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- कानूनों की उपादेयता पर...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। केंद्र सरकार के विवादास्पद सुधार कानूनों के दूरगामी प्रभावों को लेकर देशव्यापी बहस जारी है। दिल्ली की दहलीज पर किसानों का आंदोलन लंबे समय से बदस्तूर जारी है। वहीं केंद्र सरकार देशव्यापी मुहिम चलाकर इन सुधार कानूनों को किसानों के लिए लाभकारी साबित करने पर तुली है। लेकिन यहां सवाल उठ रहा है कि क्या इन कानूनों के लागू होने से किसानों को वाकई किसी तरह का फायदा हो रहा है? इनकी जमीनी हकीकत क्या है? केंद्र सरकार प्रचार तंत्र का उपयोग करके इन सुधार कानूनों की उपादेयता के कसीदे पढ़ रही है। सरकार द्वारा जारी ई-बुकलेट में कुछ किसानों की गाथा का उल्लेख है जिन्हें इन सुधार कानूनों से फायदा हुआ है। वहीं हरियाणा में आलू उत्पादन की अधिकता का खमियाजा कीमत में गिरावट के रूप में आलू उत्पादक किसानों को भुगतना पड़ रहा है।
सरकार की सौ पेज की ई-बुकलेट में जोर देकर उल्लेख किया गया है कि पंजाब, उत्तरी हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक हजार से अधिक आलू उत्पादक किसानों का एक निजी कंपनी के साथ लागत के ऊपर पैंतीस प्रतिशत के लाभ की गारंटी के साथ समझौता हुआ है। जबकि हकीकत में नये कानून लागू होने के बाद आलू की कीमतों में गिरावट देखी गई है, जिससे किसानों को भारी नुकसान की आशंका जतायी जा रही है जो सरकार के लाभ हासिल करने के दावों को नकारती है। विडंबना यह है कि यह स्थिति भाजपा शासित राज्य में सामने आई है, जिस राज्य में नये सुधार कानूनों की पुरजोर वकालत की जा रही है। इतना ही नहीं, अन्य राज्यों में इन कानूनों से होने वाले लाभ व इनकी खूबियों को बताया जा रहा है जो कानून की सार्थकता के दावों और वास्तविक स्थिति में विरोधाभास को ही उजागर करता है। उल्लेखनीय है कि हरियाणा देश के उन पहले राज्यों में शामिल था जहां इलेक्ट्रानिक ट्रेडिंग पोर्टल यानी नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट की शुरुआत की गई थी।