सम्पादकीय

अभिव्यक्ति की सीमा

Subhi
7 July 2022 5:30 AM GMT
अभिव्यक्ति की सीमा
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भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में अभियक्ति की आजादी के लिए सोशल मीडिया एक मजबूत स्तंभ के रूप में सामने आया है। इसने समाज में अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को मुख्यधारा से जुड़ने का एक आसान अवसर प्रदान किया है।

Written by जनसत्ता: भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में अभियक्ति की आजादी के लिए सोशल मीडिया एक मजबूत स्तंभ के रूप में सामने आया है। इसने समाज में अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को मुख्यधारा से जुड़ने का एक आसान अवसर प्रदान किया है। संखात्मक दृष्टिकोण से देखें तो भारत में तकरीबन 400 मिलियन लोग सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं और वे औसतन ढाई घंटे प्रतिदिन सोशल मीडिया पर बिताते हैं। लेकिन सोशल मीडिया आए दिन दुरुपयोग के कारण चर्चा में बना रहता है।

दरअसल, यह एक दोधारी तलवार के रूप में दिखता है। बेशक इसके अनेक सकारात्मक उपयोग है। मसलन, हम देखते हैं कि इसने विश्व को एक संचार व्यवस्था के माध्यम से आपस में जोड़ा है, अनेक लोगों की आवाज बन कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा है। इससे लोगो को रोजमर्रा की सूचनाएं प्राप्त करने में आसानी हुई है। सबसे बड़ी बात कि इसने आम नागरिकों के बीच सूचनाओं को बड़ी आसानी से प्रसारित किया हैं।

लेकिन वर्तमान में यह एक जटिल समस्या भी बन रहा है, क्योंकि कई स्तरों पर आजकल इसका प्रयोग सामाजिक समरसता को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने के लिए भी किया जाने लगा है। ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किए जाने के अलावा आजादी के सूत्रधार रहे नेताओं के बारे में भी गलत जानकारी बड़े स्तर पर साझा किए जाने के अनुचित प्रयास भी देखने को मिलते रहते हैं।

दरअसल, कुछ लोगों या उनके समूह द्वारा अपने विद्वेष से भरे विचारों को प्रसारित करने का एक आसान-सा मंच सोशल मीडिया के माध्यम से उपलब्ध हो जाता है और इसी का प्रयोग वे अपने मन-मुताबिक करते हैं। किसी राजनीतिक नेता की छवि खराब करनी हो या महिलाओं के संदर्भ में कुछ यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं, जो उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करती हैं और समाज में छवि खराब करने के रूप में प्रयोग की जाती हैं, ऐसी अनेक घटनाएं सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित कर दी जाती हैं।


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