सम्पादकीय

मुसीबत की बारिश

Subhi
15 July 2021 3:59 AM GMT
मुसीबत की बारिश
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लबालब भरी नदियों का घरों में घुस आया पानी, छतों और ऊंची जगहों पर शरण पाए लोग, मुहल्लों में जलभराव, सड़कों पर मीलों वाहनों की कतार, जैसे अब हर साल बरसात के स्थायी दृश्य बन चुके हैं।

लबालब भरी नदियों का घरों में घुस आया पानी, छतों और ऊंची जगहों पर शरण पाए लोग, मुहल्लों में जलभराव, सड़कों पर मीलों वाहनों की कतार, जैसे अब हर साल बरसात के स्थायी दृश्य बन चुके हैं। हर बार दावे किए जाते हैं कि इस स्थिति से जल्दी निजात दिला दी जाएगी, मगर वही ढाक के तीन पात। बरसात रुकती है तो ठहरे हुए पानी में मच्छर और बीमारियां फैलाने वाले जीवाणु पलने शुरू हो जाते हैं। फिर शुरू होता है डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, दिमागी बुखार वगैरह का प्रकोप और उनसे पार पाने का सरकारी प्रयास। मगर इस समस्या से पार पाने के लिए जो बुनियादी तैयारियां होनी चाहिए, उन पर कभी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाता। मुंबई में पहली बारिश हुई तो वहां अफरातफरी का माहौल बन गया। मुहल्लों में पानी भर गया, रेल की पटरियां डूबने लगीं। पटना और बिहार के दूसरे कई शहरों मेंं घरों के भीतर पानी घुस आया। यही हाल दिल्ली की पहली बारिश में देखने को मिल रहा है। अभी कोई तेज बारिश नहीं हुई है। यह तो शुरुआत है। यानी यह सिलसिला रुक रुक कर डेढ़-दो महीने और चलना है। फिर बरसात बीतते ही इसकी व्यवस्था संभालने वाला महकमा निश्चिंत हो जाएगा।

शहरों में जलभराव और नदियों में उफान की असल वजहें छिपी नहीं हैं। कायदे से बरसात से पहले शहरों के नालों और नालियों की सफाई हो जानी चाहिए, सड़कों के किनारे के जलनिकासी के मुहानों का कचरा साफ हो जाना चाहिए, मगर इस मामले में नगर निगम लापरवाह ही दिखाई देते हैं। समय से सफाई न होने का नतीजा है कि नालियों में जमा अगलनीय कचरा पानी का निकास बाधित कर देता है। सड़कों के किनारे के जल निकासी के मुहाने बंद रहते हैं, इसलिए सड़कों पर जमा पानी निकल नहीं पाता। फिर मुहल्लों के लोग नाले-नालियों के मैनहोल के ढक्कन उठा देते हैं, जो कई लोगों के लिए जानलेवा साबित होता है। ऐसा इस बार भी मुंबई की पहली बारिश में देखा गया। लंबे समय तक सड़कों पर पानी जमा रहने की वजह से सड़कें टूटनी शुरू हो जाती हैं, उन पर गड्ढे बन जाते हैं और पानी के भीतर पता ही नहीं चलता कि गड्ढे कहां हैं। इस तरह कई वाहन चालक उनमें गिर कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। फिर जल निकासी के आनन-फानन इंतजाम किए जाते हैं, पर वे सब फौरी उपाय ही साबित होते हैं।

दिल्ली में बरसाती पानी का निकास न हो पाने की वजह से खड़ी मुसीबतों पर राजनीति भी शुरू हो जाती है। भाजपा और कांग्रेस दिल्ली सरकार के सिर पर इसका ठीकरा फोड़ना शुरू कर देते हैं, तो दिल्ली सरकार आरोप लगाती है कि नगर निगम पर भाजपा काबिज है, इसकी जिम्मेदारी उसे लेनी चाहिए। फिर निगम में कर्मचारियों की कमी, उनके वेतन का समय पर भुगतान न होना आदि के तर्क उछाले जाते हैं। यही हाल मुंबई आदि शहरों का भी है। ये बहाने भी स्थायी हो चुके हैं। जबकि महानगरों में साफ-सफाई के लिए आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल होने लगा है, दिल्ली में तो ठेकेदारों के जरिए भी यह काम कराया जाता है। फिर जलजमाव को रोकने में सफलता क्यों नहीं मिल पाती। जाहिर है कि इस महकमे में लंबे समय से भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा चुका है। फिर पुरानी पड़ चुकी जल निकासी व्यवस्था को दुरुस्त करने के जो प्रयास होने चाहिए, वे लंबे समय से नहीं हुए हैं। जब तक इन कमजोरियों को दूर करने को लेकर संजीदगी नहीं दिखाई जाएगी, बरसात मुसीबतें खड़ी करती रहेगी।


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