सम्पादकीय

यक्ष प्रश्न

Subhi
26 March 2022 5:39 AM GMT
यक्ष प्रश्न
x
बहिनजी सदमे में हैं। इतनी बुरी गत तो 1989 के बाद पहली बार हुई है। कांगे्रस से भी पीछे चली गई। खुद किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं। विधानसभा के हाल में हुए चुनाव में अपना दल, सुभासपा, निषाद पार्टी और कांगे्रस से भी पिछड़ गई मायावती की पार्टी।

Written by जनसत्ता: बहिनजी सदमे में हैं। इतनी बुरी गत तो 1989 के बाद पहली बार हुई है। कांगे्रस से भी पीछे चली गई। खुद किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं। विधानसभा के हाल में हुए चुनाव में अपना दल, सुभासपा, निषाद पार्टी और कांगे्रस से भी पिछड़ गई मायावती की पार्टी। एक ही विधायक जीत पाया। वह भी अपने बूते। सीटें तो पिछले चुनाव में भी 19 ही मिली थीं। जनाधार तो फिर भी सलामत बच गया था।

हारकर भी 22 फीसद वोट मिले थे बसपा को। इस बार घटकर आधे रह गए। जबकि बीस फीसद से ज्यादा तो केवल दलित ही हैं सूबे में। उनका कट्टर वोट बैंक समझे जाने वाले जाटव मतदाता भी करीब 15 फीसद हैं। नतीजे संकेत दे रहे हैं कि उन्हें जाटव मतदाताओं का भी पूरा समर्थन नहीं मिला। अपने दलित वोट बैंक के बूते ही तो बहिनजी ने बहुजन हिताय की जगह सर्वजन हिताय का प्रयोग कर 2007 में अपने बूते सत्ता हासिल की थी। दूसरी जातियों के नेता बहिनजी के टिकट का मोह छोड़ नहीं पाते थे। फिलहाल लोकसभा में जरूर बसपा के दस सदस्य हैं।

हालांकि 2014 में खाता भी नहीं खुल पाया था। गनीमत रही कि 2019 का चुनाव सपा से तालमेल कर लड़ी और दस सीटें पा गई। भले अखिलेश यादव को उनके साथ गठबंधन करने का कतई फायदा न हुआ हो। तीन महीने बाद उनके राज्य सभा के दो सदस्य सतीश मिश्र और अशोक सिद्धार्थ भी रिटायर हो जाएंगे। बचेंगे इकलौते रामजी गौतम। जो 2020 में भाजपा की मेहरबानी से निर्विरोध चुन लिए गए थे।

लगता है कि इसी मेहरबानी ने लुटिया डुबो दी इस बार बसपा की। एक तो खुद निष्क्रिय रहीं ऊपर से चुनाव के दौरान एलान कर दिया कि उनके लिए भाजपा से बड़ी शत्रु सपा है। उनकी हार साफ देख रहे उनके समर्थक मतदाता इसी के बाद बिखरे और भाजपा व सपा में बंट गए। बसपा को एक दौर में कांशीराम ने राष्ट्रीय दल की मान्यता दिला दी थी।

पंजाब, मध्यप्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में अच्छा जनाधार बनाया था। लेकिन कांशीराम माने जाते थे संगठनकर्ता। जबकि मायावती को तो दलित नेताओं ने ही दलित के बजाए दौलत की बेटी कहकर उनकी आलोचना की। सियासी हलकों में पिछले दो साल से यह यक्ष प्रश्न लगातार उछल रहा है कि मायावती की भाजपा से हमदर्दी के पीछे कोई डर है या सौदेबाजी।

कांग्रेस के जी-23 के सदस्य आनंद शर्मा का राज्यसभा का कार्यकाल अप्रैल के शुरू में समाप्त हो रहा है। प्रदेश में भाजपा की सरकार है व पूर्ण बहुमत भी है। बावजूद इसके कोई भी राजनीतिक नेता इस सीट पर कब्जा नहीं कर सका। किसी ने खुलकर दावेदारी भी नहीं जताई।

ऐसे में जब प्रदेश विवि के कुलपति सिकंदर कुमार का नाम भाजपा आलाकमान की ओर से जारी सूची में सामने आया तो तमाम भजपाइयों को सांप सूंघ गया कि यह क्या हो गया। प्रोफेसर साहब भी दंग रह गए कि उन्होंने बड़ी लाबिंग तो की नहीं थी। लेकिन वह खुश बहुत हो गए कि उन्होंने एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया।

सिकंदर कुमार कहते थे कि उन्होंने जिंदगी में कभी नहीं सोचा था कि वह विवि में पहुंचेंगे। लेकिन उन्होंने पीएचडी की। फिर यह कभी नहीं सोचा था कि नौकरी मिलेगी और वह विवि के कुलपति बन जाएंगे। यह तो कभी भी नहीं सोचा था कि वह कभी राज्यसभा भी जाएंगे। लेकिन वह राज्यसभा भी चले गए। बेशक उनकी राष्ट्रपति से बहुत करीबी थी लेकिन कोई और मुकाबले में ही नहीं था, ऐसी तो कल्पना ही नहीं की गई थी।

उनके करीबियों की मानें तो सिंकदर कुमार केंद्र सरकार में मंत्री बन जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सिकंदर कुमार की खासियत रही है कि उन्होंने पार्टी के किसी काम से इनकार नहीं किया। कुलपति रहते हुए भी उन्होंने कई ऐसे काम कर दिए जो सालों से पूरे नहीं हो रहे थे। अब प्रदेश के सारे भाजपाई उनसे संपर्क रखने की कोशिश में लगे हैं कि पता नहीं कल कुलपति साहब किस बुलंदी को छू जाएं।

भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी पार्टी का वह युवा चेहरा हैं जिनकी छवि काम करने वालों की है। शायद यही वजह है कि आम लोगों के बीच उनकी पहचान बन चुकी है। दिल्ली के आइटीओ पर श्रीनिवास अपनी कार से गुजर रहे थे और एक आटोवाला बार-बार उनकी गाड़ी तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था।

लालबत्ती होने पर आटो चालक ने उन तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन तब तक उनकी गाड़ी आगे बढ़ गई और आटोवाला निराश हो गया। आटोवाले के करीब खड़े गाड़ी चालक को जिज्ञासा हुई कि वह उस व्यक्ति का पीछा क्यों कर रहा है। आटोवाले ने कहा कि ये कांग्रेस के नेता हैं और कोरोना के समय इन्होंने लोगों की बहुत मदद की थी। आटोवाला उनके साथ सेल्फी लेना चाहता था लेकिन इसमें कामयाब नहीं होने का मलाल उसके चेहरे पर दिख रहा था।

आज हर कोई कांग्रेस को सलाह दे रहा है। खुद उसके नेता शशि थरूर लेख लिख कर बता रहे हैं कि कांग्रेस को उबरने के लिए क्या करना चाहिए। क्या करना चाहिए के सवालों के बरक्स कांग्रेस में श्रीनिवास बीवी जैसे चुनिंदा जवाब ही हैं कि उसे सड़क पर रहना चाहिए।

महज लेख लिखने और सोनिया गांधी को दी गई सलाहों की चिट्ठी मीडिया के जरिए उजागर करके यही हासिल हुआ कि मीडिया ने कुछ नेताओं के समूह को जी-23 का खिताब दे दिया। जाहिर सी बात है कि इन सबके बीच कांग्रेस में वही उम्मीद हो सकते हैं जो, सड़क पर थे, हैं और आगे भी रहेंगे।


Next Story