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पीयूष द्विवेदी ।
कश्मीरी पंडितों की हत्या और विस्थापन के दर्दनाक इतिहास की चर्चा जब-तब देश में होती रही है। परंतु 'द कश्मीर फाइल्सÓ ने इस मुद्दे को बेहद तीखे और जोरदार ढंग से सामने लाने का काम किया है। वर्ष 1989-90 के आसपास जम्मू-कश्मीर में रहने वाले लाखों कश्मीरी हिंदुओं को मजहबी कट्टरपंथियों के आतंक के कारण अपनी मातृभूमि को छोड़कर पलायन करना पड़ा था। बड़ी संख्या में पंडितों का नरसंहार भी हुआ, लेकिन केंद्र से लेकर राज्य तक की तत्कालीन सरकारें इस त्रासदी पर मूकदर्शक बनी बैठी रहीं और पंडितों की सुरक्षा के लिए किसी ने भी कुछ ठोस नहीं किया। यहां तक कि बाद के समय में भी उनके पुनर्वास के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। परिणाम यह रहा कि लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी की तरह रहने को मजबूर होना पड़ा। 'द कश्मीर फाइल्सÓ ने इस पूरी त्रासदी को सच्चाई के साथ लोगों के सामने रखने का काम किया है।