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- मूसेवाला की हत्या से...
नवभारत टाइम्स; लोकप्रिय पंजाबी गायक और कांग्रेस नेता शुभदीप सिंह सिद्धू मूसेवाला की रविवार को दिनदहाड़े हुई हत्या ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल स्वाभाविक ही सबसे ज्यादा तूल भगवंत मान सरकार के उस फैसले को दे रहे हैं, जिसके तहत दो दिन पहले मूसेवाला सहित 424 व्यक्तियों की सुरक्षा या तो वापस ले ली गई थी या उसमें कमी की गई थी। उनकी मांग है कि इस ऐंगल से भी मूसेवाला मामले की जांच करवाई जाए। वैसे, पुलिस ने पहली नजर में इस हत्या को गैंगवॉर का नतीजा माना है। एक गैंग की ओर से हत्या की जिम्मेदारी लेने की बात भी सामने आई है। दूसरी ओर, सत्ताधारी पार्टी की ओर से पूछा जा रहा है कि जब मूसेवाला पर हमला हुआ तो साथ में कमांडो और बुलेट प्रूफ गाड़ी क्यों नहीं थी? यानी इस मामले को लेकर कई सवाल हैं। इसलिए पुलिस की जांच पूरी होने का इंतजार करना चाहिए। फिर जहां तक सरकार द्वारा विभिन्न व्यक्तियों को दी गई सुरक्षा की समीक्षा का सवाल है तो हर सरकार समय-समय पर यह काम करती है। बदले हालात के मुताबिक यह न केवल स्वाभाविक बल्कि आवश्यक भी होता है और यह प्रक्रिया कानून-व्यवस्था की जरूरतों से निर्देशित होनी चाहिए। राज्य सरकार ने कहा था कि वह वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए ऐसा कर रही है, लेकिन इस पर ठीक से अमल नहीं हुआ।
खासतौर पर जिस तरह से अकाल तख्त के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह की सुरक्षा एक ही दिन के अंदर पहले वापस ली गई, फिर बहाल की गई, उससे गलत संदेश गया। इससे अलग, मूसेवाला की हत्या राज्य में कानून-व्यवस्था की गिरती स्थिति का संकेत भी है। पंजाब में नई सरकार बनने के बाद पटियाला में एक स्थानीय पार्टी के कार्यकर्ताओं और कथित खालिस्तान समर्थक तत्वों के बीच हिंसा, मोहाली में पंजाब पुलिस इंटेलिजेंस मुख्यालय पर हुए रॉकेट हमले के बाद यह तीसरी बड़ी घटना है। खासकर इंटेलिजेंस मुख्यालय पर हुए हमले की जांच से इस बात के संकेत मिले हैं कि राज्य में आपराधिक गिरोहों, आतंकी तत्वों और सीमा पार के हैंडलर्स के बीच गठजोड़ मजबूत हो रहा है। आतंकवाद के जिस खौफनाक दौर से पंजाब बाहर आया है और आज भी जितनी संवेदनशील स्थिति इसकी है, उसे देखते हुए इस मोर्चे पर किसी भी तरह का जोखिम मोल नहीं लिया जा सकता। वहीं जिस गैंगवॉर को पुलिस अभी मूसेवाला की हत्या की वजह बता रही है, वह कोई नहीं बात नहीं। पिछली सरकारों के लिए यह एक चुनौती रही है। मान सरकार को इससे निपटना होगा। उसे संदेश देना होगा कि वह कानून-व्यवस्था में सुधार को लेकर गंभीर है ताकि इस तरह के मामले राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का बहाना न बनें।