सम्पादकीय

राहुल गांधी का भाषण: क्या विपक्ष के गठबंधन को नेता मिल गया

Gulabi
4 Feb 2022 9:59 AM GMT
राहुल गांधी का भाषण: क्या विपक्ष के गठबंधन को नेता मिल गया
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राहुल गांधी का भाषण
ज्योतिर्मय रॉय.
बजट सत्र में प्रथानुसार, बजट (Budget) पर राष्ट्रपति के अभिभाषण को लेकर लोकसभा (Lok Sabha) में बुधवार (2 फरवरी, 2022) को धन्यवाद प्रस्ताव राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने पेश किया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मौके का भरपूर इस्तेमाल करते हुए मोदी सरकार के कार्यशैली और नियत पर तीखा प्रहार किया और देश में आने वाले कथित खतरों को लेकर सरकार को आगाह किया. राहुल ने अपने भाषण में पिछले यूपीए सरकार और कांग्रेस सरकार की काम काजों की तुलना एनडीए सरकारों के कामकाज से की.
राहुल गांधी ने पड़ोसी देश चीन द्वारा भारत को घेरने की तैयारी के बारे मे भी सरकार को सचेत किया. अपने भाषण की शुरुआत से ही राहुल का रवैया सत्तारूढ़ बीजेपी के प्रति आक्रामक रहा. राहुल के इस आक्रमक तेवर ने जहां विपक्ष को असमंजस में डाला, वहीं कांग्रेस और विपक्षी दलों ने राहुल को एक नए और संकल्पित नेता के रूप में देखा.
राष्ट्रपति के भाषण के जवाब में राहुल गांधी ने केंद्र और प्रधानमंत्री पर तीखा हमला करते हुए बोला कि इस सरकार के कार्यकाल में देश में असमानता बढ़ रही है. गरीब और गरीब होता जा रहा है, अमीर और अमीर होता जा रहा है. राहुल गांधी ने कहा की, "दो हिंदुस्तान बन रहे हैं – एक अमीरों का हिंदुस्तान और दूसरा गरीबों का हिंदुस्तान और इन दो हिंदुस्तानों के बीच में खाई बढ़ती जा रही है." बेरोजगारी पर राहुल मुखर थे. राहुल ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, "इस पिछले साल तीन करोड़ युवाओं ने रोजगार खोया है. आप बात करते हैं रोजगार देने की, 2021 में तीन करोड़ युवा अपना रोजगार खोए हैं. 50 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी आज हिंदुस्तान में है." राहुल ने आगे कहा, "27 करोड़ लोगों को हमने गरीबी से निकाला था और 23 करोड़ लोगों को आपने गरीबी में वापस डाल दिया."
राहुल द्वारा सही मुद्दों का चयन
राहुल गांधी अपने भाषण में विदेश नीति, केंद्र और राज्य के बीच संबंधों पर आधारित भारत-संघवाद, बेरोजगारी, विनिर्माण क्षेत्र, उद्योगपति AA (अडानी-अंबानी) गठबंधन, नए कृषि कानून, कांग्रेस और यूपीए की पिछली सरकार के कामों पर टिप्पणी करते देखा गया. राहुल ने पेगासस जासूसी का मुद्दा भी उठाने की कोशिश की, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण राहुल को इस मौके पर बोलने नहीं दिया गया. एक परिपक्व नेता के तौर पर राहुल ने उन मुद्दों को उठाया जो देश की जनता की आवाज हैं.
उन्होंने आंकड़ों की गिनती कराते हुए कहा, देश के 64 फीसदी लोगों की आय घटी है, विनिर्माण नौकरियों में 46 फीसदी की गिरावट आई है. भारत के 100 सबसे अमीर लोगों के पास भारत के 55 करोड़ लोगों से ज्यादा संपत्ति है. केवल 10 लोगों के पास भारत के 40 प्रतिशत से अधिक धन है. राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दोनों भारत को जोड़ने और छोटे और मध्यम उद्योगों की मदद शुरू करने का आग्रह किया.
राहुल ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, "एक व्यक्ति को हिंदुस्तान के सब पोर्ट्स, हिंदुस्तान के सब एयरपोर्ट, पावर ट्रांसमिशन, माइनिंग, ग्रीन एनर्जी, गैस डिस्ट्रीब्यूशन, एडिबल ऑयल, जो भी हिंदुस्तान में होता है, उधर अडानी जी दिखाई देते हैं, और दूसरी साइड – अंबानी जी – पेट्रो केमिकल्स, टेलीकॉम, रिटेल, ई कॉमर्स में मोनोपली बनाए हुए हैं."
टीवी पर सीधे प्रसारण का राहुल गांधी ने पूरा लाभ उठाया
सही मायने में राहुल गांधी लोकसभा में एक परिपक्व विपक्षी नेता की तरह बोल रहे थे. उनके भाषण की विषय वस्तु और बोलने की शैली दोनों ही समय के अनुकूल थे. राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव ने राहुल गांधी को कांग्रेस की छवि के साथ-साथ अपनी राजनीतिक छवि चमकाने का मौका दिया और राहुल ने इस सुनहरे मौके का फायदा उठाते हुए इसे शानदार ढंग से निभाया. लोकसभा के इस भाषण के लाइव टेलीकास्ट का फायदा उठाकर राहुल गांधी, कांग्रेस और उनकी बातों को देश की जनता तक पहुंचाने में पूरी तरह सफल रहे.
लेकिन, इस प्रकार के मंच का पूरी तरह से उपयोग तभी किया जा सकता है जब इस मंच में दिया गया भाषण राजनीति से प्रेरित न होकर सीमित मुद्दों के आधार पर दार्शनिक, वैचारिक और प्रेरणादायक हो, ताकि श्रोता को प्रेरित किया जा सके. इसका सकारात्मक प्रभाव राजनीति पर अवश्य ही दिखाई पड़ता है. स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं.
राहुल गांधी महंगाई के मुद्दे पर चूके
राहुल ने अपने भाषण के लिए उन मुद्दों को चुना, जो आज आम जनता के लिए चिंता का विषय हैं. राहुल के भाषण का उद्देश्य चुनाव को देखते हुए राजनीतिक था. लेकिन जल्दबाजी में राहुल गांधी 'महंगाई' जैसा बड़ा मुद्दा नहीं उठा सके और सरकार का ध्यान खींचने में नाकाम रहे. शायद कांग्रेस नेता ने पेगासस जासूसी के मुद्दे को महंगाई के मुद्दे से बड़ा पाया. जबकि आम जनता का पेगासस जासूसी मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है. इस प्रकार के भाषण में समय की कमी और टोकाटाकी के कारण, मुद्दे को चुनने में और अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है. अगर राहुल ने बेरोजगारी के मुद्दे के साथ-साथ महंगाई के मुद्दे को भी उठाया होता तो इसका असर आम जनमानस पर अधिक होता.
राहुल गांधी ने महंगाई की मार को झेल रही आम जनता को मझधार में ही छोड़ दिया. शायद कांग्रेस गरीबी को लेकर उतनी गंभीर नहीं है, जितनी दूसरे मुद्दों पर चिंतित दिखाई देती है. 1974 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने 'गरीबी हटाओ देश बचाओ' का नारा दिया था. उसके बाद करीब तीन दशक तक कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन वे गरीबी को हटा नहीं पाए. गरीबी हटाओ कहना जितना आसान है, उतना ही कठिन है इसे हटाना. गरीबी एक राजनीतिक मुद्दा है, इसकी आड़ में सत्ता हासिल की जा सकती है, लेकिन शायद ही किसी राजनीतिक दल के पास इसे दूर करने का वास्तविक संकल्प हो.
ऐसा नहीं है कि किसी ने गरीबी मिटाने की कोशिश नहीं की, सभी पार्टियों ने कमोबेश कोशिश की है. लेकिन सरकार की प्राथमिकता में कमी और देश की बढ़ती आबादी के कारण यह नासूर बन गया है. देश से गरीबी तभी दूर होगी जब राजनीतिक लाभ को छोड़कर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों मिलकर इस पर एकसाथ काम करें. क्या यह संभव है?
नेतृत्व को लेकर आनाकानी से कांग्रेस कमजोर हो रही है
कांग्रेस की वर्तमान राजनीतिक स्थिति कुछ क्षेत्रों में क्षेत्रीय दलों से भी बदतर है. कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर समय-समय पर तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे हैं. सोनिया गांधी की शारीरिक स्थिति के कारण कांग्रेस के सभापति पद को लेकर उत्पन्न अनिश्चितता और राहुल गांधी द्वारा पार्टी नेतृत्व का उत्तरदायित्व लेने में आनाकानी से कांग्रेस कमजोर हो रही है, जिसके कारण विपक्षी दलों को कांग्रेस की आरक्षित वोट बेंक में सेंध लगाने का मौका मिल रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष पद पर जितनी जल्दी फैसला होगा कांग्रेस के लिए सियासी जंग में उतनी ही आसानी होगी. राहुल गांधी को बहुत जल्द अपनी स्थिति की पुष्टि करनी होगी, नहीं तो 2024 में कांग्रेस की हालत और दयनीय हो जाएगी.
राहुल गांधी से महागठबंधन को आस
केंद्र में बीजेपी की मजबूत पकड़ के कारण विपक्षी दल अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं. इसलिए 2024 में होने वाले आम चुनाव में विपक्षी दल केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए महागठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व सफलता के बाद, तृणमूल सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 'बीजेपी मुक्त भारत' के नारे के साथ राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ एक महागठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए ममता दीदी ने दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की, मुंबई जाकर शरद पवार और आदित्य ठाकरे से भी मुलाकात की.
महागठबंधन का नेतृत्व अपने आप में एक बड़ा सवाल है. क्षेत्रीय मुद्दों, क्षेत्रीय दलों के राजनेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और केंद्रीय सत्ता की भूख के कारण गठबंधन बनाना इतना आसान नहीं है. बीजेपी के बाद, कांग्रेस ही एकमात्र राजनीतिक दल है जिसकी सर्वभारतीय पहचान है जो विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व कर सकती है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र में 'बीजेपी मुक्त भारत' बनाने के जो प्रयास कर रही हैं, उसका नेतृत्व कांग्रेस पार्टी ही कर सकती है. पिछले संसद की मॉनसून सत्र में 15 विपक्षी दलों ने एकत्रित होकर राहुल गांधी के नेतृत्व में संसद के अंदर और संसद के बाहर सरकार को घेरने का प्रयास किया था. उस दौरान राहुल गांधी के नेतृत्व देने की अपनी क्षमता को बखूबी से निभाया है.
इस बार राहुल गांधी के भाषण का साकरात्मक प्रभाव विपक्ष दलों पर पड़ा है. राहुल गांधी के नेतृत्व की कुशलता में परिपक्वता दिखाई दे रहा है. 2024 की तैयारी के लिए राहुल गांधी को समय बर्बाद न करके तुरंत कांग्रेस सभापति का पदभार सम्हाल लेना चाहिए, अन्यथा कांग्रेस पर बिपक्ष की आस्था बिखर जाएगी.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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