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संभव है कि वैज्ञानिक सलाहकारों ने ‘एहतियात’ को ही महत्त्वपूर्ण आंका है
दिव्याहिमाचल.
प्रधानमंत्री मोदी ने बच्चों के टीकाकरण और बुजुर्गों, गंभीर बीमारों और स्वास्थ्य कर्मियों आदि के लिए तीसरी, एहतियाती खुराक (प्रीकॉशन डोज़) के कार्यक्रमों की घोषणा कर नए साल का एक सार्थक तोहफा दिया है। फिलहाल तीसरी खुराक को 'बूस्टर डोज़' का नाम नहीं दिया गया है।
संभव है कि वैज्ञानिक सलाहकारों ने 'एहतियात' को ही महत्त्वपूर्ण आंका है। भारतीय बाल टीकाकरण पर सभी परीक्षण अक्तूबर माह तक पूरे हो चुके थे। भारत सरकार के औषध महानियंत्रक ने भारत बायोटेक के कोवैक्सीन और जायड्स कैडिला के जायकोव-डी को, अंततः, आपात मंजूरी दी थी। हालांकि तीन और टीके क्लीनिकल परीक्षण के दौर में हैं, लेकिन टीकाकरण अभियान में सिर्फ कोवैक्सीन की खुराक ही दी जाएगी।
कोवैक्सीन हर माह 6 करोड़ खुराकों का उत्पादन करेगा, यह आश्वासन सरकार को दिया गया है। अब भी औसतन 5 करोड़ टीकों का उत्पादन हर महीने किया जा रहा है, जबकि सरकार के भंडारण में इस टीके की करीब 2 करोड़ खुराक जमा हैं। स्पष्ट है कि नए अभियान में टीकाकरण की गति में अवरोध के आसार नहीं हैं। जायकोव-डी टीके की आपूर्ति जनवरी के पहले सप्ताह के बाद शुरू हो जाएगी।
बहरहाल संजीदा और तकनीकी सवाल 60 साल की उम्र और गंभीर बीमारियों वालों तथा स्वास्थ्य कर्मियों, अग्रिम मोर्चे के कर्मचारियों की सार्थक सुरक्षा का है कि एहतियाती खुराक के तौर पर उन्हें कौन-सा टीका लगाया जाएगा? इन वर्गों में टीकाकरण 10 जनवरी, 2022 को शुरू होना है। क्या उन्हें वही टीका दिया जाएगा, जिसकी दो खुराक वे ले चुके हैं। यानी कोविशील्ड और कोवैक्सीन की ही तीसरी खुराक…!
भारत के टीकाकरण में यही दो टीके दिए गए हैं। वह खुराक एहतियात के तौर पर कितनी असरदार होगी? चूंकि ये सबसे ज्यादा ज़ोखि़म वाले वर्ग हैं, लिहाजा उन्हें ऐसी खुराक दी जानी चाहिए, जिससे उन्हें सार्थक सुरक्षा मिल सके। अधिकतर वैश्विक शोध अध्ययनों के निष्कर्ष हैं कि बूस्टर डोज़ उन खुराकों की तकनीक से भिन्न होनी चाहिए, जो पहले दो खुुराक के तौर पर ली जा चुकी हैं। हालांकि एस्ट्राजेनेका का अध्ययन इससे अलग है।
उसकी रपट छपी है कि कोविशील्ड की दो खुराक लेने के बाद तीसरी खुराक बूस्टर के तौर पर ली जा सकती है और वह प्रभावशाली होगी। बहरहाल यदि भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन की दो खुराकों के बाद तीसरी, एहतियाती खुराक भी उसी टीके की दी जाती है, तो यह ऐसा फैसला होगा, जिसके परीक्षणों का स्थानीय डाटा ही उपलब्ध नहीं है। जब नए टीके भी उपलब्ध होंगे, तो क्या उन्हें भी बूस्टर या एहतियात के तौर पर अनुमति दी जाएगी?
इसके मायने ये हुए कि भारत में एहतियाती खुराक लेने वाले वयस्कों के दो समूह मौजूद होंगे? क्या यह वैज्ञानिक होगा? एहतियाती खुराक तो पहली दो खुराकों से भिन्न होनी चाहिए और उसके फॉर्मूले का प्लेटफॉर्म भी अलग होना चाहिए। यह हमारा निष्कर्ष नहीं है। हम उन वैज्ञानिक चिकित्सकों के शोध के सारांश उद्धृत कर रहे हैं, जो अभी तक दुनिया के सामने आए हैं और जिन्हें मेडिकल तौर पर मान्यता मिली है। भारत सरकार के तकनीकी सलाहकार समूह में भी प्राथमिक सहमति यही थी कि तीसरी, एहतियाती खुराक पहली दो खुराकों से भिन्न होनी चाहिए।
हमारा मानना है कि ऐसे नाजुक सवालों को पहले ही चिह्नित कर विमर्श किया जाना चाहिए था। देश को अपने योग्य और सक्षम वैज्ञानिकों, चिकित्सकों पर पूरा भरोसा है। ये सवाल भी वैज्ञानिक जिज्ञासा से पैदा हुए हैं।
दिल्ली एम्स के प्रख्यात वैज्ञानिक शोधार्थी प्रोफेसर डॉ. संजय राय सरीखे कुछ और भी होंगे, जो भारत में अभी बूस्टर जैसी कवायद को बेमानी मानते हैं। उनके मतानुसार जो लोग संक्रमित हो चुके हैं और टीका भी लगवा चुके हैं अथवा जिन्होंने दोनों खुराकें लीं और फिर संक्रमित हुए, लेकिन स्वस्थ हो चुके हैं, उनमें 'सुपर इम्युनिटी' होनी चाहिए। हालांकि हम उनके अध्ययन के डाटा से नहीं गुज़रें हैं, लेकिन ऐसे निष्कर्ष हमने खुद संवादों के दौरान सुने हैं। बहरहाल एहतियाती खुराक के प्रयोग का स्वागत है, भारत में सामान्य कोरोना की मौजूदगी निरंतर घटती जा रही है, लेकिन ओमिक्रॉन स्वरूप के मामले 500 पार कर चुके हैं। उनकी भयावहता इतनी ही है कि वे तेजी से फैल रहे हैं और देश के 19 राज्य चपेट मंे आ चुके हैं। एहतियात का कार्यक्रम शुरू होना चाहिए, लेकिन जिम्मेदार वैज्ञानिकों की जवाबदेही भी हो।
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