सम्पादकीय

राहुल की नई शैली

Triveni
5 Aug 2021 3:29 AM GMT
राहुल की नई शैली
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हाल में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नई राजनीतिक शैली ने सबका ध्यान खींचा है।

हाल में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नई राजनीतिक शैली ने सबका ध्यान खींचा है। ट्विटर पर सक्रियता से पहले अपनी एक खास वर्ग में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के बाद अब वे असली राजनीति में भी सक्रिय होते दिख रहे हैं। अगर मीडिया की खबरों पर भरोसा करें, तो कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में उन्होंने अपनी हैसियत को जताना शुरू किया है। इसकी सबसे साफ मिसाल पंजाब के मामले में देखने को मिली, जहां उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह की आजाद ख्याल सूबेदारी पर लगाम कसते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष नियुक्त करवाने में बड़ी भूमिका निभाई। राजस्थान के मामले में भी उन्होंने ये साफ कर दिया है कि अशोक गहलोत वहां के ऐसे क्षत्रप नहीं हैं, जो मनमाने ढंग से राज करें। कहा जा रहा है कि इससे पार्टी के अंदर नेतृत्व के सवाल को लेकर चल रहे असमंजस के हल होने की उम्मीद पैदा हुई है।

इसके साथ ही राहुल गांधी ने विपक्षी एकता की कोशिशें तेज की हैं। पिछले हफ्ते विपक्षी नेताओं की बैठक उन्होंने आमंत्रित की, जिसमें बताया गया कि वे बहुत सहज थे और बैठक के केंद्र में बने रहे। उसके बाद उन्होंने मंगलवार को सभी विपक्षी सांसदों को नाश्ते पर बुलाया। वहां से संसद भवन तक साइकिल मार्च किया। खबरों के मुताबिक बैठक में राहुल गांधी ने विनम्रता का परिचय दिया और सबको यह अहसास कराया कि वहां कोई बड़ा या छोटा दल नहीं है। आज देश में विकल्पहीनता की सोच के साथ जिस तरह की निराशा है, उसके बीच राहुल गांधी के इस नए रूप से समाज के एक तबके में उम्मीद जगी है। फिर भी यह नहीं भूलना चाहिए कि अब राजनीति उस दौर से आगे निकल चुकी है, जब चुनावी नतीजे तय करने में इंडेक्स ऑफ ऑपोजिशन यूनिटी को टीवी चैनलों की चर्चां में बहुत अहम बताया जाता था।
सोशल मीडिया के आगमन और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की बिल्कुल अप्रत्याशित राजनीतिक शैली ने राजनीति के संदर्भ बिंदुओं को परिवर्तित कर दिया है। ऐसे में पुराने ढंग की विपक्षी एकता या ट्रैक्टर या साइकिल पर प्रतीकात्मक जुलूस से चुनावों को प्रभावित किया जा सकेगा, यह संदिग्ध है। इसके लिए जमीनी स्तर पर संगठन और गोलबंदी की जो जरूरत है, उसे पूरा करने की दिशा में- खासकर हिंदी भाषी इलाकों में- ना सिर्फ कांग्रेस, बल्कि ज्यादातर दूसरे विपक्षी दल भी अभी बेअसर दिखते हैँ। जब तक इस मोर्चे पर वे आगे नहीं बढ़ते, ठोस उम्मीद नहीं जग सकती।


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