सम्पादकीय

खोखले चिंतन में जकड़े राहुल गांधी, कांग्रेस के लिए घातक सिद्ध होता शीर्ष नेतृत्व का शुतुरमुर्ग सरीखा रवैया

Subhi
6 Feb 2022 5:19 AM GMT
खोखले चिंतन में जकड़े राहुल गांधी, कांग्रेस के लिए घातक सिद्ध होता शीर्ष नेतृत्व का शुतुरमुर्ग सरीखा रवैया
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राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान लोकसभा में राहुल गांधी ने जो कुछ कहा, उससे फिर यही सिद्ध हुआ कि वह पूरी तरह वामपंथी सोच से ग्रस्त हैं।

संजय गुप्त: राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान लोकसभा में राहुल गांधी ने जो कुछ कहा, उससे फिर यही सिद्ध हुआ कि वह पूरी तरह वामपंथी सोच से ग्रस्त हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने की कोशिश में उन्होंने दो तरह के भारत होने यानी अमीरों और गरीबों की खाई का रोना रोया। उन्होंने मोदी सरकार पर कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के लिए काम करने का अपना आरोप दोहराते हुए यह भी कह दिया कि कूटनीति के मामले में मोदी सरकार पूरी तरह विफल है। उन्होंने चीन के अतिक्रमणकारी रवैये का दोष भी मोदी सरकार पर मढ़ दिया। राहुल या तो इस तथ्य से अनजान हैं या फिर जानबूझकर उसकी अनदेखी कर रहे हैं कि विकसित देशों और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं तक में आबादी का एक छोटा सा हिस्सा ही अमीर होता है। इसमें भारत भी कोई अपवाद नहीं। अंग्रेजों के शासन में भी यह बात जितनी सही थी, काफी कुछ उतनी ही आज भी है। हां, इतना अंतर अवश्य आया है कि आजादी के बाद देश में जहां चार-पांच घरानों के पास ही अरबों की संपदा हुआ करती थी, वहीं आज बड़ी संपति वाले लाखों घराने हैं।

अर्थव्यवस्था को ऊर्जा प्रदान करते नए उद्यमों पर निशाना

राहुल ने स्टार्टअप पर भी कटाक्ष किया, किंतु ऐसा करते हुए वह भूल गए कि यही नए उद्यम तमाम युवाओं को रोजगार दे रहे हैं। अधिकांश स्टार्टअप पहली पीढ़ी के युवा उद्यमियों ने खड़े किए हैं, जिनके पीछे किसी पारिवारिक कारोबारी घराने का सहारा नहीं। देश-विदेश के दिग्गज निवेशकों द्वारा उनके उद्यमों में किया गया निवेश उनकी सफलता की कहानी कहता है। यह ठीक है कि कोविड काल में कुछ कारोबारों का काम प्रभावित हुआ, लेकिन जिस तेजी से अर्थव्यवस्था पटरी पर आई है वह उल्लेखनीय है। इसकी सराहना अनेक आर्थिक विश्लेषकों ने भी की है। इसके बावजूद राहुल और उनकी जैसी सोच वाले लोग नोटबंदी को छोटे उद्यमों की तबाही की वजह बताने में लगे हुए हैं। चूंकि अभी उद्योगीकरण की रफ्तार वैसी नहीं जैसी होनी चाहिए, इसलिए मोदी सरकार ने पिछले दो तीन वर्षो में इसके लिए प्रयास किए हैं कि भारतीय उद्यमी आगे आकर उन उद्योगों में अपना निवेश बढ़ाएं, जो इस समय चीन से पलायन कर रहे हैं। मोदी सरकार लगातार इस पर जोर देती रही है कि सरकार का काम उद्योग चलाना नहीं है। अपने बजट भाषण में निर्मला सीतारमण ने कहा भी कि मोदी सरकार न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन में विश्वास रखती है। इसका आशय यही है कि सरकार की प्राथमिकता उद्योगों के अनुकूल परिवेश निर्मित करने पर है।

कोविड महामारी ने भारत में छोटे और मझोले उद्योगों के लिए कई चुनौतियां उत्पन्न की हैं। उन्हें इस चुनौती का सामना करने के लिए कई रियायतें दी गई हैं, लेकिन यह ध्यान रहे कि अकेले रियायतों के दम पर उद्योग फल-फूल नहीं सकते। हमारे उद्यमी यह याद रखें कि मजबूत उद्योग तभी खड़े होते हैं, जब वे उत्पादन, गुणवत्ता, तकनीक और उत्पादकता के मामले में विश्वस्तरीय मानदंडों के अनुरूप हों। दुर्भाग्य से हमारे तमाम उद्योग इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते। समस्या यह नहीं कि भारत में बाजार नहीं है, बल्कि यह है कि उसकी आवश्यकता का एक बड़ा हिस्सा आयात से पूरा होता है। ऐसे में कारोबारियों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे मोदी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रहीं सुविधाओं और अवसरों का लाभ उठाएं और प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत का जो लक्ष्य तय किया है, उसे सही अर्थों में आत्मसात करें।

समाजवादी सोच से नहीं होगा भला

राहुल यह चाहते हैं कि सरकार ही सारे उद्योग चलाए और अधिकतम लोगों को सरकारी नौकरियां दे। यह गुजरे जमाने की वह समाजवादी सोच है, जिसका आज के युग में कोई महत्व नहीं, लेकिन कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में जारी अपने घोषणापत्र में यह वादा किया है कि वह 20 लाख सरकारी नौकरियां देगी। क्या राहुल यह बताएंगे कि जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार थी या आज जिन राज्यों में उसकी अथवा उसके सहयोगी दल शासन में हैं, वहां केवल सरकारी नौकरियों के जरिये बेरोजगारी दूर की जा रही है? जब आर्थिक गतिविधियों में निजी क्षेत्र का योगदान वक्त की जरूरत है, तब राहुल उलटी गंगा बहाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा करके वह जनता को बरगलाने के साथ उसे बेहतर जीवन स्तर की संभावनाओं से वंचित करने का ही काम कर रहे हैं

विदेश नीति पर भी वास्तविकता से दूर

अपने भाषण में राहुल ने यह साबित करने की भी कोशिश की कि अमेरिका सहित कई अन्य देशों से बेहतर संबंध बनाने का ही परिणाम है कि चीन और पाकिस्तान की नजदीकियां बढ़ी हैं। इससे अधिक हास्यास्पद दृष्टिकोण और कोई नहीं हो सकता। अमेरिका के साथ करीबी संबंध पिछले लगभग 20 सालों की विदेश नीति का हिस्सा हैं। इनमें 10 साल का संप्रग शासन भी शामिल है। यह अच्छा हुआ कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राहुल को कूटनीति का पाठ पढ़ाते हुए यह याद भी दिलाई कि नेहरू के शासनकाल में ही चीन ने भारत पर हमले का दुस्साहस किया और इसके एक साल बाद पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर के एक हिस्से को चीन को सौंप दिया। यह भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका ने भी चीन-पाकिस्तान गठजोड़ पर राहुल के विचार को खारिज कर दिया। चीन की विस्तारवादी नीति से पूरी दुनिया परिचित है। 1962 में भारत पर किया गया हमला उसकी विस्तारवादी नीति का ही परिणाम था। वह आज भी अरुणाचल और लद्दाख को लेकर अनर्गल दावे करता रहता है। वह पाकिस्तान के जरिये दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है। यह बात और है कि पाकिस्तान को यह समझ नहीं आ रहा कि वह उसके जाल में बुरी तरह फंस चुका है। तमाम तरह के कर्जों और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के जरिये चीन ने पाकिस्तान को एक तरह से अपना उपनिवेश बना लिया है।

मुगालते से बाहर निकलें राहुल

कांग्रेसजन राहुल के नेतृत्व को लेकर चाहे जो दावे करें, लेकिन सच यही है कि कांग्रेस के सिमटते जनाधार की सबसे बड़ी वजह गांधी परिवार का जमीनी यथार्थ से कटा हुआ चिंतन है। यह खोखला चिंतन पार्टी का बेड़ा गर्क करने के साथ देश को एक सार्थक एवं रचनात्मक विपक्ष से भी वंचित कर रहा है। विकास को गरीब विरोधी ठहराने की कोशिश लोगों को बरगलाने का तो काम कर सकती है, लेकिन वह देश को सही दिशा नहीं दे सकती।


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