीरें डाल कर इसी तरह उनकी खरीद-बिक्री की बात की गई थी। तब इसके खिलाफ पुलिस ने शिकायत भी दर्ज की थी, मगर कार्रवाई के मामले में बरती गई उदासीनता का ही यह नतीजा है कि अब फिर कुछ असामाजिक तत्त्वों ने महिलाओं को अपमानित और प्रताड़ित करने की दोबारा कोशिश की।
इस बार मामले के तूल पकड़ने के बाद पुलिस ने थोड़ी सक्रियता बरती है और 'गिटहब' ने ऐप को हटा दिया है, मगर इस तरह के औपचारिक उपायों से शायद ही ऐसी हरकतों पर रोक लगाई जा सके। इंटरनेट की दुनिया जितनी विस्तृत है, उसमें साइबर अपराध में लगे लोग हर कुछ समय बाद विकल्प निकाल लेते हैं। सवाल है कि सोशल मीडिया पर किसी बात पर उपजे विवाद के बाद मूल रूप से अवांछित टिप्पणी करने वाले किसी व्यक्ति को खोज निकालने वाली पुलिस 'बुली बाई' या 'सुल्ली डील्स' जैसे अपराधों को अंजाम देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का उदाहरण क्यों पेश नहीं करती!
इस मामले में एक पहलू यह है कि किसी ऐप के जरिए महिलाओं को अपमानित करने जैसे अपराधों के पीछे जो प्रवृत्ति काम करती है, वह एक जटिल समस्या है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि समुदाय विशेष की महिलाओं को निशाना बना कर उन्हें अपमानित करने, उनका भयादोहन करने के पीछे मुख्य रूप से सांप्रदायिक नफरत की भावना काम करती है।
इससे एक पूरे समुदाय और खासकर महिलाओं के भीतर अपनी स्थिति को लेकर कैसी भावना पैदा होती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसी हरकतों से चौतरफा नुकसान के सिवा और क्या हासिल होगा! सच यह है कि इस तरह का अपराध करने वाले लोग न्यूनतम मानवीय संवेदनाओं से भी दूर होते हैं। प्रथम दृष्टया इनके निशाने पर किसी खास समुदाय की महिलाएं हो सकती हैं, लेकिन आखिरकार ये सभी महिलाओं के खिलाफ कुंठा से भरे होते हैं। साइबर संसार के विस्तृत होते दायरे में ऐसे अपराधियों की गतिविधियों पर तत्काल लगाम नहीं लगाई गई तो आने वाले वक्त में डिजिटल दुनिया को लेकर एक खास तरह का असुरक्षाबोध जोर पकड़ेगा।

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