सम्पादकीय

राजस्थान: RBSE में पूछे गए कांग्रेस से जुड़े सवाल... लेकिन इन सवालों का सबब अलग है!

Rani Sahu
22 April 2022 9:59 AM GMT
राजस्थान: RBSE में पूछे गए कांग्रेस से जुड़े सवाल... लेकिन इन सवालों का सबब अलग है!
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राजस्थान बोर्ड के राजनीति विज्ञान की परीक्षा में पूछे गये आठ प्रश्नों पर बवाल शुरू हो गया है

डॉ. प्रभात ओझा

राजस्थान बोर्ड के राजनीति विज्ञान की परीक्षा में पूछे गये आठ प्रश्नों पर बवाल शुरू हो गया है. बवाल का कारण यह है कि एक ही पेपर में सिर्फ कांग्रेस पार्टी के बारे में आठ सवाल पूछे गये हैं. इनमें छह तो कांग्रेस की महिमा बखान की तरह हैं. दो अन्य भी राज्य सरकार में साथी दल कम्युनिस्ट और बहुजन समाज पार्टी से संबंधित हैं. शुरू में ही याद दिला देना जरूरी है कि देश के कुछ राज्यों में जहां कांग्रेस की सरकार है, उनमें राजस्थान भी शामिल है. वहां विपक्षी दल और देश ही नहीं, सदस्यता के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा विपक्ष में है. तो राजस्थान भाजपा ने अपने आधिकारिक ट्वीट में कहा है, "राजनीति विज्ञान का ये प्रश्नपत्र देख कई विद्यार्थियों को तो समझ ही नहीं आया कि परीक्षा राजनीति विज्ञान की है या कांग्रेस के इतिहास की! शायद गहलोत जी भी अब कांग्रेस को इतिहास का हिस्सा मान चुके हैं."
स्वाभाविक है कि इस मुद्दे पर विपक्ष हमलावर और सत्तारूढ़ दल बचाव की मुद्रा में है. भाजपा के विधानसभा सदस्य अशोक लोहाटी ने हमला किया है कि कांग्रेस एक तरफ बीजेपी पर भगवाकरण के आरोप लगाती है, दूसरी ओर वह खुद अपना प्रचार करने में लगी है. राज्य के शिक्षा मंत्री बी. डी. कल्ला का स्पष्टीकरण ठीक वही है, जैसा होने की उम्मीद की जाती है. उन्होंने सफाई दी है कि परीक्षा के पेपर विशेषज्ञ बनाया करते हैं. उनसे सरकार का लेना देना नहीं होता. शिक्षा मंत्री के इस बयान के आलोक में देखें तो दो साल पहले फरवरी, 2020 में मणिपुर बोर्ड परीक्षा में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. हालांकि तरीका राजस्थान बोर्ड की 12वीं कक्षा की परीक्षा से ठीक उलट मणिपुर 12वीं की परीक्षा में घटा. वहां तब विवादित दो प्रश्नों में एक था, भारत के निर्माण में पंडित जवाहर लाल नेहरू के चार नकारात्मक दृष्टिकोण के बारे में बताएं. दूसरे सवाल में भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिह्न की जानकारी मांगी गई थी. उस समय मणिपुर की विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने सिर्फ दो सवाल पूछे जाने पर बवाल मचाया था. वहां भी सत्तारूढ़ बीजेपी ने बोर्ड परीक्षाओं की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया था.
मामला राजस्थान का हो अथवा मणिपुर का, दोनों जगह के विपक्ष का एक जैसा होना और वहां की सरकारों के दृष्टिकोण की साम्यता का जिक्र कर ताजा मामले को हवा में उड़ा देना ठीक नहीं होगा. असल में कांग्रेस पार्टी बेचैन है. उसकी बेचैनी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले पार्टी प्रवक्ताओं की नियुक्ति के लिए परीक्षा लेने में भी दिखी. 'बनें यूपी की आवाज' अभियान के तहत कांग्रेस में प्रवक्ता के उम्मीदवारों से आरएसएस, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और कांग्रेस पार्टी के इतिहास के बारे में पूछा गया था. देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस का योगदान और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कथित 'खतरनाक प्रभाव' के बारे में भी प्रश्न पूछे गये. ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश हो अथवा राजस्थान, कांग्रेस समझ रही है कि वह अपने इतिहास, उसके कार्य और विपक्ष, खासकर बीजेपी की कथित नाकामियां बताकर अपने संगठन को पुनर्जीवित कर सकती है. ऐसे में वह मणिपुर में दो के मुकाबले राजस्थान में आठ और उनमें भी छह कांग्रेस की खूबियां बताने वाले सवाल पूछती है. राजनीति विज्ञान में आजादी के लिए संघर्ष, देश के नवनिर्माण और सरकारों के काम पूछने का मतलब यह नहीं कि सिर्फ एक दल विशेष का ही 'शौर्य गान' हो. पार्टी के प्रवक्ता तैयार करने और देश के जिम्मेदार नागरिक बनाने की तैयारियों में फर्क को समझना होगा. सरकारों में बैठी पार्टी अथवा राजनेताओं की मुंहदेखी पाठ्यक्रम और परीक्षाओं के उदाहरण ढेरों मिलेंगे.
सरकारों की मुंहदेखी करने में विद्यार्थियों को शिक्षित करने वालों से गलतियां भी होती हैं. इस कारण बोर्ड और सरकार दोनों की फजीहत भी हुई. ऐसा एक उदाहरण जम्मू-कश्मीर का है. दिसंबर, 2015 में जम्मू-कश्मीर की दसवीं कक्षा की परीक्षा में पीडीपी के साथ गठबंधन किसने किया, इस सवाल के जवाब में जो विकल्प दिए गये, उनमें भारतीय जनता पार्टी का नाम ही गायब था. तथ्य यह है कि उस समय महबूबा मुफ्ती के मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार में बीजेपी ही शामिल थी. तब जम्मू-कश्मीर स्टेट बोर्ड ऑफ स्कूल एजूकेशन (जेकेबीओएसई) ने फैसला किया कि सम्बंधित सवाल के लिए छात्रों के अंक नहीं काटे जाएंगे.
माना कि राज्यों में बोर्ड परीक्षाओं पर सरकार का सीधे नियंत्रण नहीं होता, पर उसकी मंशा के अनुरूप कार्य से इनकार भी नहीं किया जा सकता. राजस्थान में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. सरकारों के खिलाफ माहौल बन जाने की कहानी नई नहीं है. पिछले चुनाव के बाद सरकार में आये कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पुरानी पीढ़ी के नेताओं में गिने जाते हैं. वे अपने प्रभाव के चलते कुर्सी हासिल करने में तो सफल रहे, किंतु सचिन पायलट जैसे युवा नेता से पार्टी के अंदर उन्हें चुनौती मिलती रही है. अगले चुनाव के बारे में भविष्यवाणी ठीक नहीं होगी. फिर भी किसी तरह सरकार में बने रहने के लिए पार्टी और सरकार का प्रचार जारी है.
अनैतिक यह है कि बोर्ड की परीक्षाओं में औसत से बहुत अधिक प्रश्न आत्म प्रशंसा के ही हों. पिछले महीने 24 तारीख से शुरू और 26 अप्रैल तक चलने वाली परीक्षा में राजनीति विज्ञान के सवालों के पीछे निश्चित ही राजनीति काम कर रही है. सवालों पर नजर डालें तो (1) कांग्रेस की सामाजिक एवं विचारधारात्मक गठबंधन के रूप में विवेचना, (2) एक दल के प्रभुत्व का दौर और कांग्रेस प्रणाली, (3) वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीती सीटों की संख्या, (4) भारत में प्रथम तीन आम चुनावों में किस दल का प्रभुत्व रहा, (5) कांग्रेस ने 1967 का आम चुनाव किन परिस्थितियों में लड़ा, (6) साल 1971 का आम चुनाव कांग्रेस की पुनर्स्थापना का चुनाव, (7) गरीबी हटाओ का नारा किसने दिया? और (8) लोकसभा चुनाव 2004 के बाद अधिकतर दलों के बीच व्यापक सहमति से संबंधित प्रश्न बहुत कुछ कहते हैं.
अंत में सिर्फ यह कि व्यक्ति हो अथवा पार्टी, थकने के बाद उनके लिए अपने भविष्य का गुणगान ही एकमात्र चारा रह जाता है. अशोक गहलोत और कांग्रेस, दोनों ही थकान की हालत में हैं.

सहभार: News18Hindi

Rani Sahu

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