सम्पादकीय

तबाही की बारिश

Subhi
26 July 2021 2:54 AM GMT
तबाही की बारिश
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बरसात के दिनों में बाढ़, भूस्खलन और मकानों के ढहने से सैकड़ों लोगों का जान गंवा बैठना जैसे हर साल की स्थायी स्थिति बन चुकी है।

बरसात के दिनों में बाढ़, भूस्खलन और मकानों के ढहने से सैकड़ों लोगों का जान गंवा बैठना जैसे हर साल की स्थायी स्थिति बन चुकी है। इस साल भी अब तक महाराष्ट्र, गोवा, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश आदि में बरसात से काफी तबाही मच चुकी है। अकेले महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में करीब डेढ़ सौ लोग मारे जा चुके हैं। अस्सी हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा चुका है। आने वाले दिनों में और भारी बरसात की चेतावनी जारी की जा चुकी है। बरसात के समय मचने वाली इस तबाही की वजहें छिपी नहीं हैं।

ऐसा भी नहीं कि पिछले कुछ सालों में पहले की अपेक्षा अधिक बारिश हो रही है। यह जरूर है कि बरसात की प्रकृति में कुछ बदलाव आया है। मगर इससे ज्यादातर परेशानियां अनियोजित शहरी विकास, जल निकासी के रास्तों में अवरोध, नदियों के पाटों पर अतिक्रमण, बांधों की क्षमता का समुचित आकलन न हो पाने आदि की वजह से पैदा होती हैं। नदियों के पाट सिकुड़ते और पेटा उथला होता गया है। इसलिए बरसात का पानी संभाल पाने की उनकी क्षमता काफी घट गई है। उनका पानी उफन कर रिहाइशी इलाकों को जलमग्न कर देता है। यही हाल गाद भरते जाने से बांधों का भी हो गया है। जब वे बरसात का पानी संभाल नहीं पाते तो बिना चेतावनी के उनके फाटक खोल दिए जाते हैं और पानी के वेग में बहुत सारे लोग मारे जाते हैं।

मगर मुंबई और महाराष्ट्र के दूसरे शहरों में बरसात की वजह से पैदा होने वाली दुश्वारियां वहां के नगर निकायों और प्रशासन की लापरवाही का नतीजा अधिक होती हैं। मुंबई के अनेक इलाकों में बहुत सारे जर्जर हो चुके मकान खड़े हैं, जिनमें दर्जनों परिवार रहते हैं। अधिक बरसात होने से अक्सर ऐसे मकान धसक कर बैठ जाते हैं और कई लोग मारे जाते हैं। इसी तरह पहाड़ी टीलों, नालों के किनारे बहुत सारी बस्तियां बसी हुई हैं, जिनके मकानों की न तो नींव सही से डली है और न उनके ऊपर खड़ी मंजिलों के वजन का आकलन किया गया है। तेज बरसात से जब उन टीलों की जमीन धंसती है तो वे मकान भी जमींदोज हो जाते हैं। छिपी बात नहीं है कि ये सारी बस्तियां प्रशासन की जानकारी में बसती और अनियोजित तरीके से फैलती जाती हैं। आखिर पुराने पड़ चुके मकानों को खाली कराने और खतरे वाली जगहों पर रह रहे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने की जिम्मेदारी नगर निगमों की है, पर वे इससे आंखें चुराते देखे जाते हैं।

इसी तरह पहाड़ी इलाकों में अवैध खनन, अवैध निर्माण और सड़कों आदि के लिए होने वाली खुदाई के चलते पहाड़ दरक चुके हैं। नतीजतन, भारी बारिश से उनके भूखंड खिसकने शुरू हो जाते हैं। उनकी जद में आने वाले मकान ध्वस्त हो जाते हैं। बरसात के वक्त मचने वाली तबाही को केवल कुदरत का कहर बता कर प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकता। हर साल बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के कर्मचारियों को हलकान होना पड़ता है। अगर शहरों की बसाहट को सुनियोजित किया जाए, जल निकासी की समुचित व्यवस्था हो तो जलभराव की स्थितियों से काफी हद तक पार पाया जा सकता है। ऐसे ही खतरनाक जगहों पर रह रहे लोगों के पुनर्वा

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