सम्पादकीय

केरल में राज्यसभा चुनाव

Gulabi
14 April 2021 5:51 AM GMT
केरल में राज्यसभा चुनाव
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राज्यसभा चुनाव

आदित्य नारायण चोपड़ा। केरल उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को यह आदेश देकर कि वह राज्य की तीन खाली होने वाली राज्यसभा सीटों का चुनाव वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही कराये, साफ कर दिया है कि भारत में संविधान के शासन को किसी प्रकार की रियायत के दायरे में नहीं रखा जा सकता है और प्रत्येक संवैधानिक संस्था का प्राथमिक दायित्व है कि वह केवल संविधान से ही शक्ति लेकर अपने कर्त्तव्य का पालन करे। केरल में विगत 6 अप्रैल को ही नई विधानसभा के गठन के लिए चुनाव हुए हैं। इनके परिणाम आगामी 2 मई को आयेंगे परन्तु उससे पहले ही आगामी 21 अप्रैल को राज्य के तीन राज्यसभा सांसद रिटायर हो रहे हैं। इनके चुनाव मौजूदा विधानसभा की दलीय शक्ति के अनुसार ही हो जाने चाहिए थे। पहले चुनाव आयोग का इरादा भी यही था। विगत 17 मार्च को इसने घोषणा की थी कि खाली होने वाली तीन सीटों के चुनाव आगामी 12 अप्रैल को पूरे करा लिये जायेंगे मगर 24 मार्च को इसने अपना रुख बदलते हुए एेलान कर दिया कि उसे केन्द्रीय कानून मन्त्रालय की तरफ से इस बारे में एक सन्दर्भ पत्र मिला है।

इस पर निर्णय किये जाने तक वह चुनावों को फिलहाल स्थगित कर रहा है। चुनाव आयोग के इस रुख के खिलाफ केरल विधानसभा के सचिव व एक मार्क्सवादी विधायक श्री एस. शर्मा ने उच्च न्यायालय ने याचिका दाखिल कर दी। इन्हीं याचिकाओं पर न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश ने फैसला देते हुए कहा कि चुनाव आयोग संविधानतः अपने इस दायित्व से बंधा हुआ है कि वह खाली हुई राज्यसभा की सीटों पर जल्दी से जल्दी चुनाव कराये और चुनावी प्रक्रिया को पूरी करे जिससे इन चुनावों में मतदान करने का वर्तमान विधायकों के अधिकारों का संरक्षण हो सके क्योंकि 2 मई के बाद विधानसभा का 'मतदान मंडल' बदल जायेगा। इस पूरे मामले में मतदान मंडल का विशेष महत्व है। क्योंकि वर्तमान विधायकों के मताधिकार को ही देखते हुए तीन खाली हुई सीटों के लिए विभिन्न दलों ने अपने-अपने प्रत्याशियों का चयन किया है। जब चयन एक विशिष्ट मतदान मंडल के नजरिये से किया गया है तो मताधिकार प्रयोग करने का अधिकार 2 मई के बाद चुन कर आने वाले नये मतदान मंडल को किस प्रकार दिया जा सकता है?

केरल राज्य से राज्यसभा में कुल नौ सदस्य चुन कर जाते हैं। इनमें से तीन स्थान रिक्त हो जाने पर देश के उच्च सदन राज्यसभा में इसका समुचित प्रतिनिधित्व नहीं रह सकेगा, जिसे देखते हुए जल्दी से जल्दी से चुनाव पूरा कराने की याचिका उच्च न्यायालय में दायर की गई थी। इस बारे में उच्च न्यायालय ने कानूनी प्रावधानों की बड़ी स्पष्टता से विवेचना करते हुए साफ किया कि चुनाव आयोग की भी मंशा यह नहीं है कि सीटों को खाली ही पड़ा रहने दिया जाये बल्कि असली मुद्दा यह है कि मौजूदा विधायकों के रिटायर होने से पहले चुनाव प्रक्रिया पूरी हो जिससे राज्य का उच्च सदन में प्रतिनिधित्व पूर्ण रहे। चुनाव को ठंडे बस्ते में तभी रखा जा सकता है जब या तो कानून-व्यवस्था की स्थिति अनुकूल न हो अथवा राजनीतिक स्थिति चेतावनी भरी हो। जबकि वर्तमान मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है। अतः चुनाव समय पर होने चाहिए। विद्वान न्यायाधीश ने यह स्वीकार किया कि चुनावों को स्थगित करना या उनका उनका पुनः निर्धारण करना पूरी तरह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में ही आता है परन्तु ऐसा तभी किया जा सकता है जब इसके पीछे बहुत ठोस कारण हों, जबकि फिलहाल एेसा कुछ भी नहीं है।

न्यायालय के इस फैसले से साफ है कि संवैधानिक संस्थाएं बेशक स्वतन्त्र होती हैं मगर उनकी स्वतन्त्रता संविधान द्वारा निर्दिष्ट दायरे से बाहर नहीं जा सकती। जबकि चुनाव आयोग की तरफ से भी कम जोरदार दलील पेश नहीं की गई थी। इसमें उसके वकील ने कहा था कि आयोग का तीन सीटों पर चुनाव कराने को ठंडे बस्ते में डालने का मन्तव्य जन इच्छा के विरुद्ध नहीं है क्योंकि विगत 6 अप्रैल को राज्य की जनता ने मतदान करके अपने नये जनप्रतिनिधि चुनने का फैसला किया है। यदि पुराने विधायक ही राज्यसभा सांसदों का चुनाव करते हैं तो उसमें ताजा जनादेश शामिल नहीं होगा और नये चुने जाने वाले सांसदों के चुनाव में लोक-इच्छा का समावेश नहीं होगा। इसलिए नई विधानसभा गठित होने के बाद चुनाव कराया जाना पूरी तरह संवैधानिक व न्यायपूर्ण होगा परन्तु उच्च न्यायलय ने इस दलील को वर्तमान सन्दर्भों में स्वीकार नहीं किया और कहा कि मौजूदा विधानसभा के सदस्यों को ही नये तीन सांसदों को चुनने का अधिकार मिलना चाहिए जिसे देखते हुए चुनाव आयोग ने फैसला शिरोधार्य करते हुए घोषणा कर दी है कि आगामी 30 अप्रैल को राज्यसभा की तीनों सीटों का मतदान व मतगणना पूरी कर दी जायेगी। जो तीन सीटें खाली हो रही हैं वे हैं कांग्रेस के श्री व्यालार रवि, मार्क्सवादी श्री के.के. रागेश व मुस्लिम लीग के श्री अब्दुल वहाब। इसका राजनीतिक अर्थ भी निकलता है कि केरल में सत्तारूढ़ वामपंथी मोर्चे को चुनावों के बाद भारी उलटफेर होने की आशंका भी है।


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