सम्पादकीय

भारत को ब्रिटेन से आइडिया लाए राहुल

Rani Sahu
26 May 2022 7:10 PM GMT
भारत को ब्रिटेन से आइडिया लाए राहुल
x
भारत को भविष्य में कौनसी दिशा ग्रहण करनी चाहिए

भारत को भविष्य में कौनसी दिशा ग्रहण करनी चाहिए, प्रगति के लिए कौनसा रास्ता चुनना चाहिए, सबसे बढ़कर भारत की पहचान क्या है, उससे क्या अभिप्रेत है, यह सब जानने-बूझने के लिए सोनिया कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेता राहुल गांधी लंदन गए थे। इस प्रकार के प्रश्नों एवं समस्याओं के समाधान तलाशने के लिए लंदन को क्यों चुना गया, इसको लेकर भारत में कुछ लोग हलकान हो रहे हैं। कांग्रेस हैरान है कि इसमें इतने अचंभे वाली बात कौनसी है? अपने-अपने हिसाब से दोनों पक्ष ही ठीक हैं। कांग्रेस की स्थापना ही लंदन का आइडिया था। उसका भारत के आइडिया से कुछ लेना-देना नहीं था। भारत का आइडिया तो 1857 का स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया महासंग्राम था। चाहे उसमें भारत की पराजय हुई थी, लेकिन उस महासंग्राम ने भारत को ऊर्जावान कर दिया था। वह क्रोधोन्मत हो गया था। लंदन समझ गया था कि अब गोरों को भारत से भगाए जाने का यह भारत का आइडिया समाप्त होने वाला नहीं है। इसलिए लंदन ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए सेफ़्टी वाल्व के तौर पर कांग्रेस की स्थापना की थी। लंदन यह तो समझ ही गया था कि कांग्रेस भी ब्रिटिश साम्राज्य को अनंत काल तक सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती थी। लंदन ने दूसरी रणनीति के तहत, भारत की पहचान, सामाजिक सामंजस्य और भारत के स्वरूप को बदलने के लिए कुछ सूत्र कांग्रेस को दिए। कांग्रेस की जि़म्मेदारी यह थी कि वह भारत को इन्हीं सूत्रों के सहारे स्वयं भी समझे और दूसरों को भी समझाए। कांग्रेस ने इन सूत्रों को पूरी स्वामिभक्ति से स्वीकार किया और भारत में उनको प्रचारित भी किया। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र था, भारत पर आर्यों के आक्रमण का कपोल कल्पित सिद्धांत। कांग्रेस ने इस सिद्धांत को स्वीकार किया और जवाहर लाल नेहरू ने अपनी किताबों में इसका प्रचार भी किया। बाबा साहिब अंबेडकर ने इस सिद्धांत का विरोध ही नहीं किया, बल्कि इसे शरारतपूर्ण भी कहा। ताज्जुब ही कहा जाएगा कि इस पर कांग्रेस ने अंबेडकर को ब्रिटिश एजेंट कहा। यानी कोयला दूसरे पर काला होने का आरोप लगाए। अंग्रेज़ों ने कहा कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, कांग्रेस ने इसका प्रचार किया। कि़स्सा कोताह यह कि कांग्रेस ने आज़ादी के बाद भी सरकार 'लंदन के आइडिया' से ही संचालित की। ज़ाहिर है इससे भारत में ग़ुस्सा पनपता। यदि देश को 'आइडिया फ्राम लंदन' से ही चलना था तो अंग्रेज़ों को भगाने की क्या जरूरत थी? इसका उत्तर भी अपने समय में बाबा साहिब अंबेडकर ने ही दिया था। उन्होंने कहा था कि लोगों को भ्रम है कि कांग्रेस किसी आइडिया के आधार पर लड़ रही है। वह केवल सत्ता या कुर्सी के लिए ही लड़ रही है। आरोप स्पष्ट था कि कांग्रेस भारत की सत्ता 'लंदन के आइडिया' से चलाने के लिए तैयार है, शर्त केवल इतनी है कि गोरे शासक सत्ता उनको सौंप दें। दोनों पक्षों ने ईमानदारी से किया। इतनी ईमानदारी से कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारत में से ब्रिटिश सत्ता समाप्त हो जाने के बाद भी स्वतंत्र भारत की कमान लार्ड माऊंटबेटन को सौंप दी। माऊंटबेटन भारत के पहले गवर्नर जनरल थे। यह माऊंटबेटन का ही आइडिया था कि गिलगित पाकिस्तान के हवाले कर दिया जाए। इस आइडिया को क्रियान्वित करने में पंडित नेहरू की कितनी भूमिका रही है, इसकी स्वतंत्र रूप से जांच हो सकती है। पुरानी फाइलें जांची-परखी जाएं तो कितना कुछ उगल सकती हैं।

जब हिंदुस्तान की बागडोर सोनिया जी के हाथ में ही आ गई तो लंदन को आइडिया देने के लिए कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष जमावड़ा करने की भी जरूरत नहीं रही। लेकिन कांग्रेस के दुर्भाग्य से 2014 में सत्ता उन लोगों को सौंप दी, जो भारत को भारत के आइडिया से ही चलाना चाहते हैं। ज़ाहिर है इससे दोनों ही संकट में आ गए। लंदन से कांग्रेस को भारत चलाने के लिए जो लोग आइडिया देते थे, वे भी और दिल्ली में बैठ कर उस आइडिया से भारत को हांकते थे, वे भी। पिछले छह-सात साल से जो जगह-जगह छटपटाहट दिखाई दे रही है, वह इसी को लेकर है । कांग्रेस भी संकट में है क्योंकि उसके पास अपना कोई 'भारतीय आइडिया' नहीं है। वह शुरू से ही लंदन के आइडिया से ही भारत चलाती थी। इसलिए राहुल गांधी अंततः आइडिया की तलाश में लंदन पहुंच ही गए। इस बार 'भारत को कैसे चलाना है', इस आइडिया की तलाश नहीं हो रही थी, क्योंकि चलाने का सवाल तो तब आएगा जब कांग्रेस सत्ता में होगी। इस बार तो लंदन में वह आइडिया तलाशा जा रहा था जिससे भारत की सत्ता पुनः कैसे छीनी जा सके। वैसे भी यूरोप के लोग शताब्दियों से इस बात के माहिर रहे हैं कि एशिया के देशों में सत्ता कैसे छीनी जाती है। वैसे आइडिया की तलाश में राहुल गांधी रोम भी जा सकते थे, लेकिन शायद लंदन की ख्याति सत्ताएं छीनने में रोम से ज्यादा है। लेकिन लंदन में राहुल गांधी को भारत को समझने के लिए क्या आइडिया मिला? लंदन ने उन्हें भारत के इतिहास में झांकने का कौनसा मार्ग दिखाया? राहुल गांधी की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने इस मामले में गोपनीयता का ध्यान नहीं रखा। उन्होंने वह आइडिया सार्वजनिक कर दिया। राहुल गांधी का कहना है कि हिंदुस्तान कभी एक राष्ट्र नहीं रहा। 1947 में अलग-अलग स्टेट्स ने आपस में समझौता करके इंडिया नाम के देश की स्थापना की। उनका यह भी कहना है कि यह सब कुछ संविधान में लिखा हुआ है। भारत के संविधान में इंडिया अथवा भारत को यूनियन आफ स्टेट्स लिखा है।

इस वाक्य को राहुल गांधी ने जैसा समझा है, उसकी घोषणा उन्होंने लंदन की धरती पर जाकर की। राहुल गांधी की इस समझ पर और लंदन में बैठे अदृश्य लोगों की समझ पर, जो राहुल गांधी को इस प्रकार की व्याख्या रटा रहे हैं, अवश्य ही आज बाबा साहिब अंबेडकर आंसू बहा रहे होंगे। भारत क्या और और उसका अस्तित्व कितना प्राचीन है, इसको जानने के लिए उन्हें अंबेडकर का संविधान सभा में दिया गया अंतिम भाषण अवश्य पढ़ना चाहिए। भारत अमेरिका की तर्ज़ पर विभिन्न देशों द्वारा संधि करके बना देश नहीं है। उसका अस्तित्व 1947 से कहीं प्राचीन है। राहुल गांधी महाभारत का नाम तो सुने होंगे, या उसको सुनने के लिए भी लंदन के आइडिया की जरूरत है? उसे पढ़ें तो कम से कम उन्हें भारत का भूगोल और राष्ट्र का संकल्प अवश्य पता चल जाएगा। भारत को समझने के लिए अब कांग्रेस को यूरोप वाला आइडिया छोड़ देना चाहिए। वह युग समाप्त हो गया। राहुल गांधी ने शायद ध्यान नहीं दिया कि यूरोप तो खुद हिंदुस्तान वाले आइडिया की तलाश कर रहा है। यूरोप का आइडिया शोषण, एकाधिकार और दूसरों को परतंत्र बनाने का है। भारत ने दो सौ साल यह आइडिया झेला है। फ्रांस की तथाकथित क्रांति के बाद जब पूरे यूरोप ने समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का नारा लगा कर एशिया और अफ्रीका के देशों को लुभाना शुरू किया था तो बाबा साहिब अंबेडकर ने उन्हें फटकारा था कि ये सभी संकल्पनाएं तथागत बुद्ध की दी हुई हैं और भारत की मिट्टी से जुड़ी हैं। हैरानी है कि कांग्रेस अपने संस्थापक सर ह्यूमरोज के सुपुर्दे ख़ाक हो जाने के सौ साल बाद भी भारत के लिए वहीं से आइडिया तलाश रही है।
कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
ईमेलः [email protected]

सोर्स- divyahimachal


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story