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योगेश कुमार गोयल: इन हेलिकाप्टरों की तकनीक में ऐसी कोई बड़ी खामी है, जिससे खराब मौसम का पूर्वानुमान लगाने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है या कारण कुछ और हैं? विशेषज्ञों के मुताबिक सैन्य हेलिकाप्टरों में अन्य सुरक्षा मानकों के साथ-साथ बाधा आज्ञाकारिता प्रणाली भी होनी चाहिए, जिसका मौजूदा कई हेलिकाप्टरों में अभाव है।
उत्तराखंड के गरुड़चट्टी हेलिकाप्टर हादसे के बाद दिवाली से ठीक पहले अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सियांग जिले में भारतीय सेना का हेलिकाप्टर 'रुद्र' दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसमें सवार दो पायलट तथा तीन अन्य लोगों की मौत हो गई। इस हादसे से सोलह दिन पहले भी अरुणाचल प्रदेश के ही तवांग इलाके के पास सेना का चीता हेलिकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें एक पायलट की मौत हो गई।
एक ही महीने में दो ऐसे हादसे हेलिकाप्टरों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल पैदा करते हैं। बीते वर्ष चेन्नई के पास हुए वायुसेना के एमआइ-17 हेलिकाप्टर हादसे में सीडीएस बिपिन रावत सहित चौदह लोगों की मौत हो गई थी। उस भयानक हादसे के बाद लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में रक्षा राज्यमंत्री ने 2017 से 2021 के बीच हुए हादसों की जानकारी देते हुए बताया था कि इन वर्षों में कुल सत्रह सैन्य हेलिकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुए, जिनमें छत्तीस सैन्य कर्मियों की जान चली गई। हालांकि इन आंकड़ों के बाद भी कई सैन्यकर्मियों की ऐसे हादसों में मौत हुई है। पिछले साल ऐसे पांच हादसे घटित हुए, जिनमें उन्नीस सैन्यकर्मी मौत की नींद सो गए और कुछ गंभीर रूप से घायल हुए।
सेना में हेलिकाप्टरों की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण होती है, जो सैन्य कार्रवाईयों के अलावा सामान आदि पहुंचाने और सैनिकों के आने-जाने के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं। आमतौर पर सैन्य हेलिकाप्टरों का इस्तेमाल आतंकी हमलों से निपटने, बाढ़ पीड़ित इलाकों, भूस्खलन वाले पर्वतीय क्षेत्रों में बचाव कार्यों में किया जाता रहा है। इसके अलावा सियाचिन जैसे दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों तक भोजन तथा अन्य आवश्यक सामग्री पहुंचाने के लिए भी इनका इस्तेमाल होता है। ऐसे में हेलिकाप्टरों का लगातार दुर्घटनाग्रस्त होना चिंता का विषय है।
सवाल है कि सैन्य हेलिकाप्टर बीते कुछ वर्षों में लगातार दुर्घटनाग्रस्त क्यों हो रहे हैं? इन हादसों के पीछे तकनीकी कारण जिम्मेदार हैं या मौसम की खराबी? निस्संदेह कई बार मौसम की खराबी के कारण भी ऐसे हादसे हो जाते हैं, लेकिन इसका एक बड़ा कारण तकनीकी खराबी तथा सुरक्षा मानकों का अभाव भी है।
भारतीय सेना के पास वर्तमान में करीब 190 चीता और 134 चेतक हेलिकाप्टर हैं, जिनमें सत्तर फीसद से अधिक तीस साल से ज्यादा पुराने हैं। भारतीय सशस्त्र बलों के मुख्य हवाई बेड़े में शामिल चेतक हेलिकाप्टर ने तो देश की सेवा में करीब छह दशक पूरे कर लिए हैं। वायुसेना की ओर से कहा जा चुका है कि इन हेलिकाप्टरों में से अधिकांश का तकनीकी जीवन 2023 से खत्म होना शुरू हो जाएगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक चीता हेलीकाप्टर भी अपनी तयशुदा उम्र से ज्यादा सेवा दे रहे हैं, जिनका निर्माण 1990 में ही रोक दिया गया था। इन्हें उन्नत करने से कोई लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि इनका तकनीकी जीवन भी खत्म हो चुका है। हालांकि आर्मी एविएशन द्वारा चीता और चेतक हेलिकाप्टरों के पुराने बेड़े को हटाने की तैयारियां तेज हो चुकी हैं, लेकिन चिंता का कारण यही है कि अंतिम विदाई से पहले ही ये हेलिकाप्टर निरंतर दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं और इन हादसों में हमारे बेशकीमती पायलट तथा सैन्यकर्मी जान गंवा रहे हैं। बीते पांच वर्षों में पांच चीता हेलिकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं, जिनमें से एक पिछले महीने के पहले हफ्ते में ही दुर्घटनाग्रस्त हुआ।
भारतीय सेना में नौ प्रकार के लड़ाकू हेलिकाप्टरों के अलावा कुछ अन्य हेलिकाप्टर भी हैं, जिनमें से कुछ देश में ही विकसित किए गए हैं, जबकि कुछ का निर्माण अमेरिकी और रूसी कंपनियों द्वारा किया गया है, लेकिन बार-बार दुर्घटनाग्रस्त होने से इनकी सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं। पुराने हो चुके चीता और चेतक हेलिकाप्टरों के अलावा नए एएलएच और रूसी मूल के एमआइ-17 वी-5 हेलिकाप्टर भी हादसों के शिकार हो रहे हैं। 2017 से अब तक सात एएलएच (एडवांस्ड लाइट हेलिकाप्टर) दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं और कुछ एमआइ-17 वी-5 भी दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं।
एएलएच श्रेणी में भारतीय सेना के चार हेलिकाप्टर रुद्र, ध्रुव, लाइट यूटिलिटी हेलिकाप्टर तथा प्रचंड आते हैं। इनमें प्रचंड पूरी तरह से हमलावर हेलिकाप्टर है, जबकि रुद्र तथा ध्रुव का इस्तेमाल युद्ध और बचाव कार्यों में भी किया जाता है। वायुसेना के पास करीब 223 एमआइ-17 रूसी हेलिकाप्टर हैं, जिसे दो पायलट और एक इंजीनियर मिलकर उड़ाते हैं। इसमें चौबीस जवान या बारह स्ट्रेचर या चार हजार किलोग्राम तक वजन ले जाया जा सकता है। इसमें राकेट, एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल या दो मशीनगन और टैंकों को ध्वस्त करने के लिए बम भी लगाए जा सकते हैं। 60.7 फुट लंबे और 18.6 फुट ऊंचे इस हेलिकाप्टर की अधिकतम गति 280 किलोमीटर प्रतिघंटा तथा रेंज आठ सौ किलोमीटर है और यह अधिकतम बीस हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है।
जहां तक अरुणाचल में 21 अक्तूबर को दुर्घटनाग्रस्त हुए रुद्र हेलिकाप्टर की बात है, वह हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा निर्मित पहला स्वदेशी सशस्त्र हेलिकाप्टर है, जिसे विशेष रूप से भारतीय सेना के लिए युद्धक हेलिकाप्टर के तौर पर ही तैयार किया गया है। यह हेलिकाप्टर विशेष रूप से चीन के साथ लगती नियंत्रण रेखा के साथ संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात किए गए हैं और 5.8 टन वजनी यह हेलिकाप्टर भारत द्वारा मित्र देशों को भी बेचा जा रहा है।
52.1 फीट लंबा, 10.4 फीट चौड़ा और 16.4 फीट ऊंचा तथा 280 किलोमीटर प्रतिघंटा की अधिकतम गति से उड़ने में सक्षम रुद्र एक हथियारबंद 'यूटिलिटी हेलिकाप्टर' है, जिसे दो पायलट उड़ाते हैं और इसमें बारह जवान बैठ सकते हैं। इसकी उड़ान सीमा 590 किलोमीटर है और यह अधिकतम बीस हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है। रुद्र में 20 मिमी की एक एम 621 कैनन, 2 मिस्ट्रल राकेट, 4 एफजेड 275 एलजीआर मिसाइल, 4 ध्रुवास्त्र मिसाइल तैनात की जा सकती हैं। फिलहाल सेना के पास पचहत्तर और वायुसेना के पास सोलह रुद्र हेलिकाप्टर हैं।
इन अत्याधुनिक हेलिकाप्टरों के दुर्घटनाग्रस्त होने का प्रमुख कारण खराब मौसम माना जाता रहा है। ऐसे में सवाल यही है कि खराब मौसम की वजह से बार-बार होने वाले हेलिकाप्टर हादसों से कोई सबक लेकर ऐसे कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे, जिससे ऐसे हादसों को रोका जा सके। इन सवालों की तह में जाना बेहद जरूरी है कि अत्याधुनिक तकनीक से लैस होने के बावजूद सेना के आधुनिक हेलिकाप्टर भी हादसों के शिकार क्यों हो रहे हैं? क्या इन हेलिकाप्टरों की तकनीक में ऐसी कोई बड़ी खामी है, जिससे खराब मौसम का पूर्वानुमान लगाने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है या कारण कुछ और हैं? विशेषज्ञों के मुताबिक सैन्य हेलिकाप्टरों में अन्य सुरक्षा मानकों के साथ-साथ बाधा आज्ञाकारिता प्रणाली (आब्सटेकल-ओबेडिएंश सिस्टम) भी होनी चाहिए, जिसका मौजूदा कई हेलिकाप्टरों में अभाव है।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि सैन्य हेलिकाप्टरों की लगातार होती दुर्घटनाओं को देखते हुए इनका सुरक्षा आडिट तथा चालक दल के सदस्यों का विधिवत प्रशिक्षण अनिवार्य करने की सख्त जरूरत है। सेना के अनेक हेलिकाप्टर बहुत पुराने हो चुके हैं, जिन्हें बदलने का मामला लंबे समय से लटक रहा है। हालांकि अब इस कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन इसमें तेजी लाने की जरूरत है।
सैन्य हेलिकाप्टर बहुत महंगे होते हैं, जिनकी कीमत आमतौर पर चालीस-पचास करोड़ रुपए होती है। ऐसे में बहुत बड़ी वित्तीय हानि से देश को बचाने के साथ-साथ सेना के जांबाज अधिकारियों और जवानों की जान बचाने के लिए भी सुरक्षा और प्रशिक्षण संबंधी खामियों का पता लगाकर उन्हें दूर किया जाना बेहद जरूरी है।