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हाल के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों (UP Elections) में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के उम्मीदवारों में से दो को छोड़कर सभी को धूल चाटनी पड़ी थी
राकेश दीक्षित |
हाल के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों (UP Elections) में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के उम्मीदवारों में से दो को छोड़कर सभी को धूल चाटनी पड़ी थी. राजस्थान (Rajasthan) और महाराष्ट्र के आगामी राज्यसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के तीन पसंदीदा (प्रियंका के) कांग्रेसी (Congress) उम्मीदवारों में से दो के साथ भी ऐसा ही हो सकता है, अगर इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री बीजेपी को पछाड़ने में सक्षम नहीं हो पाए.
यह माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने राजीव शुक्ला, इमरान प्रतापगढ़ी और प्रमोद तिवारी के नाम के लिए शीर्ष नेतृत्व पर दबाव डाला है. वैसे तो गांधी परिवार के दरबारी राजीव शुक्ला की छत्तीसगढ़ से आसानी से नैया पार हो जाएगी, लेकिन महाराष्ट्र से इमरान प्रतापगढ़ी और राजस्थान से प्रमोद तिवारी को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
राजस्थान में कांग्रेस के लिए है मुश्किल
अपने दो उम्मीदवारों, राजीव शुक्ला और रंजीत रंजन के लिए आसान जीत सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में पर्याप्त संख्या में पार्टी विधायक हैं. यही वजह है कि बीजेपी ने इस राज्य में एक भी अतिरिक्त उम्मीदवार नहीं उतारा है. राजस्थान में कांग्रेस के लिए राजनीतिक समीकरण काफी मुश्किल है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट के साथ पार्टी के भीतर तकरार में उलझे हुए हैं.
महाराष्ट्र में शिवसेना सुप्रीमो और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले असहज गठबंधन में कांग्रेस जूनियर पार्टनर है. इन दोनों राज्यों से ऊपरी सदन (राज्यसभा) के चुनाव के लिए बाहरी लोगों को मैदान में उतारकर कांग्रेस ने अपनी मुश्किलें और बढ़ा ली हैं, इससे बीजेपी इस मौके का फायदा उठा सकती है.
भगवा पार्टी ने राजस्थान में कांग्रेस के प्रमोद तिवारी के खिलाफ मीडिया दिग्गज सुभाष चंद्रा को खड़ा किया है. आखिरी घड़ी में सुभाष चंद्रा के नामांकन ने राजस्थान की चार राज्यसभा सीटों में से एक के लिए मुकाबला कड़ा कर दिया है. जी ग्रुप के मालिक और एस्सेल ग्रुप के चेयरपर्सन सुभाष चंद्रा पांचवें उम्मीदवार हैं. उन्होंने पिछला राज्यसभा चुनाव हरियाणा से जीता था, जिस पर काफी सवाल खड़े हुए थे. राजस्थान से कांग्रेस के तीन उम्मीदवार रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी हैं. ये सभी राजस्थान से बाहर के उम्मीदवार हैं. राजस्थान की चार में से दो पर कांग्रेस और एक सीट बीजेपी जीत सकती है. बीजेपी ने घनश्याम तिवारी को मैदान में उतारा है.
बीजेपी ने चली चाल
बीजेपी ने राज्य की सत्तारूढ़ कांग्रेस में चल रही नाराजगी का फायदा उठाने के लिए एक सोची समझी चाल चली है. इसके अलावा अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट के झगड़े की वजह से राज्यसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर खरीद-फरोख्त की संभावना बनी हुई है. राज्यसभा उम्मीदवारों की पसंद पर भी कांग्रेस को गुस्से का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सभी उम्मीदवार दूसरे राज्यों से संबंधित हैं और स्थानीय विधायकों द्वारा 'बाहरी' के रूप में देखे जा रहे हैं.
हालांकि, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस की संभावनाओं के बारे में संदेह को दूर किया है. उन्होंने कहा, 'हमारे तीनों उम्मीदवार जीतेंगे. बीजेपी ने सुभाष चंद्रा को मैदान में उतारा है. वे (बीजेपी) जानते हैं कि उनके पास पर्याप्त वोट नहीं हैं तो वे क्या करेंगे? वे खरीद-फरोख्त करेंगे और राज्य का माहौल खराब करेंगे.' 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में प्रत्येक उम्मीदवार को जीतने के लिए 41 वोट चाहिए. कांग्रेस के पास 108 विधायक हैं और बीजेपी के पास 71 वोट हैं. दोनों पार्टियों के पास 30 सरप्लस वोट हैं. दूसरी सीट जीतने के लिए, प्रत्येक को 11 मतों की और जरूरत होगी.
अतिरिक्त तीसरी सीट के लिए, जो प्रमोद तिवारी को मिली है, कांग्रेस को 15 और वोटों की जरूरत है. ऐसे में छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों भूमिका अहम हो जाएगी. 13 निर्दलीय विधायक हैं. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के दो सदस्य, भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के दो और सीपीएम के दो विधायक हैं. इनके मत निर्णायक साबित हो सकते हैं. जहां बीजेपी निर्दलीय उम्मीदवारों पर निर्भर है, वहीं कांग्रेस, समर्थन के लिए छोटे दलों और वाम दलों पर निर्भर है. यहां अशोक गहलोत की राजनीतिक चतुराई दांव पर है. वे सचिन पायलट के विद्रोह को दबा चुके हैं. मुख्यमंत्री ने बसपा विधायकों के कांग्रेस में शामिल कराया.
निर्दलीय उम्मीदवार हैं अहम
इस चुनाव में मुख्यमंत्री को बेहद कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. प्रियंका गांधी के उम्मीदवार की जीत तभी संभव है जब अशोक गहलोत अपनी पार्टी के साथ-साथ निर्दलीय उम्मीदवारों को बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के लालच में पड़ने से रोकने में सफल हो पाएं. कांग्रेस में पनप रहे आक्रोश और मीडिया दिग्गज के धन-बल को देखते हुए खरीद-फरोख्त की संभावना अपरिहार्य लगती है.
तिवारी को गहलोत सरकार का समर्थन करने वाले हर निर्दलीय विधायक का वोट चाहिए. उनमें से एक, पूर्व कांग्रेसी, संयम लोढ़ा, जिन्होंने 2018 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की, ने कांग्रेस से यह समझाने के लिए कहा है कि उसने राजस्थान से किसी को क्यों नहीं उतारा.
उत्तर प्रदेश का हाल
उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार इमरान प्रतापगढ़ी, महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के बीच कांटे की टक्कर में फंस गए हैं. यूपी से कवि-राजनेता की कांग्रेस की पसंद से एनसीपी और शिवसेना को नाखुश बताया जा रहा है. राजनीतिक पर्यवेक्षक भी क्रॉस वोटिंग की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं क्योंकि स्थानीय उम्मीदवारों की आकांक्षाओं की कीमत पर बाहरी व्यक्ति की उम्मीदवारी से पार्टी के भीतर गहरी नाराजगी है.
हालांकि, कांग्रेस, प्रतापगढ़ी की जीत के प्रति आश्वस्त है. उन्हें कुल 44 वोटों में से सिर्फ 42 वोटों की जरूरत होगी. बाकी दो वोट शिवसेना को ट्रांसफर किए जाएंगे. एनसीपी, जिसने वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल को मैदान में उतारा है, की राह आसान है. कुल 54 वोटों में से पटेल को केवल 42 की आवश्यकता होगी, जिससे वह आसानी से जीत जाएंगे. बाकी के 12 वोट शिवसेना को दिए जाएंगे.
अन्य राज्यों की स्थिति
राज्य विधानसभा में 288 सदस्य सीटों के लिए मतदाता (विधायक) हैं. हाल ही में शिवसेना विधायक संजय लटके के निधन के बाद इनकी संख्या घटकर 287 हो गई है. बीजेपी ने महाराष्ट्र में एक अतिरिक्त उम्मीदवार धनंजय महादिक को मैदान में उतारा है. इस उम्मीदवारी ने महादिक और शिवसेना के संजय पवार के बीच लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. दोनों पश्चिमी महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर के रहने वाले हैं.
कर्नाटक में, कांग्रेस और बीजेपी ने अतिरिक्त उम्मीदवार खड़े किए हैं. यहां चार सीटें हैं. प्रत्येक उम्मीदवार को जीत के लिए 45 वोटों की आवश्यकता होगी. बीजेपी, 119 विधायकों के साथ, दो सांसदों को आसानी से चुन सकती है. इनमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अभिनेता जग्गेश शामिल हैं. उसके पास 29 मत अतिरिक्त हैं.
लगभग 69 विधायकों वाली कांग्रेस भी एक उम्मीदवार को आसानी से जीता सकती है, ये हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश. जनता दल (एस) ने 31 विधायकों के साथ कुपेंद्र रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है. उसकी सोच है कि यदि दूसरे दो दल अपने उम्मीदवार नहीं खड़े करेंगे, तो वह अपने उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए उन्हें राजी कर लेगी. कांग्रेस ने इनमें से किसी को अपने साथ नहीं लेने का फैसला किया है, और मंसूर अली की उम्मीदवारी की घोषणा की है.
सोर्स- tv9hindi.com
Rani Sahu
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