सम्पादकीय

राहुल गांधी ने AAP को पंजाब तोहफे में दे दिया, लेकिन कांग्रेस चाटुकार इसे मानने को तैयार नहीं

Gulabi
11 March 2022 6:01 AM GMT
राहुल गांधी ने AAP को पंजाब तोहफे में दे दिया, लेकिन कांग्रेस चाटुकार इसे मानने को तैयार नहीं
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राहुल गांधी ने AAP को पंजाब तोहफे में दे दिया
अनिता कत्याल.
बीते सात वर्षों से लगातार जारी चुनावी हार के बाद, गुरुवार को आए पांच राज्यों के चुनावी नतीजों (Assembly Elections Results) से यह साफ हो गया है कि कभी देशभर में राज करने वाली पार्टी कांग्रेस (Congress) देश की राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने के रास्ते में है. पांच में से शून्य का आंकड़ा तो यही बताता है. पंजाब में नई-नई आई आम आदमी पार्टी (AAP) ने कांग्रेस को जड़ से उखाड़ फेंका है और उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में यह मौजूदा BJP सरकार को बाहर करने में नाकामयाब रही है. जहां तक बात उत्तर प्रदेश की है तो कांग्रेस यहां कभी बड़ी खिलाड़ी नहीं थी, इसलिए इस हिंदी बेल्ट में पार्टी के पराजय पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
अब कांग्रेस के पास केवल दो राज्य सरकारें हैं, राजस्थान और छत्तीसगढ़. झारखंड और तमिलनाडु में यह जूनियर पार्टनर है. गुरुवार को नतीजे पहले से हताश कांग्रेस कैडर को और अधिक निराश करेंगे. साथ ही गांधी परिवार के नेतृत्व, खास तौर पर राहुल गांधी, को लेकर गंभीर सवाल खड़े करेंगे. जब सितंबर में पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव होगा तो क्या राहुल गांधी अपनी उम्मीदवारी पेश करेंगे? या ये नतीजे उनकी वापसी को टालने वाले साबित होंगे?
पंजाब में कांग्रेस छोड़ आप में जा सकते हैं कई नेता
हालांकि, पार्टी इन ताजा नतीजों में मिली हार को समझने का प्रयास कर रही है, लेकिन पार्टी के भीतर असंतोष के स्वर उठने लगे हैं और खामोशी के साथ नेतृत्व में परिवर्तन की मांग जोर पकड़ रही है. आत्मनिरीक्षण और संबंधित सुधार के प्रयासों की बात भी की जा रही है. साथ ही यह भी चर्चा है कि पार्टी से कुछ और नेता अपनी दूरी बना सकते हैं, पहले भी देखा गया है कि राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले नई पीढ़ी के कई नेता पार्टी से अपना दामन छुड़ा चुके हैं.
एक सीनियर कांग्रेस नेता ने उदासी से टिप्पणी की, 'कांग्रेस में और अधिक पलायन देखने को मिल सकता है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि पंजाब में इसके नेता और कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी में शामिल होने लगें.'
उम्मीद की जा रही है कि 23 सीनियर लीडरों का समूह या जिसे जी-23 कहा जाता है, जिसने दो साल पहले सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पूर्णकालिक अध्यक्ष और संगठनात्मक सुधार की मांग की थी, छह महीने के खामोशी के बाद दोबारा अपनी आवाज बुलंद करने लगे. आगे की रणनीति तैयार करने के लिए यह समूह जल्द ही बैठक करने वाला है, उन्हें उम्मीद है कि उनके प्रयासों को पार्टी के भीतर और अधिक समर्थन मिलेगा. जी-23 अभी अपनी संख्या बढ़ाने में सफल नहीं रहा है. इसके सदस्यों ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और बागी नेता सचिन पायलट को अपने साथ आने का ऑफर दिया था, लेकिन इन दोनों नेताओं ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी.
सबकी निगाहें सचिन पायलट की ओर
वैसे यह समूह अपने आप अक्षम है क्योंकि इसके ज्यादातर नेताओं, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भुपिंदर सिंह हुड्डा को छोड़कर, के पास बड़ा कदम उठाने के लिए व्यापक जनाधार नहीं है. जबकि हुड्डा बीते कई महीनों से इसके लिए प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने 'विपक्ष आपके समक्ष' के बैनर तले कई आम सभाएं भी की, हालांकि पार्टी की ओर से इसके लिए आधिकारिक स्वीकृति नहीं थी. वे 13 मार्च को कुरुक्षेत्र में एक बड़ी आमसभा का आयोजन करने वाले हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या हुड्डा इस सभा में पार्टी के नेतृत्व से दो-दो हाथ करेंगे.
हुड्डा भले ही गांधी परिवार के खिलाफ बगावत की घोषणा न करें, लेकिन इतना तो साफ है कि पार्टी के कमजोर होते नेतृत्व के कारण, राज्यों के नेता आने वाले दिनों में और अधिक आक्रामक होने वाले हैं. अब सभी की निगाहें सचिन पायलट की ओर हैं, जो पहले भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत की असफल कोशिश कर चुके हैं. इसी तरह छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके प्रतिद्वंदी टीएस सिंहदेव के बीच तनातनी जारी है.
पार्टी का एक बड़ा तबका निजी तौर पर यह मानता है कि राहुल गांधी के पास कांग्रेस का नेतृत्व करने का गुण नहीं है. हालांकि, यह बात नेतृत्व परिवर्तन के तौर पर अभी तक सामने नहीं आई है. जी-23 ने अपने पत्र में इसका जिक्र किया था, लेकिन खुले तौर पर यह कहने से पीछे हट गया कि गांधी परिवार के बाहर किसी दूसरे को कांग्रेस की जिम्मेदारी दी जाए क्योंकि राहुल गांधी अपना प्रदर्शन दिखाने में नाकाम साबित हुए हैं. आने वाले दिन ये बताएंगे कि यह अभियान तेज होगा या नहीं.
'हार के लिए एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं'
कांग्रेस में गहरी निराशा और मोहभंग के बावजूद, ऐसे बागी समूह के लिए नेतृत्व परिवर्तन की अपनी मांग को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाना आसान नहीं होगा. यदि यह समूह ऐसा कुछ करता है तो गांधी परिवार के उन वफादारों से इसे कड़ा प्रतिरोध मिलेगा, जो अभी भी पार्टी में अपना मजबूत प्रभाव रखते हैं.
ये चाटुकार इस तथ्य को नजरअंदाज करने को तैयार हैं कि राहुल गांधी ने ऐन चुनाव के वक्त पंजाब में अपने सेनापतियों को बदलकर पंजाब को आम आदमी पार्टी के हाथों सौंप दिया, साथ ही राहुल राज्य इकाई में मचे अंतर्कलह को शांत करने में असफल रहे. इसी तरह, कांग्रेस उत्तराखंड को दोबारा हासिल कर सकती थी, यदि राहुल गांधी ने हरीश रावत को सीएम का चेहरा घोषित किया होता और यहां पार्टी की भीतरी लड़ाई से कड़ाई से निपटा होता.
जैसा कि उम्मीद की जा रही थी, नतीजे आने के बाद कांग्रेस के प्रवक्ता यह कह रहे हैं कि पार्टी की इस जबरदस्त पराजय के लिए एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा. गांधी परिवार पर उनका भरोसा बरकरार है. कांग्रेस एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'गांधी परिवार के लोगों को क्यों इस्तीफा देना चाहिए? क्या उन्हें हटाने की मांग करने वाले उनसे बेहतर हैं? जो भी हो, बेहतर भविष्य के लिए हम गांधी परिवार के नेतृत्व पर भरोसा करते हैं.'
उनका कहना है, जहां तक बात पार्टी अध्यक्ष के चुनाव की बात है तो इस पर कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगी. लेकिन गांधी परिवार के वफादारों का कहना है कि इस बात का कोई कारण नहीं है कि राहुल गांधी को दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहिए.
बीजेपी के दिवंगत नेता अरुण जेटली अक्सर कहा करते थे कि 'कांग्रेस को जितना अधिक नुकसान होता है, उनके नेताओं को उतना ही ईनाम हासिल होता है.' यह देखना होगा कि क्या वह सही थे.
(लेखक दिल्ली की स्वतंत्र पत्रकार हैं. उन्होंने Times of India में विशेष संवाददाता के तौर पर काम किया है और The Tribune में दिल्ली ब्यूरो की चीफ रही हैं.)
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