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राम कौन हैं. क्या हैं. कैसे हैं. क्यों हैं. ये सवाल अब गौण हो चुके हैं. हर सनातनी राम को जानता है
अभिषेक कुमार नीलमणि राम कौन हैं. क्या हैं. कैसे हैं. क्यों हैं. ये सवाल अब गौण हो चुके हैं. हर सनातनी राम को जानता है. हर हिंदुस्तानी राम को पूजता है. हर भारतवंशी का राम से वास्ता है. मगर इसी धरा पर एक महानुभाव ऐसे भी हैं, जिनके नाम में स्वयं राम जुड़ा है, वो कहते हैं कि रामायण एक काल्पनिक ग्रंथ है और भगवान राम एक काल्पनिक पात्र. वो यहीं नहीं रुकते, खुद को बेबाक दिखाने के चक्कर में ये भी बताते हैं कि समाज को चलाने के लिए तुलसीदास और वाल्मीकि ने राम-लक्ष्मण-सीता और रावण जैसे पात्रों का निर्माण कर दिया.
जिस बेबाकी से ये शख्स इस बज्म की उद्घोषणा कर रहे थे, वो कभी बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. अपने नाम के पीछे भी राम नाम को लेकर घूमते हैं. इनके बयान के बाद बवाल भी खूब हुआ. आहत लोगों ने कह दिया कि क्यों नहीं जीतन राम मांझी अपना नाम बदलकर जीतन 'रावण' मांझी कर देते हैं. बिहार की राजनीति में बयान के बाद भूचाल भी खूब आया. मगर जीतन राम मांझी टस से मस नहीं हुए. दो टूक कह दिया. माफी नहीं मांगूंगा, बयान पर कायम रहूंगा.
अब सवाल है कि क्या सियासत में कोई इतनी भी आंखें बंद कर सकता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दे. भगवान राम कौन थे, इस पर प्रख्यात उर्दू शायर शम्सी मीनाई लिखते हैं-
"मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ
तुलसी ने वाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ
फिर ऐसा कोई खास कलमवर नहीं हूं मैं
लेकिन वतन की खाक से बाहर नहीं हूं मैं
वो राम जिसने ज़ुल्म की बुनियाद ढाई थी
जिसके भगत ने सोने की लंका जलाई थी
हर आदमी ये सोचे जो होश-ओ-हवास है
वो राम से क़रीब है कि रावण के पास है
लोगों को राम से जो मोहब्बत है आजकल
पूजा नहीं अमल की जरूरत है आजकल"
शम्सी मीनाई ने हर उस इंसान से पूछा है जो होश-ओ-हवास में है कि क्या वो राम के करीब है या रावण के पास है. अब जवाब जीतन राम मांझी को देना है. मगर आज हम आपको राम से थोड़ा रू-ब-रू जरूर कराएंगे. चलिए मानते हैं, राम भगवान नहीं हैं. वो अवतार हैं. अवतार इसलिए, ताकि ईश्वर पर विश्वास बना रहे. अवतार इसलिए ताकि संकट आए तो उस मन:स्थिति से निकलने का कुशल प्रबंधन किया जा सके. राम को भगवान बनाने वाले हम इंसान ही हैं. वो तो इस धरती पर आए. ताकि हम उनसे कुछ सीख पाएं. अब आप बताइये, आज इस कलयुग में कौन होगा जो पिता के अक्षरश: शब्दों का मान रखे? जो बिना सोचे 14 साल के लिए जंगलों में भटकने चला जाए? जो राजा की कुर्सी, बिना सोचे छोड़कर चला जाए? शायद आज के युग में ये प्रासंगिक नहीं. लिहाजा, इंसानों ने भगवान का ठप्पा लगाकर रामजी को मंदिरों में बैठा दिया.
राम ने ईश्वर की बराबरी करने की राह दिखाई
अगर आप राम को देखेंगे, तो वो इंसान को जीवन जीने की दृष्टि देते हैं. भगवान की तरह सबकुछ चुटकी में सही करने का दावा नहीं करते. बल्कि वानरों की फौज बनाते हैं. फौज को युद्ध कौशल की कला सिखाते हैं. दुश्मन से निपटने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का गुण बताते हैं. मां-पिता, भाई, पत्नी, समाज और देश की जिम्मेदारी हो तो संतुलन बनाए रखना समझाते हैं. और अगर एक इंसान ये सबकुछ अपनी जीवन में कर पाए. तो फिर वही मर्यादा पुरुषोत्तम है. वही देवताओं के बराबर है. अर्थात् राम ने आम इंसान को ईश्वर की बराबरी करने का रास्ता तक दिखाया है. राम का वास्ता इक्ष्वाकु वंश से था. राम के पास धन, संपत्ति, वैभव और प्रभुत्व सबकुछ था. फिर भी घर से निकले. परिवार को छोड़ा. राजपाट को त्याग दिया. सिर्फ इसलिए क्योंकि कुछ बड़ा करना था. अगर यही राम, दशरथ पुत्र राम बनकर अयोध्या में रहते तो सिर्फ राम ही कहलाते. मगर 14 बरस तक जंगल में अपने आप को तपाया तो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए.
'रामायण' को जीवन में कहानी की तरह उतारेंगे तो सर्वश्रेष्ठ बन जाएंगे
राम की परिभाषा, व्यक्तित्व, समाजवाद, परिवारवाद और राष्ट्रप्रेम को कलमबद्ध करने अगर कोई बैठेगा तो वर्षों बीत जाएंगे. लिहाजा, जीतन राम मांझी पर वापस आते हैं. उन्हें राम को नहीं मानना तो वो ना माने. मगर किसी भी धर्म के आराध्य पर उंगली उठाना उचित नहीं है. क्योंकि एक समाज का वो प्रतिनिधित्व करते हैं. समाज उनकी सुनता है. समाज उनकी मानता है. लिहाजा, अगर कोई नेतृत्व करता है तो उसका ये कर्तव्य है कि राह सही दिखाए. अगर कोई राम को नहीं मानता है तो ना माने. रामकथा और रामायण को कहानी की तरह सुने और पढ़े. अगर जीवन में इस कहानी को कोई भी इंसान उतार ले, तो सर्वश्रेष्ठ बन जाएगा. अब मांझी को क्या बनना है, ये वो तय करें.
भारत में राम आराध्य हैं और थे और रहेंगे. किसी के कुछ कह देने मात्र से किसी के विचार नहीं बदल सकते हैं. अयोध्या में भव्य राम मंदिर के लिए सालों साल तक लड़ाई चली. आखिरकार तय हुआ कि राम मंदिर का निर्माण किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सर्वसम्मति से कुबूल किया गया. यहां राम की महिमा और उनके दर्शन के लिए रामायण सर्किट कि शुरूआत की जा रही है. 7 नवबंर से IRCTC नयी ट्रेन चलाएगी. अयोध्या से रामेश्वरम तक श्रद्धालुओं को दर्शन कराया जाएगा. 17 दिन की यात्रा बेहतरीन सुविधाओं से लैस होगी. अयोध्या, सीतामढ़ी, नेपाल के जनकपुर, वाराणसी, प्रयागराज, चित्रकूट, नासिक होते हुए यात्रा रामेश्वरम में खत्म होगी.
आस्था और धर्म पर बयानबाजी सही नहीं
सवाल ये है कि रामायण सर्किट में सवार होकर जो यात्री राम की अनुभूति करने वाले हैं, उनके बारे में जीतन राम मांझी क्या सोचेंगे? या फिर इन जैसे लोग क्या टिप्पणी करेंगे? हालांकि ऐसे बयानों से किसी की आस्था और धर्म पर प्रभाव नहीं पड़ता है. पर फिर भी सियासी पुरोधाओं को बयानबाजी करने से पहले सोचना और समझना जरूरी है. जाते-जाते कुमार विश्वास के शब्दों में राम की परिभाषा-
"राम आराध्य भी हैं और आराधना भी
राम साध्य भी हैं और साधना भी
राम मानस भी हैं और गीता भी
राम राम भी हैं और सीता भी
राम धारणा भी हैं और धर्म भी
राम कारण भी हैं और कर्म भी
राम गृहस्थ भी हैं और संत भी
राम आदि भी हैं और अंत भी"
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