सम्पादकीय

राग इश्क-1: वीराने में गूंजती आवाजें इश्क का सबब है, प्रेम को क्या बताएं और समझाएं.!

Rani Sahu
10 Feb 2022 3:12 PM GMT
राग इश्क-1: वीराने में गूंजती आवाजें इश्क का सबब है, प्रेम को क्या बताएं और समझाएं.!
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पचमढ़ी में किसी भी जगह पर जाओ - चाहे पानी छूने के लिए बी फॉल में नीचे उतरो

संदीप नाईक

पचमढ़ी में किसी भी जगह पर जाओ - चाहे पानी छूने के लिए बी फॉल में नीचे उतरो, छुपने के लिए पांडव गुफा जाओ, धूपगढ़ के सूर्योदय हो या सूर्यास्त, दर्शन के लिए गुप्त महादेव जाओ या सिर्फ यूं ही यायावरी करते हुए पहाड़ों में घूमते रहो, तो आपको एक न एक उस वीराने में गाने वाला कोई मिल जाएगा।
एक बूढ़ी औरत को बहुदा मैंने वहां पर देखा है, जो अकेले में अपनी धुन में गाती रहती है। पता नही कौन मीरा दीवानी है।
चित्रकूट जाओ तो अनुसूया के मंदिर जाओ या पहाड़ पर किसी मंदिर जाओ, सरयू में पांव डालकर घण्टों बैठे रहो। एक बंजारा वहां पर गाता रहता है तम्बूरे पर, जिसके पास इतना दर्द है कि उसकी आवाज सुनकर आप पल भर ठहर जाते हैं।
समझ नहीं आता यह एकाकी स्वरों में गाने वाले, विरान में भटकने वाले क्यों इतना विराट गाते हैं। इनके पास क्या ऊर्जा और ताकत है जो यह लगातार बरसों से गा रहे हैं; हो सकता है वे बदल भी जाते हो, परंतु मुझे हर बार वही चेहरा नजर आता है
मांडव जाता हूं तो जहाज महल में सुनाई देती है एक उदास दर्द में डूबी आवाज, रानी रूपमती के महल में लगता है - कोई नाद के स्वर बज रहे हों। मंडला में गौंड राजाओं के किले में उस बन्द पड़े कमरे में मधुमक्खियों की भिनभिनाहट मुझे पूर्वा धनश्री राग की याद दिलाती है।
ओमकारेश्वर जाता हूं तो वहां पर नर्मदा नदी के किनारे कलकल बहती नदी में मालकौंस सुनाई देता है। महेश्वर जाता हूं तो नर्मदा के घाटों पर यमन और ललित सुनाई देता है। ऊंचे महल की दीवारें मल्हार गाते सुनाई देती है।
भेड़ाघाट में ऐसा लगता है जैसे कोई हरिप्रसाद चौरसिया बैठकर बांसुरी पर पहाड़ी कानड़ा की धुन बजा रहे हो और जिस तेजी से वह पानी गिरता है, उससे लगता है कि जाकिर हुसैन कोई नई बंदिश लेकर आए हैं। थकी-हारी नर्मदा नदी जब मंडला में सहस्र धाराओं पर जाकर हांफती है तो लगता है कोई नृत्यांगना लगातार थाप पर नाचते हुए बैठ गई है और अब मन ही मन आलाप लेकर दिल दिमाग में थिरक रही है।
जब पानी, पहाड़, नदी, उजड़े महल, घुंघरुओं की थाप पर घूमती धरती या वीराने में गूंजती आवाजें सब इश्क के सबब हैं तो प्रेम को बार-बार परिभाषित करने की जरूरत क्या है?
यह प्रेम ही है जो सदियों से पागलों की तरह से इसी उजाड़ में लगातार अनहद नाद की तरह से बज रहा है और फरवरी माह में जब वसंत मेरे पास से गुजरता है तो मुझे आवाज ही है, जो पागल कर देती है और अब समझ आता है कि ऐसा क्यों होता है, जानते हैं ना क्यों, क्योंकि फरवरी इश्क का महीना है।
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