सम्पादकीय

राखी का बंधन

Gulabi Jagat
10 Aug 2022 10:44 AM GMT
राखी का बंधन
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भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना या फिर ‘बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है…’
भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना या फिर 'बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है…' जैसे गीत रेडियो पर सुनकर या टैलीविजन पर हमने जरूर देखे-सुने हैं। रक्षा बंधन के दिन सुबह-सवेरे से ही यह गीत बजना शुरू हो जाते हैं। आम जनमानस आज बहन-भाई के इस पावन उत्सव को हर्षोल्लास से मनाने में लगा है, क्योंकि समूचे भारत में सदियों से मनाए जाने वाले भाई-बहन के प्यार को हमेशा जिंदा रखता आया है यही त्योहार रक्षा बंधन। बस धागे की एक डोरी से जन्मों तक बांधे रखने वाले यह रिश्ते इतने पक्के होते हैं कि जिन बहनों के भाई नहीं होते हैं, वे भी अपने किसी मुंह बोले भाई की कलाई पर सिर्फ एक धागा बांधकर हमेशा के लिए बहन-भाई के रिश्तों को निभाते देखा है हमने अनेकों बहनों और भाईयों को। और इन्हीं रिश्तों की डोर में अनेकों भाई भी दिल से बंधे देखे हैं हमने, जो अपनी इस मुंहबोली बहन के लिए अपनी जान तक भी लुटा देने से परहेज नहीं करते हैं। यहां तक कि अपनी इस बहन के हर सुख-दुख में शरीक होते हैं। और तो और, सामाजिक तौर पर अपनी इन बहनों की संतानों के लिए सगे मामा से बढक़र भी अपने फर्ज निभाते देखा गया है।
हां, ऐसे लोग भी हमारे इसी जहान में बसते हैं जो अपने रिश्तों को जरा यूं भी निभाते हैं कि लोग रश्क या यूं कहें कि जलने लगते हैं ऐसे भाइयों से, जो अपने सगे भाइयों से भी अधिक मान सम्मान और उनकी हर मुश्किल में साथ देते हैं अपनी धर्म बहनों का। बरसों पहले की बात या फिर सिर्फ पचास बरस पहले की बात की जाए तो बहनें सिर्फ राखी बांधने का इंतजार ही कई-कई दिनों पहले से ही करना और इस पवित्र त्योहार इस उत्सव की तैयारियों में जुट जाया करती थीं। अगर किसी बहन का भाई कहीं दूर सरकारी नौकरी या फौज में है, फिर तो कितनी ऊहापोह होती थी बहन के दिल में, यह सिर्फ बहनें ही जान सकती हैं। सभी जानते हैं पहले डाक विभाग यानी पत्रों द्वारा बहनें अपने दूर बैठे भाइयों को राखियां भेजा करती थीं। डाक विभाग से मिलने वाले बंद लिफाफे में राखी, टीका, चावल और कुछ चीनी के दाने भी डाल देती थीं बहनें इन लिफाफों में अपने भाई का मुंह मीठा करने भर के लिए।
जैसे ही समय ने करवट बदली और सरकार ने बेशक राखी के दिन सरकारी कामकाज करती महिलाओं के लिए बसों का सफर मुफ्त कर दिया है, बल्कि अवकाश भी दिया जाता है, लेकिन फिर भी बहनों के इस पवित्र पर्व को मनाए जाने का वह उत्साह, बह उल्लास दिन प्रतिदिन कम होता देखने को मिल रहा है। जो बहनें कई दिन पहले ही रक्षा बंधन के समय अपने मायके अपने हक, अपने अधिकारों को साथ लिए आती थीं, अब उनमें अवश्य ही कहीं न कहीं ठहराव आया दिखता है। जाहिर सी बात भी है कि ऐसा होना शायद अब मजबूरियां भी बन गई हैं हम सबकी। अब हम सभी इतने व्यस्त हो गए हैं कि हमें अपनों के लिए ही क्या, बल्कि अपने लिए भी समय निकाल पाना मुश्किल हो गया है। जिंदगी की रफ्तार इतनी तेज हो गई है हमारी, हम सबकी कि हम ठीक से और किसी से प्यार के दो बोल भी सही मायनों में व्यक्त नहीं कर पाते हैं। जिन बहनों की आवभगत, उनके स्वागत और सत्कार के लिए आंखें बिछाए रहते थे हम सब, अब वैसा कुछ देखने को नहीं मिलता है सिवाय बस कुछ गिने-चुने लोगों के। हमारे आधुनिक और व्यस्त जीवन से हमारी मान्यताएं समाप्ति की ओर दिन प्रतिदिन अग्रसर अवश्य ही हो रही हैं। आज राखी का बंधन ढीला होता जा रहा है।
राजेंद्र पालमपुरी
पूर्व शिक्षा अधिकारी
Gulabi Jagat

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