सम्पादकीय

बाबा साहब की शान में आज राहुल-प्रियंका ने कसीदे पढ़े, पर कांग्रेस ने आज तक उन्हें कितना समझा?

Rani Sahu
14 April 2022 12:48 PM GMT
बाबा साहब की शान में आज राहुल-प्रियंका ने कसीदे पढ़े, पर कांग्रेस ने आज तक उन्हें कितना समझा?
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देश में आज बाबा साहब भीमराव आंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) की जयंती पर हर पार्टी और विचारधारा (Ideology) की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले नेताओं में होड़ लगी है

संयम श्रीवास्तव

देश में आज बाबा साहब भीमराव आंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) की जयंती पर हर पार्टी और विचारधारा (Ideology) की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले नेताओं में होड़ लगी है कि कौन कितने बेहतर तरीके से उन्हें याद करता है. हर पार्टी अपनी-अपनी तरह से बाबा साहब को श्रद्धासुमन अर्पित कर रही है. लोकतंत्र (Democracy) की यही महिमा है कि रियल लीडर को आप चाहकर भी तोप-ढांक कर नहीं रह सकते. एक न एक दिन बंजर जमीन से भी पौधों के फुनगे निकलते हैं और वो कब वट वृक्ष बन जाते हैं पता ही नहीं चलता है.
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने दुनिया के सबसे अधिक शोषित-पीडि़त-गरीब समाज के लिए जो किया उसकी मिसाल पूरी दुनिया में नहीं मिलती है. उन्होंने वंचित समाज के उन करोड़ों भारतीयों के अंदर उम्मीद की वो लौ जलाई जिसे उन्होंने अपनी नियति मानकर उसके बारे में पीढ़ियों से सोचना ही बंद कर दिया था. यह देश का दुर्भाग्य है कि उस महान नेता को उसके दुनिया छोड़ने के 4 दशकों बाद सरकारी सम्मान मिला (भारत रत्न) और करीब 6 दशकों बाद समाज उसके कद के बराबर का सम्मान दे रहा है.
आंबेडकर जयंती (14 अप्रैल) पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी ने हर साल की तरह उन्हें श्रद्धांजलि दी है, पर अब सोशल मीडिया में जनता हर बात में बाल का खाल निकालती है. राहुल गांधी ने कहा कि आंबेडकर ने भारत को उसका सबसे मजबूत स्तंभ संविधान दिया है. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, मैं डॉ. बी आर आंबेडकर की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. उन्होंने भारत को उसकी शक्ति का सबसे मजबूत स्तंभ- हमारा पवित्र संविधान- दिया है.
वहीं उनकी बहन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहती हैं कि आज संविधान को कमजोर किया जा रहा है. प्रियंका ट्वीट करती हैं बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के प्रयासों से हमारे देश को एक ऐसा संविधान मिला जिसकी प्रस्तावना में ही देश की मजबूती का जंतर था. बाबासाहब ने न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, आत्मसम्मान एवं देश की एकता व अखंडता के विचारों पर आधारित देश निर्माण का खाका दिया. ये मूल्य हमारी ताकत हैं.
प्रियंका ने यह भी कहा, आज तमाम शक्तियां इतिहास से आए इन मूल्यों पर गहरा प्रहार कर रही हैं. संविधान को कमजोर कर रही हैं. बाबासाहब के सम्मान में हम सबको दृढ़ होकर संविधान की और उसमें निहित मूल्यों की रक्षा करनी होगी. कांग्रेस पार्टी ने भी अपने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर समानता, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के पुरोधा बने रहेंगे. कांग्रेस के और नेताओं ने भी आंबेडकर के लिए श्रद्धा के शब्द निकाले हैं. पर सवाल उठता है कि इतने बड़े महान शख्सियत का नाम उनके समुदाय का वोट लेने के लिए ही किया जाता रहा? उस महान आत्मा को सम्मानित करने में इतनी देर क्यूं हुई? बाबा साहब आंबेडकर को भारत रत्न देने के लिए एक गैरकांग्रेसी सरकार को क्यों कदम उठाना पड़ा.
राहुल गांधी के ट्वीट का जवाब देते हुए वरिष्ठ पत्रकार आनंद रंगनाथन लिखते हैं कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौत 1964 मे हुई और भारत रत्न उन्हें 1955 में ही मिल गया. इंदिरा गांधी की मौत 1984 में हुई पर भारत रत्न उन्हें 1971 में मिल गया. आंबेडकर की मौत 1956 में हुई और भारत रत्न मिला 1990 में. यह बताने की जरूरत नहीं कि आपकी पार्टी बाबा साहब भीम राव आंबेडकर को कितना सम्मान देती है.
गांधी भी पीछे हैं आज आंबेडकर की स्वीकार्यता से
हाल के वर्षों में देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जो दुर्गति हुई है वो एक कटु सत्य है. कुछ हिंदू संगठनों के टार्गेट पर हमेशा गांधी रहे हैं पर इधर देखने में आया है कि कई दूसरी पार्टियां भी अब ऐसे फैसले ले रही हैं जो राष्ट्रपिता के लिए अपमानित करने जैसी हैं. दूसरी तरफ आंबेडकर को लेकर पूरे भारत में कोई पार्टी या प्रेशर ग्रुप ऐसा नहीं है जो आंबेडकर की किसी मुद्दे पर आलोचना भी कर सके. यह आंबेडकर के प्रति उनके समर्थकों का सम्मान ही है कि देश में आज आंबेडकर की किसी मुद्दे पर आलोचना करने वाला नहीं है. आम आदमी पार्टी ने पंजाब में नई सरकार बनाने के बाद फैसला लिया कि हर सरकारी दफ्तर में डॉक्टर भीमराव आंबेडकर और सरदार भगत सिंह की फोटो लगेगी.
जाहिर है कि गांधी की फोटो के बारे में आदेश नहीं है तो उन्हें चुपके से हर दफ्तर के बाहर ही होना है. भारतीय जनता पार्टी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सम्मान में बोलते रहते हैं, पर पार्टी के कुछ लोगों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता. सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर के गांधी के बारे में अपमानजनक बयान देने के बाद पीएम ने बोला था कि वो राष्ट्रपिता का अपमान करने वालों को कभी माफ नहीं करेंगे. शायद यही कारण है कि साध्वी प्रज्ञा को कभी पार्टी में कोई जिम्मेदारी नहीं मिली. पर गाहे-बगाहे अक्सर बीजेपी के कुछ नेताओं की ओर गांधी को लेकर कुछ अपमानजनक बयान आ ही जाते हैं.
कुछ वर्षों पहले एक निजी समाचार चैनल ने गांधी के बाद महान भारतीय की खोज के लिए एक सर्वेक्षण कराया जिसमें डॉ. आंबेडकर को गांधी के बाद महान भारतीय का खिताब दिया गया. आज के माहौल को देखकर ये लगता है कि अगर गांधी को भी सर्वे में शामिल किया जाता तो वो बाबा साहब से बहुत पीछे रहते. दक्षिणपंथी संगठनों और दलित संगठनों दोनों के ही निशाने पर आज गांधी हैं, जबकि बाबा साहब के लिए कहीं से भी विरोध की आवाज नहीं है. फारवर्ड प्रेस अपने एक आर्टिकल में लिखता है कि विश्वविख्यात गांधीवादी इतिहासकार रामचंद्र गुहा भी डॉ. आंबेडकर की तस्वीर के साथ प्रदर्शन करते हैं, जिन्होंने गांधी को स्थापित करने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया, बड़े-बड़े भारी-भरकम ग्रन्थों की रचना कर डाली, लेकिन डॉ. आंबेडकर के ऊपर दस पृष्ठ भी नहीं लिखा.
नेहरू और भीम राव आंबेडकर
डॉक्टर आंबेडकर के समर्थकों का मानना है कि कांग्रेस ने आंबेडकर को संविधान सभा में जाने से रोकने की हर मुमकिन कोशिश की. कहा जाता है कि आंबेडकर की समाज सुधारक वाली छवि कांग्रेस के लिए चिंता का कारण थी. यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें संविधान सभा से दूर रखने की योजना बनाई. बीबीसी के अनुसार संविधान सभा में भेजे गए शुरुआती 296 सदस्यों में आंबेडकर नहीं थे. आंबेडकर सदस्य बनने के लिए बॉम्बे के अनुसूचित जाति संघ का साथ भी नहीं ले पाए.
डॉक्टर आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाने के लिए दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल सामने आए. उन्होंने मुस्लिम लीग की मदद से आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया. यही मंडल बाद में पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने. हालांकि बाद में मुस्लिम लीग और जिन्ना से धोखा मिला और 1950 में वो पाकिस्तान छोड़ भारत आ गए. जिन ज़िलों के वोटों से आंबेडकर संविधान सभा में पहुंचे थे वो हिंदू बहुल होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान का आज हिस्सा बन चुके हैं. नतीजा यह हुआ कि आंबेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बन गए. भारतीय संविधान सभा की उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई. कहा जाता है कि जब कहीं से उम्मीद नहीं बची तो डॉक्टर आंबेडकर को धमकी देनी पड़ी कि वो संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे.
Rani Sahu

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