सम्पादकीय

महंगाई पर रार

Subhi
7 April 2022 3:46 AM GMT
महंगाई पर रार
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इस वक्त देश में महंगाई अपने चरम पर है। पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों की वजह से इसका रुख लगातार ऊपर की ओर बना हुआ है। इससे स्वाभाविक ही लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

Written by जनसत्ता: इस वक्त देश में महंगाई अपने चरम पर है। पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों की वजह से इसका रुख लगातार ऊपर की ओर बना हुआ है। इससे स्वाभाविक ही लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। पहले ही लोगों की कमाई घट चुकी है, लाखों लोगों के रोजगार छिन गए हैं, तिस पर महंगाई में उन्हें परिवार चलाना, बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य आदि पर खर्च करना भारी पड़ रहा है। मगर कहीं से भी सरकार का रुख इस पर काबू पाने का नहीं दिखता। ऐसे में विपक्ष ने एकजुट होकर संसद के दोनों सदनों में महंगाई पर चर्चा कराने की मांग उठाई।

मगर सरकार ने इसे लेकर कोई सकारात्मक रुख नहीं दिखाया। लोकसभा अध्यक्ष ने प्रश्नकाल और शून्यकाल तक को रद्द कर दिया। हंगामे की वजह से सदन का कामकाज देर तक रुका रहा। राज्यसभा में भी यही स्थिति रही। जैसा कि अन्य मामलों में पहले देखा जा चुका है, सदन में चर्चा न हो पाने की वजह से विपक्ष सड़क पर उतर आता है। पहले ही विपक्ष महंगाई के मुद्दे पर आंदोलनरत है, संसद में इस पर चर्चा नहीं कराने से उसे आंदोलन तेज करने का एक और मौका मिल गया है।

पिछले कई सत्रों से देखा जा रहा है कि संवेदनशील मसलों पर सरकार विपक्ष के सवालों से बचने का प्रयास करती रही है। चाहे वह रफाल खरीद का मुद्दा रहा हो, कृषि कानूनों या जासूसी का मामला रहा हो, सरकार इन मसलों पर चर्चा को टालने का प्रयास करती रही है। नतीजतन, कई सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गए और जरूरी विधेयक बिना चर्चा के पारित हो गए। इस बार भी सरकार महंगाई के मुद्दे पर कुछ वैसा ही रुख अपनाए हुई है। हालांकि यह एक ऐसा मसला है, जिस पर राजनीति करने के बजाय मिल-बैठ कर कोई कारगर रास्ता निकाला जाना चाहिए।

इसके लिए सरकार को लचीला रुख अख्तियार करना होगा और सभी दलों की राय आमंत्रित करनी होगी। संसद का बजट सत्र चल रहा है और इससे अच्छी जगह नहीं हो सकती, जहां इस मसले पर बातचीत करके कोई व्यावहारिक रास्ता निकाला जा सके। महंगाई का असर हर आम नागरिक पर पड़ रहा है। अर्थव्यवस्था से जुड़े हर क्षेत्र पर पड़ रहा है। खासकर पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए विचार-विमर्श से क्यों गुरेज होना चाहिए। अगर सरकार ने इस पर काबू पाने के लिए कोई रणनीति बनाई है, तो उसे जाहिर करने में भी हिचक नहीं होनी चाहिए।

र्इंधन की बढ़ती कीमतों की मुख्य वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की ऊंची कीमतें हैं। मगर ये कीमतें तब भी बढ़ रही थीं या बढ़ी हुई थीं, जब सरकार ने करीब तीन महीने तक इनमें बढ़ोतरी का फैसला रोक रखा था। अब कंपनियों के उस पुराने घाटे को पाटने के लिए कीमतें बढ़ाई जा रही हैं, तो इसमें सरकार की मंशा जाहिर है कि वह दरअसल, महंगाई पर काबू पाने को लेकर गंभीर नहीं है।

पिछले सात सालों में उत्पाद शुल्क के नाम पर सरकार ने लाखों करोड़ रुपए का राजस्व इकट्ठा किया हुआ है। फिलहाल प्रति लीटर करीब सत्ताईस रुपए उत्पाद शुल्क वसूला जाता है। वह इस बात से भी अनजान नहीं कि तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से महंगाई पर अंकुश लगाना कठिन बना हुआ है। फिर वह पिछली कमाई से इसकी भरपाई के बारे में क्यों नहीं सोचती। विपक्ष से रार पर क्यों तुली है।


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