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पंजाब के बाद राजस्थान?
पंजाब के बाद क्या राजस्थान में परिवर्तन होगा? इस गंभीर सवाल पर एक सप्ताह से देश में चर्चाएं गर्म हैं। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की कुर्सी छीनने के बाद से जिस तरह से राजस्थान में सचिन पायलट सक्रिय हुए हैं, उससे लगता है कि जल्द कुछ बड़ा होने वाला है। सचिन पायलट नई दिल्ली में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के घर मिले थे। राहुल की बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी वहां मौजूद रहीं।
दरअसल, राजस्थान में पंजाब का असर दिखने लगा है। विगत् डेढ़ साल से अपने सरकारी आवास से काम निपटा रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी सक्रिय हुए हैं। जल्द ही उनके प्रदेश भ्रमण की खबरें बाहर आई हैं। गहलोत को प्रियंका और सोनिया गांधी का बेहद करीबी माना जाता है। मौजूदा समय में वो कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शामिल हैं।
गहलोत का कद इतना बड़ा है कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से कैप्टन अमरिंदर सिंह की भांति हटाना करीब-करीब नामुमकिन है। पंजाब में जहां प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने लॉबिंग करके बड़ी संख्या में विधायकों और मंत्रियों को कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ कर दिया था, वो स्थिति राजस्थान में तो कतई नहीं है। राजस्थान में अधिकांश विधायक और मंत्री अशोक गहलोत के साथ ही खड़े हैं।
राजस्थान का सियासी गणित और गहलोत
पौने तीन साल पहले जब राजस्थान में चुनाव हुए थे तो 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 100 सदस्य जीतकर आए थे, जबकि भाजपा का रथ 73 सीटों पर रुक गया था। बहुजन समाज पार्टी ने 6 सीटें जीती थीं। हनुमान बेनीवाल की आरएलपी और वामदलों समेत 21 अन्य विधायक जीते थे। निर्दलीय विधायकों में गहलोत समर्थकों की संख्या ज्यादा है। इसमें भी वो गहलोत समर्थक निर्दलीय अधिक हैं, जिन्हें सचिन पायलट ने प्रदेश अध्यक्ष रहते कांग्रेस का टिकट नहीं दिया था। बाद में अशोक गहलोत ने बसपा के 6 विधायकों का विलय कांग्रेस पार्टी में करा लिया, जिससे विधानसभा में कांग्रेस की संख्या मजबूत हो गई। वर्तमान में गहलोत सरकार को 120 प्लस विधायकों का समर्थन है।
पिछले साल जब सचिन पायलट अपने 19 समर्थक विधायकों के साथ एकाएक गायब होकर दिल्ली चले गए थे, तब राजस्थान की राजनीति में भूचाल आ गया था। लंबे समय तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने गुट के विधायकों और मंत्रियों की पहले जयपुर और फिर जैसलमेर के नामचीन होटल में बाड़ेबंदी करके रखी। उसी दौरान सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया।
गहलोत ने अपने खास गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। जैसलमेर में फोन टैपिंग कांड तक हो गया, जिसमें सचिन पायलट के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया। हालांकि, कुछ दिनों बाद सचिन पायलट और अन्य सभी विधायक लौट आए, लेकिन विगत् एक साल से सचिन और गहलोत गुट के विधायक एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं।
जब सचिन पायलट ने दिल्ली में डेरा डाल लिया था, तब उन्हें लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चली थीं। कहा गया कि वो भाजपा के संपर्क में हैं। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं के साथ मिलकर सरकार गिराना चाहते हैं। एक टेप भी बाहर आया, जिसमें दावा किया गया कि केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की आवाज है।
एक उद्योगपति की गिरफ्तार हुई। दिल्ली में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पूर्व ओएसडी लोकेश शर्मा के खिलाफ केंद्रीय मंत्री शेखावत ने मुकदमा तक दर्ज कराया, जो दिल्ली हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
खूब खबरें चलीं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिराने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया से पायलट की दोस्ती है। दोनों में बातचीत हो रही है। पायलट को सिंधिया भाजपा में ले जा सकते हैं। चर्चाएं तो चलीं, लेकिन एक मंजे हुए राजनीतिज्ञ की तरह सचिन पायलट ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी। यह मौन उनके पक्ष में गया, जबकि अमूमन शांत रहने वाले अशोक गहलोत भी एक समय आपा तक खो बैठे थे और पायलट को उन्होंने नाकारा-निकम्मा तक कह डाला था।
सचिन पायलट और राहुल गांधी
सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ जयपुर लौटे तो कहा गया कि संगठन और सरकार में उनके गुट को सम्मानजनक जगह दी जाएगी, लेकिन विगत एक साल से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कुछ न कुछ रोड़ा अटका कर चीजों को खींचते आ रहे हैं। पिछले दिनों हुए उपचुनावों, निकाय और पंचायत चुनाव में कांग्रेस की जीत को लेकर प्रचारित किया जाता रहा है कि गहलोत की जादूगरी कायम है। गहलोत पूरे पांच साल सरकार चलाएंगे। कांग्रेस के भीतरी सूत्र तो यहां तक कहते हैं कि पायलट गुट को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कुछ भी देने के मूड में नहीं हैं। यही कारण है कि न तो मंत्रिमंडल का विस्तार हो रहा है और न ही राजनीतिक नियुक्तियां हो रही हैं।
अब पंजाब के घटनाक्रम ने सचिन पायलट को पुनः ऑक्सीजन प्रदान कर दी है। एक दिन पहले सचिन पायलट ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी से मुलाकात की। एक सप्ताह में वो दूसरी बार राहुल गांधी से बातचीत हुई। जब सचिन पायलट रुठे थे, तब प्रियंका गांधी वाड्रा ने उनकी वापसी में बड़ी भूमिका निभाई थी। वो भी सचिन से मिली हैं। शिमला में छुट्टी मनाकर लौटते ही प्रियंका और राहुल ने सचिन पायलट के साथ मीटिंग की, जो इस बात का साफ संकेत है कि कुछ बड़ा होने वाला है।
अब देखना यह होगा कि क्या पंजाब की भांति राजस्थान में भी कांग्रेस हाईकमान परिवर्तन कर पाता है? यदि ऐसा होता है तो क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह अशोक गहलोत बगावती तेवर दिखाएंगे या फिर वो कैप्टन को कुछ दिन पहले दी अपनी उस सलाह को स्वयं पर लागू करेंगे, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुझे उम्मीद है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जिससे कांग्रेस पार्टी को नुकसान हो। अब देश की निगाहें राजस्थान और राहुल गांधी पर हैं। अगले कुछ दिन कांग्रेस पार्टी में उथल-पुथल वाले रहने वाले हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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