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मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव अगले साल होना है
दिनेश गुप्ता |
मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव अगले साल होना है. इससे पहले पड़ोसी राज्य गुजरात में विधानसभा के चुनाव (Gujarat Assembly Election) है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) की रणनीति में दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनावों में वोटर को साधने का फार्मूला देखने को मिल रहा है. मध्य प्रदेश में राज्यसभा (Rajya Sabha) की तीन सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. इनमें दो सीटें बीजेपी के खाते की हैं. इनमें से एक सीट पर बीजेपी ने कविता पाटीदार को उम्मीदवार बनाया है. कविता के जरिए पार्टी ने गुजरात के पाटीदारों के बीच भी सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की है. कविता पाटीदार का अपने समाज में खासा प्रभाव है.
गुजरात के पाटीदार आंदोलन से पिछले चुनाव में कांग्रेस को मिली थी संजीवनी
गुजरात में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच कांटे की टक्कर हुई थी. गुजरात में विधानसभा की कुल 182 सीटें हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 99 और कांग्रेस को कुल 77 सीटें मिली थीं. कांग्रेस ने केवल 177 सीटों पर चुनाव लड़ा था. सीटें के लिहाज से कांग्रेस के लिए नतीजे सतोषजनक रहे थे. लेकिन,भारतीय जनता पार्टी के लिए यही नतीजे संभलने का संकेत दे गए थे. गुजरात के बाद मध्य प्रदेश सहित तीन राज्यों के चुनाव नतीजे बीजेपी के खिलाफ गए थे.
नतीजों में पाटीदार फैक्टर भी बीजेपी के खिलाफ दिखाई दिया था. हार्दिक पटेल की भूमिका थी. कांग्रेस में शामिल होने से पूर्व हार्दिक पटेल ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन की अगुवाई की थी. इसका लाभ कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में मिला था. गुजरात के कई पाटीदार नेताओं को बीजेपी पहले ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे चुकी है. अब हार्दिक पटेल भी बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. कविता पाटीदार को मध्य प्रदेश से राज्यसभा में भेजकर पार्टी ने इस वर्ग पर अपनी पकड़ मजबूत की है. कविता पाटीदार राज्य के निमाड़-मालवा में राजनीति करती हैं. यह इलाका गुजरात से लगा हुआ है.
सत्तर से अधिक विधानसभा सीटों पर पाटीदार असरदार
पाटीदार समाज की आबादी लगभग 27 करोड़ बताई जाती है. यह जाति गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बसी हुई है. लेकिन, इस जाति के लोग देश के हर हिस्से में हैं. मध्य प्रदेश की सत्तर से अधिक विधानसभा सीटों पर पाटीदार वोटर प्रभावी हैं. कविता पाटीदार के जरिए मध्य प्रदेश में बीजेपी ने अन्य पिछड़ा वर्ग को साधने का दांव खेला है. पिछले कुछ माह से राज्य की राजनीति में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इस वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का श्रेय लेने की कोशिश में लगी हुई हैं. दिलचस्प यह है कि ओबीसी को अब तक यह आरक्षण मिला नहीं है. आरक्षण अभी भी चौदह प्रतिशत पर अटका हुआ है. सरकारी नौकरियों के अलावा निकाय चुनाव में भी ओबीसी को चौदह प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है.
राज्य में निकाय चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. बीजेपी ने इन चुनावों से ही अपनी विधानसभा चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है. कविता पाटीदार को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया जाना विधानसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा है. मध्य प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता डॉ. हितेष वाजपेयी कहते हैं कि कांगे्रस यदि ओबीसी हितचिंतक है तो उसने अपनी एकमात्र सीट पर इस वर्ग के नेता को टिकट क्यों नहीं दिया? कांग्रेस,अपनी एक मात्र सीट पर वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा का लगातार दूसरी बार राज्यसभा में भेज रही है. तन्खा का चेहरा अभिजात्य वर्ग का चेहरा माना जाता है. वे जबलपुर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. लेकिन,बीजेपी के राकेश सिंह के मुकाबले में चुनाव हार गए थे. तन्खा ने राज्यसभा का पर्चा दाखिल करने के बाद कहा कि वे कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए मुहिम चलाएंगे.
राज्यसभा की उम्मीदवारी में बीजेपी-कांग्रेस का राजनीतिक एजेंडा
मध्य प्रदेश के राज्यसभा चुनाव बीजेपी-कांग्रेस की प्राथमिकता और रणनीति का संकेत देने वाले हैं. कांग्रेस जहां कश्मीरी पंडितों को प्राथमिकता में लिए हुए है, वहीं बीजेपी क्षेत्रीय संतुलन के अलावा जातीय संतुलन बनाने में लगी हुई है. पार्टी ने मालवा-निमाड़ से कविता पाटीदार को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया तो महाकोशल क्षेत्र से सुमित्रा वाल्मीकि को टिकट देकर सभी को चौंका दिया. सुमित्रा वाल्मीकि जबलपुर नगर निगम की पार्षद और अध्यक्ष रही हैं. वे अनुसूचित जाति वर्ग से हैं. सुमित्रा कहती हैं कि उनके समाज को पहली बार राज्यसभा में प्रतिनिधित्व मिल रहा है.
उत्तर प्रदेश की तर्ज पर मध्य प्रदेश में भी बीजेपी जातियों को जोड़ने पर फोकस कर रही है. माना यह जाता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी अनुसूचित जाति वर्ग की नाराजगी के कारण ही सरकार बनाने से चूक गई थी. प्रमोशन में आरक्षण के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का माई का लाल वाला बयान भी अनुसूचित जाति वर्ग की नाराजगी को दूर नहीं कर पाया था. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा प्रमोशन में आरक्षण समाप्त किए जाने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अनुसूचित जाति के मंच पर घोषणा की थी कि कोई माई का लाल आरक्षण को नहीं रोक सकता. पिछले पांच साल से मामला लटका हुआ है. इस कारण सरकार में किसी भी वर्ग को पदोन्नति नहीं मिल रही है.
बीजेपी राजनीतिक प्रतिनिधित्व देकर अनुसूचित जाति वर्ग की नाराजगी को दूर करने में लगी है. सुमित्रा वाल्मीकि और कविता पाटीदार एक साथ दो महिलाओं को राज्यसभा में भेजने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यह सिर्फ बीजेपी ही कर सकती है. एक सामान्य कार्यकर्ता भी राज्यसभा में जा सकता है. राज्यसभा के दो साल पहले हुए चुनाव के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया का दलबदल हुआ था. बीजेपी की सरकार में वापसी हुई थी. बीजेपी ने सिंधिया के अलावा आदिवासी वर्ग के डॉ.सुमेर सिंह सोलंकी को मौका दिया था. इस बार अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को जगह दी है.
Rani Sahu
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