सम्पादकीय

राजस्थान की नई कैबिनेट पायलट और गहलोत के बीच शक्ति संतुलन का नया प्रयास है

Rani Sahu
25 Nov 2021 12:56 PM GMT
राजस्थान की नई कैबिनेट पायलट और गहलोत के बीच शक्ति संतुलन का नया प्रयास है
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पिछले एक साल से अधिक या यह भी कहा जा सकता है कि राजस्थान के वर्तमान विधानसभा का जिस दिन से गठन हुआ उसी दिन से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शक्ति संतुलन को लेकर चल रहे विवाद पर धूल डालने का भरसक प्रयास किया गया है

पंकज कुमार पिछले एक साल से अधिक या यह भी कहा जा सकता है कि राजस्थान के वर्तमान विधानसभा का जिस दिन से गठन हुआ उसी दिन से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शक्ति संतुलन को लेकर चल रहे विवाद पर धूल डालने का भरसक प्रयास किया गया है. दरअसल दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने बीजेपी से सत्ता पाई तो उस चुनावी संघर्ष में युवा और वृद्ध, दोनों ही नेताओं ने मिलकर चुनाव लड़ा और अन्ततः जीत दर्ज की. युवा चेहरे के तौर पर सचिन पायलट ब्रांड बने तो अनुभवी वृद्ध चेहरा बने अशोक गहलोत. पार्टी हाईकमान के इशारे पर गहलोत को सीएम की कुर्सी मिली, तो पायलट को डिप्टी सीएम बनाया गया. मगर पायलट और उनके खेमे को यह कदम संतुष्ट नहीं कर पाया.

राजनीति का दूसरा नाम महत्त्वाकांक्षा है. और उस महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता. पायलट की इच्छा थी कि वह सीएम बने अतः अपनी आकांक्षा को पूरा करने के लिए रोज कुछ न कुछ, किसी न किसी विषय पर वह अपना असंतोष जाहिर किया करते. समस्या तो कांग्रेस के सामने तब विकराल रूप धारण कर ली जब पायलट ने जयपुर छोड़ अपने समर्थकों के साथ दिल्ली के करीब गुरुग्राम के एक होटल में पार्टी चीफ, राहुल गांधी और प्रियंका से भेंट करने और गहलोत की छुट्टी करने की ज़िद पर अड़ गए.
आगामी विधानसभा चुनावों से पहले आंतरिक कलह को खत्म करना जरूरी था
उधर गहलोत ने अपने हाथ की सत्ता का उपयोग करते हुए विरोधी नेताओं को दबाने के सारे हथकंडे अपनाने शुरू कर दिये. अन्ततः पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं के सहयोग से समझा बुझाकर मामले को थोड़ा ठंडा किया. पर अंदर की चिंगारी यथावत रही. करीब साल भर से यह फेरबदल अधर में लटका था. पांच राज्यों में फरवरी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले इस फेरबदल की जरूरत को महसूस किया गया और उसे कार्यान्वित किया गया.
पायलट का निशाना सही लगा
गुरुग्राम से कहने को तो पायलट खाली हाथ लौटे, पर उनका निशाना खाली नहीं गया. राजस्थान के वर्तमान सरकार के गठन ने इस बात को साबित कर दिया कि राजस्थान की राजनीति में उनका भी वर्चस्व है. नए गहलोत कैबिनेट में पायलट के खेमे के तीन व्यक्तियों को कैबिनेट मंत्री के रूप में जगह मिलना काफी कुछ कहता है. ये बात राजनीतिक विश्लेषक और कांग्रेसी मामलों के विशेषज्ञ पंकज शंकर ने कहा. उनके अनुसार भले ही गहलोत ने सत्ता की अधिकतम शक्ति अपने हाथों में रखी हो पर उन्हें इस बात का अंदाजा लग ही चुका है कि बदलाव प्रकृति का जिस तरह एक अभिन्न अंग है उसी तरह राजनीति का भी. यहां कुछ भी स्थायी नहीं रहता.
हालांकि राजस्थान में गहलोत सरकार का पुनर्गठन एक साथ कई उद्देश्यों की पूर्ति का एक उपकरण है. इसमें कोई शक नहीं कि फरवरी 2022 में पांच राज्यों में होने जा रही विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी सब कुछ ठीक करने में लगी है ताकि विरोधी पार्टियों को आंतरिक कलह का फायदा उठाने का मौका न मिले.
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि चुनावी मौसम में कांग्रेस मध्यप्रदेश जैसी जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं है. जिस तरह सिंधिया ने कुछ विधायकों को लेकर बगावत की और बीजेपी को सत्ता दिलाने में मददगार बने, वही स्थिति राजस्थान में बनती जा रही थी. इससे पहले कि शरीर के किसी भाग में निकली एक छोटी फुंसी नासूर बन जाए, उसका इलाज कर देना ही बुद्धिमानी है. कांग्रेस ने भी इसी फॉर्मूले को अपनाते हुए राजस्थान के संकट का समाधान करना उचित समझा.
पंजाब में पार्टी अभी भी परेशान है
इसी कड़ी में एक और घटना जो हाल ही में कांग्रेस में घटी है, उसके दंश से पार्टी पहले ही परेशान है. पंजाब में सिद्धू और कैप्टन के विवाद का समय रहते समाधान नहीं कर पाने का खामियाजा कांग्रेस को आने वाले चुनाव में भुगतना पड़ेगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. सीएम की कुर्सी पर नया चेहरा बिठाने के बावजूद सिद्धू की महत्त्वाकांक्षा पार्टी के लिए गले की हड्डी बनी हुई है. उधर कैप्टन ने अमित शाह, जेपी नड्डा और मोदी से मिलने के बाद नई पार्टी बनाने और विधानसभा चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया है, जो निश्चय ही पार्टी के लिए घाटे का सौदा साबित होने वाला है.
यूपी में प्रियंका भरोसे कांग्रेस
यूपी की नैया प्रियंका के भरोसे है, जहां वह पार्टी में जान फूंकने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं. और सबसे बड़ी बात यह कि यदि पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में बेहतर करना चाहती है तो उसे हर धड़े को मिलाकर, एक साथ लेकर चलना होगा. लेकिन इसके लिए उसे 2022 के विधानसभा चुनाव में लिटमस टेस्ट पास करना ही होगा और उसके लिए उसे अपने सभी नेताओं को मिलाकर, एक दूसरे से बैर भुलाकर एकजुटता के साथ चुनाव लड़ना होगा.
इसी को मद्देनजर रखते हुए पंजाब और राजस्थान की फेरबदल है. दोनों ही राज्यों में और खासकर राजस्थान में जो अभी फेरबदल किया गया है वह न केवल असंतुष्ट खेमे को संतुष्ट करने का प्रयास है, बल्कि एक दूरगामी राजनैतिक चाल जिसे गहलोत और पायलट, दोनों ही बखुबी समझ रहे हैं और समय की नजाकत को देखते हुए एक साथ नए सिरे से चलने को तैयार हुए हैं. क्योंकि इसके अगले ही साल यानि दिसंबर 2023 में फिर से विधानसभा चुनाव होने हैं जिसमें सत्ता बचाना कांग्रेस के लिए नाक की लड़ाई है.
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