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वन्यजीव उत्पादों की बरामदगी साबित करती है कि वन्यजीव तस्करों को किसी का भय नहीं है।
National Animal Bengal Tiger News Hindi : देश में बाघों की तादाद में बढ़ोतरी के दावों के बीच राष्ट्रीय पशु का अस्तित्व संकट में है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे (Union Minister Ashwini Choubey) ने बीते दिनों संसद में बताया कि वर्ष 2019 से 2021 के बीच हर तीसरे दिन एक बाघ की मौत हुई है। इस तरह इन तीन वर्षों में कुल 329 बाघ (Tiger) मौत के मुंह में चले गए। यह इस बात का सबूत है कि बाघों के संरक्षण की दिशा में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं। इस वर्ष की शुरुआत में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Union Civil Aviation Minister Jyotiraditya Scindia) ने घोषणा की थी कि राजस्थान के रणथंभौर (Ranthambore) से लेकर मध्य प्रदेश के पन्ना तक वाइल्ड लाइफ कॉरीडोर (wildlife corridor) बनाया जाएगा।
इसका अहम कारण अभयारण्यों (Sanctuaries) में क्षमता से बहुत अधिक बाघों का होना है। इससे भोजन, क्षेत्र और आवास की समस्या के चलते मानव आबादी (Human Population) में बाघों के हमले की आशंका बढ़ गई है। वर्ष 1972 में बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के बाद ही बाघ बचाओ परियोजना (Save The Tiger Project) की शुरुआत हुई। अभी देश में कुल 53 टाइगर रिजर्व (Tiger Reserves) हैं। दुनिया के 71 फीसदी, यानी 3,000 के करीब बाघ हमारे देश में हैं, जिसमें सबसे ज्यादा बाघ मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड में हैं।
सरकार ने इस साल छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास नेशनल पार्क, राजस्थान के रामगढ़ विषधारी अभयारण्य, बिहार के कैमूर वन्यजीव अभयारण्य, अरुणाचल के दिवांग वन्यजीव अभयारण्य और कर्नाटक के एम. एम. हिल अभयारण्य को टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित करने की मंजूरी दे दी है। अंतरराष्ट्रीय ग्लोबल टाइगर फोरम के अनुसार, भारत की स्थितियां बाघों के आवास के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। उसके अनुसार, भारत में कुल 38,915 वर्ग किलोमीटर इलाका बाघों के रहने लायक है।
नौ साल पहले रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने के लिए दुनिया के 13 देशों ने एक लक्ष्य निर्धारित किया था, जिसे भारत ने चार साल पहले ही हासिल कर लिया था। लेकिन देश में बाघों की मौतों में वृद्धि कम चिंतनीय नहीं है। देखा जाए तो, 2012 से हर साल 98 बाघों की मौत हुई हैं। सबसे ज्यादा 2021 में 126 मौत हुई। असलियत यह है कि बाघ संरक्षित क्षेत्र या फिर अभयारण्य, कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। बीते वर्षों में तकरीब 350 करोड़ से अधिक के वन्यजीव उत्पादों की बरामदगी साबित करती है कि वन्यजीव तस्करों को किसी का भय नहीं है।
सरकार बीते दस वर्षों में तकरीबन 530 से अधिक बाघों की मौत का दावा करती है, जबकि वन्यजीव विशेषज्ञ यह तादाद उससे कहीं अधिक बताते हैं। इनके आवास स्थल, जंगलों में अतिक्रमण, प्रशासनिक कुप्रबंधन, जंगलों का सिमटते जाना, जंगलों में प्राकृतिक जलस्रोत के खात्मे से ये मानव आबादी की ओर आने लगे हैं, जो खतरनाक है। दिनोंदिन बढ़ते अवैध शिकार के चलते भी इनकी मौतों का आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है। बीते वर्ष राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की सदस्य दीया कुमारी ने आरोप लगाया था कि रणथंभौर अभयारण्य से 26 बाघ गायब हो गए। मगर प्रशासन इस पर चुप्पी साधे रहा। सवाल यह है कि जब वन्यजीव अभयारण्यों का प्रबंधन इतना बढ़िया है, तो बाघ कैसे गायब हो जाते हैं या शिकारियों द्वारा मार दिए जाते हैं।
सोर्स: अमर उजाला
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