सम्पादकीय

बदले की भावना से पुलिस का बेतरतीब इस्तेमाल भारतीय संघवाद की भावना को नष्ट कर देगी

Gulabi Jagat
28 April 2022 8:50 AM GMT
Random use of police in retaliation will destroy the spirit of Indian federalism
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महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार 2019 के अंत में सत्ता में आने के बाद से ही अपने असहिष्णु व्यवहार का प्रदर्शन करती नजर आ रही है
अजय झा |
अप्रैल महीने से देश में चिलचिलाती गर्मी शुरू हो जाती है. हालांकि अप्रैल 2022 एक अलग तरह की गर्मी के लिए याद रखा जाएगा जो असहिष्णु राजनेताओं और अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहने वाले पुलिस बलों द्वारा पैदा हुई. तीन निर्वाचित प्रतिनिधियों की गिरफ्तारी और एक पूर्व-राजनेता को नोटिस, शासकों के बढ़े हुए अहंकार को जाहिर करता है और भारत में प्रतिस्पर्धी पुलिसिंग पर सवाल उठाता है. क्या भारत एक पुलिस राज्य बनने की ओर बढ़ रहा है?
यह सब 2014 में शुरू हुआ जब नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) भारत के प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए. 2001 के गुजरात सांप्रदायिक दंगों (Gujarat Communal Riots) के बाद जिनकी छवि एक हिंदू पोस्टर बॉय के रूप में उभरी थी. 2014 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मिले बड़े जनादेश को हिंदुत्व के जनादेश के रूप में समझने की गलती की गई थी, जबकि सच यह है कि मोदी की छवि एक विकासोन्मुख नेता की थी जो उन्होंने 13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर काम करके बनाई थी जिसकी वजह से ही उन्हें वोट मिला. 2004 और 2014 के बीच जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी, उस पर लगे कई घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों ने भी बीजेपी की इस अभूतपूर्व जीत में बड़ा योगदान दिया. भारत ने तीन दशकों बाद किसी एक पार्टी को अपना बहुमत दिया था.
बीजेपी और अधिक सीटों के साथ इस बार सत्ता में आई
दक्षिणपंथी लंबे समय से बीजेपी सरकार का इंतजार कर रहे थे क्योंकि उन्हें अपने हिंदू समर्थक एजेंडे को आगे बढ़ाना था. उन्होंने हर उस शख्स को निशाना बनाना शुरू कर दिया जिसने उनके रास्ते में आने की हिम्मत की और मोदी सरकार ने या तो उनसे सहानुभूति व्यक्त की या कहें उन्हें नाराज न करने की इच्छा से अपनी आंखें बंद कर लीं. 2019 में बीजेपी की लगातार दूसरी जीत पाकिस्तान प्रायोजित उग्रवादियों और उसके बाद पाकिस्तान के भीतर आतंकवादियों के प्रशिक्षण केंद्रों पर सर्जिकल स्ट्राइक की वजह से हुई जिसने चुनावों से ठीक पहले देश में राष्ट्रवादी माहौल बना दिया था. बीजेपी और अधिक सीटों के साथ इस बार सत्ता में आई. और संभवत: बीजेपी के लिए अपने मूल एजेंडे को लागू करने का समय आ गया था जिसे अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 और 2004 तक भारत पर शासन करने के दौरान गठबंधन की सरकार होने की वजह से पीछे छोड़ दिया था.
पिछले कुछ सालों में विभिन्न राज्यों में राजनेताओं की एक नई नस्ल उभरी है. ये लोग अपने अहंकार, हठ और असहिष्णुता के चलते उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को तुरंत भूल जाते हैं जिसकी वजह से उन्हें यह कुर्सी मिली. उन्हें लगता है कि उन्हें चुनौती देने वाले की सही जगह जेल में है. इन सभी राज्यों का आज्ञाकारी पुलिस बल भी उनके अहंकार को और बढ़ाने के लिए तैयार है. शुरुआत में उनका विरोध करने वालों या उनसे सवाल करने वालों पर मानहानि का मुकदमा चलाया जाएगा जहां अदालत में यह साबित करने की जिम्मेदारी शिकायतकर्ता पर है कि किसी ने जानबूझकर उनकी छवि खराब करने की कोशिश की है.
हालांकि पिछले कुछ सालों में मानहानि के मुकदमों की संख्या में भारी कमी आई है क्योंकि शायद ही कभी किसी को ऐसे मामलों में सजा दी गई हो. मानहानि के मुकदमों को अब देशद्रोह के आरोपों से बदल दिया गया है क्योंकि इसमें आरोपी पर यह साबित करने की जिम्मेदारी है कि उसने जो कुछ भी किया वह राष्ट्रीय हित के खिलाफ नहीं था. जहां ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव और योगी आदित्यनाथ हमेशा से असहिष्णु रवैया दिखाने के लिए जाने जाते रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस मामले में अब उन सभी को पीछे छोड़ दिया है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी ठाकरे के करीब तभी हो सकते थे जब उनका दिल्ली पुलिस पर नियंत्रण होता. जो दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश होने की वजह से केंद्र के पास है. लेकिन अब जब केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पंजाब में सत्ता में आ गई है तो वे अपने आलोचकों को डराने और चुप कराने के लिए पंजाब पुलिस का इस्तेमाल कर सकते हैं.
कहीं ऐसा न हो कि भारत एक पुलिस राज्य बन जाए
महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार 2019 के अंत में सत्ता में आने के बाद से ही अपने असहिष्णु व्यवहार का प्रदर्शन करती नजर आ रही है. उनकी असहिष्णुता सबसे पहले तब दिखाई दी जब बीजेपी से मांगे जाने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिली. एनसीपी और कांग्रेस पार्टी जो लंबे समय से महाराष्ट्र में सत्ता से बाहर थीं उन्होंने ठाकरे की महत्वाकांक्षा को पूरा करने का यह अवसर हथिया लिया.
तब से मुंबई पुलिस उनके मुताबिक काम कर रही है भले ही वह अवैध हो. कोई नहीं भूल सकता कि कैसे टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी को उनके घर से बाहर घसीटा गया था जैसे कि वह एक अपराधी हों और उन्हें जमानत मिलने तक जेल में बंद कर दिया गया था या कैसे अभिनेत्री कंगना रनौत की संपत्ति को कथित तौर पर अदालत के स्टे ऑर्डर का उल्लंघन करने के लिए तोड़ दिया गया था. उनका अपराध एक था… उन्होंने ठाकरे को चुनौती दी थी.
अब मुंबई में नवनीत और रवि राणा की गिरफ्तारी, वह भी ऐसे अपराध के लिए जो उन्होंने कभी किया ही नहीं, उद्धव ठाकरे के असहिष्णु रवैये का एक और उदाहरण है. हनुमान चालीसा का पाठ अदालत में कैसे अपराध के रूप में स्थापित किया जा सकता है यह कल्पना से परे है. नतीजतन आज यहां पुलिस राज है जहां एक राज्य की पुलिस अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर हर किसी को भी गिरफ्तार करेगी जिसने चुने हुए राजनेताओ के खिलाफ कुछ भी कहा हो.
महाराष्ट्र में पहले कभी ऐसी स्थिति नहीं देखी गई थी. आज राज्य की पुलिस बिना किसी कारण के किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है यदि उसे बीजेपी का करीबी माना जाता है. और केंद्रीय एजेंसियां राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन से संबंधित राजनेताओं को गिरफ्तार करेंगी जैसे कि उनमें और प्रतिस्पर्धी पुलिस में पुरस्कार पाने के लिए कोई दौड़ हो रही हो. यदि न्यायपालिका जो कानून की संरक्षक है उन्हें नियंत्रित नहीं करती है तो फिर यह काम मतदाताओं पर छोड़ दिया जाएगा कि वह राजनीतिक वर्ग को याद दिलाए कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां संविधान द्वारा उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है. वरना कहीं ऐसा न हो कि भारत एक पुलिस राज्य बन जाए जैसा 1970 के दशक में आपातकाल के 21 महीनों के दौरान बन गया था.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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