सम्पादकीय

रामलीला मैदान, रैलियां और प्रतिबंध

Gulabi
24 Feb 2021 2:19 PM GMT
रामलीला मैदान, रैलियां और प्रतिबंध
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इसमें कोई संदेह नहीं है कि जिस जगह हम रहते हैं वहां पर्यावरण साफ-सुथरा और सुंदर रहना चाहिए।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि जिस जगह हम रहते हैं वहां पर्यावरण साफ-सुथरा और सुंदर रहना चाहिए। प्रकृति अपने उसी रूप में अच्छी लगती है जिसमें वह हो। हम क्योंकि भौतिक सुखों को महत्व देते हैं इसलिए अक्सर सीमाओं का अतिक्रमण कर लेते हैं। उदाहरण के तौर पर दिल्ली के इतिहास का सबसे बड़ा गवाह रामलीला मैदान अब रैलियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसी तरह सुनते हैं कि अब रामलीला मैदान में किसी तरह का कोई आयोजन या राजनीतिक रैली भी नहीं होगी। एनजीटी अर्थात नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल ने दो दिन पहले एक आदेश जारी कर इस रामलीला मैदान सहित पचास अन्य पार्कों में किसी भी तरह के आयोजन बैन कर दिये हैं। हालांकि यह सबकुछ अगले आदेश तक प्रतिबंधित है और क्या ऐसा स्थायी रूप से हो जायेगा, यह सवाल भविष्य अपने आंचल में समेटे हुए है। इसके पीछे तर्क यह दिया गया है कि इससे ऐतिहासिक रामलीला मैदान की हरियाली को नुकसान पहुंचता है और इलाके में गंदगी फैलती है।


अगर ऊपरी तौर पर देखा जाये और इसे पर्यावरण के साथ-साथ स्वच्छता से जोड़ दिया जाये तो इसका स्वागत अनेक संगठन कर रहे हैं। दिल्ली जिसकी आबो-हवा अपने बदलाव के लिए अगर कुख्यात हो चुकी है तो उसके लिए जिम्मेवार कौन है? यह सवाल हम लोगों पर ही छोड़ते हैं कि वे सड़कों पर किस किस्म का आचरण दिखाते हैं। सड़कों पर कोई भी व्यक्ति अगर कार से या चलता-फिरता आदमी कुछ भी स्ट्रीट फूड लेकर खाने-पीने के बाद प्लेटें कूड़ाघर में न डालकर सड़क पर ही फैंके तो इसके लिए जिम्मेवार कौन है? इस तरह की बहस अक्सर चैनल्स पर देखी और सुनी जा सकती है लेकिन यह बात पहली नजर में महत्वपूर्ण है कि लोगों को अच्छा पर्यावरण और वातावरण तो मिलना ही चाहिए। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की आबो-हवा 200 प्रतिशत से ज्यादा प्रदूषित है। दिल्ली की हवा में प्रदूषण फैलाने वाले तत्व ज्यादा हैं लेकिन एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि जिस रामलीला मैदान को लोगों की आवाज बुलंद करने का एक बड़ा केंद्र माना जाये और वहां अब सामाजिक, राजनीतिक या अन्य आयोजन प्रतिबंधित हो जाये तो अतीत बहुत कुछ याद दिलाता है।

इसी रामलीला मैदान में कभी देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी आवाज बुलंद की थी तो आपातकाल के दिनों में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, का नारा बुलंद किया था। अगर पिछले दशक की बात करें तो 2011 में यहां महान योग गुरु रामदेव ने अपना आंदोलन गुलजार किया था और इसी रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ सार्वजनिक रूप से लेकर इसे जन भावनाओं से जोड़ने की कड़ी को आगे बढ़ाया था। हालांकि एनजीटी का यह प्रतिबंध अगले आदेश तक के लिए है लेकिन जिस तरह से पूर्वी निगम और दक्षिणी निगम ने अपने यहां पार्कों की बुकिंग पर रोक लगा दी है यह प्रश्न सचमुच राजस्व से जुड़ा है। अगर हम सभी निगमों के पार्कों की संख्या लगाएं और वहां सामाजिक समारोह के लिए बुकिंग की जाये तो अच्छी खासी राजस्व प्राप्ति होती है। इस दृष्टिकोण से घाटे के सौदे की बात कहकर लोगबाग सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गये हैं।

कोरोना के चलते सामाजिक समारोह बहुत ज्यादा नहीं हो रहे और हम यही कहेंगे कि कोरोना से सुरक्षा जरूरी है। भले ही कोरोना खत्म हो रहा है लेकिन खुद केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार कोई भी जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं है। अब जबकि महाराष्ट्र में पिछले दिनों कोरोना एक बार फिर से हमला कर रहा है और कई जिलों में लॉकडाउन लागू हो चुका है तो सुरक्षा तो बनती ही है। भारत में अथक प्रयासों से कोरोना पर हमला किया है और खुद दिल्ली ने इसके हमले को कई रूपों में झेला है। ऐसे में यह बात सही है कि हमें न केवल कोरोना से बचना है बल्कि प्राथमिक उपचार के साथ-साथ गंदगी के खात्मे से भी सुरक्षित रह सकते हैं। ठीक ही कहा गया है कि नागरिकों की सुरक्षा पहले है बाकि सब कुछ बाद में। धार्मिक आयोजन भी रामलीला मैदान में अपनी अलग पहचान दिखाते रहते हैं। वह दुर्गा पूजा हो या डांडिया फिलहाल अब रामलीला मैदान में दिखाई नहीं देंगे लेकिन हम यही कहेेंगे कि स्वच्छता सबके लिए जरूरी है। जब खुद प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ा रहे हों, मामला लोगों की सुरक्षा से जुड़ा हो तो फिलहाल एनजीटी के फैसले को सम्मान पूर्वक स्वीकार करना चाहिए। यह बात सोशल मीडिया पर कही जा रही है और रामलीला मैदान का भविष्य क्या रूख तय करेगा यह सब भी भविष्य के इसी गर्भ में छिपा है, आइये देखते हैं कि अगले आदेश तक क्या होता है?


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