सम्पादकीय

जांच पर सवाल

Rani Sahu
25 Aug 2021 6:06 PM GMT
जांच पर सवाल
x
पूर्व और वर्तमान सांसदों, विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की धीमी जांच बहुत चिंताजनक है

पूर्व और वर्तमान सांसदों, विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की धीमी जांच बहुत चिंताजनक है। जिन मामलों में जल्दी फैसले आ जाने थे, वे भी अटके हुए हैं। कुछ आपराधिक मामले तो 15 साल पहले दर्ज हुए थे और मामले भी ऐसे, जिनमें दोष सिद्ध होने पर आजीवन कारावास की सजा भी हो सकती थी, लेकिन ऐसे मामलों में भी जांच की दिशा में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की धीमी कार्रवाई बहुत चिंता में डाल देती है। सीबीआई के पास विधायकों और सांसदों से संबंधित 163 आपराधिक मामले लंबित हैं, जबकि प्रवर्तन निदेशालय के पास 122 मामले। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसी जांच एजेंसियों को यथोचित ही फटकार लगाई है। 10-15 साल पहले दर्ज हुए मामलों में भी आरोपपत्र दायर नहीं किए गए हैं। देश के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना ने इन एजेंसियों से कारण बताने को कहा है। प्रवर्तन निदेशालय केवल संपत्तियों को कुर्क कर रहा है और इसके अलावा कुछ नहीं। तीन जजों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति रमना ने साफ कह दिया है कि मामलों को यूं लटकाए न रखें, आरोपपत्र दाखिल करें।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बहुत मायने रखती है। प्रधान न्यायाधीश ने लगे हाथ यह भी कहा है कि हम इन एजेंसियों के खिलाफ कुछ नहीं कहना चाहते, क्योंकि हम इनका मनोबल गिराना नहीं चाहते हैं। लेकिन यह सब (लंबित मामलों की संख्या) बहुत कुछ कहता है। ऐसा लगता है, इन एजेंसियों को जांच या मामलों को न्यायपूर्ण अंजाम तक पहुंचाने की कोई जल्दी नहीं है और यह बात सुप्रीम कोर्ट के सामने भी साफ तौर पर आई है। आज की स्थिति में एजेंसियां देरी के स्पष्ट कारण बताने की स्थिति में भी शायद नहीं हैं। यह स्थिति चौंकाती नहीं है, जब भी अपनी व्यवस्था में बड़े लोगों के खिलाफ शिकायत सामने आती है, तब उसका अंजाम पर पहुंचना आसान नहीं होता। कानून-व्यवस्था संभालने वाली एजेंसियां भी यह बात नहीं समझतीं कि अगर किसी अपराधी नेता को दस साल का मौका मिल गया, तो वह दो बार चुनाव जीतकर क्या कर सकता है? क्या किसी अपराधी नेता से हम उम्मीद कर सकते हैं कि वह देश में कानून-व्यवस्था संभालने वाली एजेंसियों को सहजता से काम करने देगा? असल चिंता यही है। इसमें कोई शक नहीं है कि राजनीति में अपराधियों की पैठ को रोकना सबकी जिम्मेदारी है। विशेष रूप से राजनीतिक दलों को अपनी भूमिका के प्रति सजग होना चाहिए। कुछ ही समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में नौ राजनीतिक दलों को अवमानना का दोषी ठहराया था। दिक्कत यह है कि राजनीतिक दल दागी नेताओं को बचाने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। राजनीति में अपराधीकरण पर तल्ख टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत एकाधिक बार इशारा कर चुकी है कि राजनीतिक दल राजनीति से अपराध खत्म करने की दिशा में सही कदम नहीं उठा रहे हैं। क्या सुप्रीम कोर्ट की ताजा पहल के बाद सुधार की संभावना बढ़ी है। प्राथमिक स्तर पर इन महत्वपूर्ण जांच एजेंसियों में मानव संसाधन की कमियों को पूरा करना चाहिए और इसके साथ ही अदालतों में भी कोई पद खाली नहीं रहना चाहिए, तभी कानून-व्यवस्था पूरी क्षमता के साथ काम कर सकेगी।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान


Next Story