सम्पादकीय

आफत की बरसात

Subhi
26 Sep 2022 4:40 AM GMT
आफत की बरसात
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लेकिन इस बार बरसात का अब भी जो रुख देखा जा रहा है, वह थोड़ा अलग है। हालांकि मौसम की अपनी गति होती है और कई बार उसका अनुमानों से पहले शुरू हो जाना या फिर लंबा खिंचना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है

Written by जनसत्ता: लेकिन इस बार बरसात का अब भी जो रुख देखा जा रहा है, वह थोड़ा अलग है। हालांकि मौसम की अपनी गति होती है और कई बार उसका अनुमानों से पहले शुरू हो जाना या फिर लंबा खिंचना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है, लेकिन इसका आम जनजीवन पर असर पड़ता है। हाल में देश के कई राज्यों में बारिश की वजह से जैसी स्थिति पैदा हो गई, उसे निश्चित रूप से मौसम की मार के तौर पर देखा जा सकता है, मगर यह भी सही है कि व्यवस्थागत कमियां कई बार समस्या की गंभीरता को और ज्यादा बढ़ा देती हैं।

मसलन, देश के कई शहरों में बरसात की वजह से होने वाले जलजमाव और सड़कों पर जाम जैसे हालात देखने में आए, वह पानी की निकासी और यातायात प्रबंधन की व्यवस्था में खामी का नतीजा है। वहीं बीते कई दिनों की बारिश की वजह से मुख्य रूप से दिल्ली और गुरुग्राम की सड़कों पर यातायात लगभग ठप पड़ गया और वाहनों की लंबी कतारें लग गर्इं। बारिश की वजह से शहरों-महानगरों में खड़ी होने वाली मुख्य समस्या सड़कों पर जाम और व्यापक जलजमाव के रूप में ही सामने आती है।

सवाल है कि इन मुश्किलों के लिए अकेले बारिश जिम्मेदार है या फिर वे सरकारी महकमे, जो ऐसी परिस्थिति का सामना करने के लिए वक्त पर या उससे पहले तैयारी नहीं करते। यों हर इलाके में केवल पानी की निकासी की व्यवस्था ही अगर समुचित हो और जलजमाव की गुंजाइश न बने तो इन समस्याओं से पार पाया जा सकता है। लेकिन हकीकत किसी से छिपी नहीं है।

जहां आम दिनों में भी छोटे-बड़े नाले हर तरह से साफ और निर्बाध होने चाहिए, वहां मौसम के मुताबिक बरसात की आशंका के मद्देनजर सरकार नालियों की सफाई कराने की औपचारिकता पूरी करती दिखती है। इसके अलावा, अगर इसका पहले से अंदाजा है कि बरसात के वक्त क्या स्थिति हो सकती है तो यातायात प्रबंधन के मामले में वाहनों को नियंत्रित करने से लेकर वैकल्पिक मार्ग तय किए जाने तक कुछ अन्य तात्कालिक इंतजाम किए जा सकते हैं, ताकि सड़कों पर जाम न लगे। लेकिन सभी जानते हैं कि हर साल बरसात के मौसम में शहरों की हालत क्या हो जाती है।

दरअसल, यह शहरी नियोजन में बरती गई लापरवाही के बाद का आलम है, जिसमें एक घंटे की बरसात भी शहर की रफ्तार को पूरी तरह थाम दे सकती है। लेकिन पिछले एक-दो सालों से बरसात के स्वरूप में जैसा बदलाव देखा जा रहा है, वह पर्यावरण में उथल-पुथल का संकेत हो सकता है। देश के जिन इलाकों में बरसात अपनी स्वाभाविकता में आकर गुजर जाती थी, वहां अब बेलगाम बारिश और कई बार बादल फटने जैसी घटनाएं भी देखी जा रही हैं। यों मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक मुख्य रूप से तापमान और दबाव बरसात की वजहें हैं।

तापमान में बढ़ोतरी से हवा का दबाव कम होता और इसके चलते हवा ऊपर की ओर उठ जाती है। यही वजह है कि ज्यादा दबाव वाले क्षेत्रों के बादल कम दबाव वाले इलाकों की ओर बढ़ जाते हैं। लेकिन प्राकृतिक उतार-चढ़ावों से उपजी मुश्किलों का सामना करना ही अकेला विकल्प होता है और इसीलिए बाढ़ या अन्य आपदाओं से बचाव के लिए अलग-अलग मोर्चों पर बहुत सारे इंतजाम किए जाते हैं। ऐसे में शहरों-महानगरों के लिए बारिश अगर एक जटिल समस्या बनती जा रही है तो उससे बचाव या उसमें राहत के रास्ते निकालना भी सरकार और समाज की ही जिम्मेदारी है!


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