सम्पादकीय

कर्तव्य पथ पर राहुल गांधी

Rani Sahu
11 Sep 2022 10:15 AM GMT
कर्तव्य पथ पर राहुल गांधी
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by Lagatar News
Dr. Pramod Pathak
एक मुहावरा है-देर आयद, दुरुस्त आयद. अब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के संदर्भ में यह मुहावरा कितना सटीक बैठता है, यह कहना अभी मुश्किल है क्योंकि अभी उनकी यात्रा का असर भारत के लोगों तक पहुंचने में वक्त लगेगा. लेकिन, राहुल गांधी यह तो स्पष्ट कर दे रहे हैं कि उनकी राजनीति में रुचि है, तो जो लोग उनकी राजनीतिक रुझान को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे थे, उन्हें इतना तो प्रतीत हो ही रहा होगा कि देर से ही सही राहुल गांधी अब राजनीति को लेकर किसी प्रकार की दुविधा में नहीं हैं. जाहिर है यह भाजपा के लिए चिंता का विषय होगा क्योंकि अभी तक उन्हें लगता था कि राहुल गांधी राजनीति के प्रति बहुत गंभीर नहीं हैं. इस लिहाज से राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से उन्हें थोड़ी चिंता जरूर हुई होगी. आज देश को और कांग्रेस को ऐसी ही किसी पहल की बड़ी आवश्यकता थी. इसका दूसरा बड़ा संदेश यह है कि कांग्रेस मुक्त भारत की आशंका फिलहाल नहीं है.
राहुल पर बीजेपी का प्रहार
वैसे राहुल ने पहले भी कुछ ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे लगा कि उनकी राजनीति में रुचि बढ़ रही है. जैसे एक बार मुंबई की लोकल ट्रेन में उन्होंने आम लोगों के साथ बैठकर यात्रा की थी. वह कांग्रेस काल की बात थी। लेकिन संदेश स्पष्ट था. किंतु बीच-बीच में राहुल गांधी के कुछ कदम राजनीति के प्रति उनकी अरुचि भी दर्शा देते थे और बहुत से लोगों को यह लगता था कि राहुल गांधी राजनीति के प्रति उदासीन हैं या फिर इस धारणा को जानबूझकर प्रचारित किया जाता था और भाजपा इसमें अपने प्रचार तंत्र का पूरा इस्तेमाल करती थी. खासकर 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने इस पर अपने प्रचार तंत्र की पूरी ताकत झोंकी. दरअसल, 2014 की सफलता के बाद भाजपा ने अपनी प्रचार मशीनरी का इस्तेमाल इस धारणा को प्रचारित करने में किया की राहुल गांधी राजनीति के लिए नहीं बने हैं. राहुल गांधी को राजनीति से खारिज करने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं उठा रखी. उनका दो तरफा प्रहार होता था. एक तो यह साबित करने की कोशिश करना कि राहुल गांधी राजनीति के लिए बहुत इच्छुक नहीं हैं और उन्हें इसमें जबरदस्ती खींचा जा रहा है.
राहुल के लिए फोटो शॉप और डीप फेक
दूसरा भाजपा यह साबित करना चाहती थी कि राहुल गांधी अपरिपक्व हैं और राजनीति उनके बस की बात नहीं है. इसके लिए उन्होंने अपनी सोशल मीडिया की पूरी टीम की ताकत को झोंक दिया. सूचना तकनीकी का गलत-सही इस्तेमाल कर यह भ्रम फैलाया गया. फोटो शॉप, डीप फेक जैसी तकनीकी के जरिए राहुल गांधी द्वारा बोले गए बातों को तोड़ -मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया एवं व्हाट्सएप तथा फेसबुक जैसे प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर इसे फैलाने का काम किया गया. शुरुआती दौर में उन्हें इसमें सफलता भी मिली क्योंकि तब कांग्रेस की आईटी सेल इतनी विकसित नहीं थी और इस का जवाब नहीं दे पाती थी. लेकिन राहुल का विचलित नहीं होना उन लोगों की इस रणनीति को पूरी तरह सफल नहीं होने दे रहा था. राहुल गांधी थोड़े-थोड़े अंतराल पर राजनीति के प्रति अपनी रुचि और समझ दिखा दिया करते. हालांकि कई बार उनकी कुछ हरकतें गंभीर नहीं दिखाई देती थी और भाजपा का प्रचार तंत्र फिर से राहुल गांधी पर हमला तेज कर देता. वैसे कई बार अपने को बहुत गंभीर और बुद्धिजीवी समझने वाले राजनेता भी ऐसी हरकतें कर देते हैं. भूलवश या भावनावश ऐसा होना स्वाभाविक है. लेकिन इस पर पूरी सोशल मीडिया की टीम को लगा देना और इसे नमक-मिर्च लगाकर प्रचारित करना राजनीति की रणनीति का हिस्सा बना दिया गया. इसके पीछे मुख्य वजह यह रही कि भाजपा को यदि राष्ट्रीय राजनीति में कहीं से गंभीर चुनौती मिल सकती है, तो वह कांग्रेस ही है.
कांग्रेस और गांधी परिवार
कांग्रेस को दिशा और एकजुटता देने में गांधी परिवार, खासकर राहुल गांधी की प्रमुख भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता. भाजपा का बार-बार अपने प्रचार तंत्र को राहुल गांधी के इर्द-गिर्द केंद्रित करना उनकी असुरक्षा जाहिर करता है. तमाम नारों और जुमलों के बावजूद भाजपा अभी इस बात के प्रति विश्वस्त नहीं है कि राहुल और कांग्रेस उसके लिए चुनौती नहीं है. यही कारण है कि बार-बार वह राहुल पर हमला करती है. एक गौरतलब बात और भी है कि भाजपा जब भी कांग्रेस की बात करती है, तो राहुल और गांधी परिवार के संदर्भ में ही करती है. यानी वह इस बात को भी भलीभांति समझती है कि कांग्रेस को फिर से मजबूती प्रदान करने में राहुल ही सक्षम हैं. अजीब बात है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बात को लेकर ज्यादा परेशान दिखता है कि कांग्रेस कैसे मजबूत हो. जबकि यह तो कांग्रेस की समस्या होनी चाहिए. भाजपा का बार-बार यह कहना कि कांग्रेस अपने नेताओं को एकजुट नहीं रख पा रही और यह राहुल की कमजोरी है यही साबित करता है कि भाजपा की चिंता राहुल की कांग्रेस है, बिना राहुल वाली कांग्रेस नहीं.
देश से ज्यादा कांग्रेस की चिंता क्यों ?
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर हो रही भाजपा की बयानबाजी इसका ताजा उदाहरण है. यह कहा जा रहा है कि राहुल को पहले कांग्रेस जोड़ने का प्रयास करना चाहिए. इसके पीछे भाजपा की कांग्रेस तोड़ने की मंशा ज्यादा दिखाई पड़ती है. उनकी सोशल मीडिया ब्रिगेड की आधी ताकत इसी में खपत हो रही है कि कांग्रेस की कमियां क्या हैं और कैसे दूर करना चाहिए. दरअसल, यह उनकी रणनीति का हिस्सा है. कांग्रेस से सहानुभूति रखने वाली जमात और कांग्रेस से जुड़े हुए लोगों में यह भावना भरना कि कांग्रेस की प्रमुख कमजोरी राहुल गांधी ही हैं. हाल-फिलहाल की बयानबाजी से यह लगता है कि कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को कांग्रेस की चिंता है. या फिर भाजपा को कांग्रेस के बारे में कांग्रेस से ज्यादा मालूम है. देश से ज्यादा कांग्रेस की चिंता कुछ और कहानी बताते हैं. दरअसल, राजनीति अब मार्केटिंग और रणनीति का खेल है-नकारात्मक और भ्रामक. और इसमें बड़े प्रचार, बड़ा भ्रम और बड़ा झूठ कारगर हथियार हैं. यह मैनेजमेंट का दौर है और इसमें मीडिया मैनेजमेंट, वोटर मैनेजमेंट और इमेज मैनेजमेंट महत्वपूर्ण हो गए हैं. अगली पीढ़ी का क्या होगा, इससे मतलब नहीं है. अगला चुनाव कैसे जीता जाए, अब यह महत्वपूर्ण है.
लड़ने का मन बना चुके राहुल
राहुल की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस को कहां तक ले जाएगी यह तो वक्त बताएगा लेकिन यदि इस यात्रा से इतना भी साबित हो जाए कि राहुल गांधी लड़ने का मन बना चुके हैं तो देश की राजनीति पर बड़ा असर पड़ेगा. मगर कांग्रेस को अपने आईटी सेल को धार देनी होगी और मीडिया मैनेजमेंट और इमेज मैनेजमेंट पर ध्यान देना होगा. तकनीकी के इस दौर में सत्य दिखता नहीं है, जो दिखाया जाए, वही सत्य होता है. वैसे एक बात तो सही है कि आज भारत जोड़ो जैसे किसी अभियान की बड़ी आवश्यकता है क्योंकि सत्ता के लिए बहुत से लोग भारत को भी दांव पर लगाने से गुरेज नहीं करेंगे. राजनीति का मिशन यानी उद्देश्य और विजन यानी परिकल्पना दोनों ही बदल गए हैं. भारत जोड़ो यात्रा किस परिधान में शुरू की गई यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि किस परिवेश में की गई और क्यों यह जरूरी है, यह महत्वपूर्ण है. भारत की चिंता या भारत जोड़ने का प्रयास किसी एक व्यक्ति या दल का एकाधिकार नहीं है.
Rani Sahu

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