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- आफत की बरसात
Written by जनसत्ता; समय के अनुसार मौसम का बदलना प्रकृति का नियम है। गर्मी के मौसम में पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और धरती, सभी को वर्षा ऋतु का इंतजार रहता है, लेकिन जब वर्षा ऋतु आती है तब पहली बारिश में ही बड़े-बड़े शहर पानी-पानी हो जाते हैं। मानसून की पहली बारिश में ही पूर्वोत्तर राज्य असम और मेघालय बाढ़ की समस्या से जूझ रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में जलजमाव की समस्या उत्पन्न हो चुकी है।
बढ़ती आबादी की वजह से नदी, नाला और तालाब का अतिक्रमण हो रहा है। जल निकासी के सभी मार्ग प्लास्टिक कचरा की वजह से अवरुद्ध रहते है। पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई से वर्षा का पानी सीधे धरती पर गिर कर कहर बरपा रहा है। वर्षा ऋतु में होने वाली परेशानियों के लिए हम खुद जिम्मेदार है। जल के पौराणिक स्रोतों को अतिक्रमण मुक्त करना चाहिए एवं अधिक संख्या में वृक्षारोपण करना चाहिए।हिमांशु शेखर, केसपा, गया
ऐसा लगता है कि अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट पर पूरा नियंत्रण पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का है। इन्होंने जाते-जाते अपने उग्र राष्ट्रवादी और रूढ़िवादी विचारधारा वाले तीन जजों की नियुक्ति करवाकर आने वाले कई वर्षों तक अपने विभाजनकारी विचारधारा से ओतप्रोत फैसले का कापीराइट अपने नाम कर लिया है। पहले गर्भपात, फिर बंदूक नियंत्रण और अब पर्यावरण के लिए किए जा रहे बाइडेन प्रशासन के कामों को भी इस अदालत ने रोक लगा दिया है।
यानी राष्ट्रपति जो बाइडेन का लक्ष्य दशक के अंत तक देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को आधा करना और 2035 तक उत्सर्जन-मुक्त बिजली क्षेत्र बनाने का था। मगर अदालत ने साफ कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के लिए बिजली संयंत्रों से कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन को कम करने के आदेश को किसी भी कीमत पर मान्य नहीं होने देंगे । मतलब कोयले के उपयोग बिजली संयंत्र यथावत कर सकेंगे। ट्रम्प ने कभी भी जलवायु परिवर्तन के सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया।