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आदित्य नारायण चोपड़ा: बिहार में जहरीली शराब से हो रही मौतें काफी दुखदायी हैं। जहरीली शराब से लोगों की मृत्यु अन्य राज्यों में भी होती रही हैं लेकिन बिहार का मामला इसलिए चर्चा में है क्योंकि राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू है। बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू हुए पांच वर्ष हो चुके हैं। शराबबंदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कड़वा फैसला था। उन्होंने व्यापक जनहित में यह फैसला लिया था। इससे राज्य को करोड़ों के राजस्व का नुक्सान भी हो रहा है और अवैध शराब माफिया भी फैल रहा है। मुख्यमंत्री ने मौतों के लिए जिम्मेदार लोगों और उन्हें संरक्षण देने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के निर्देश दे दिए हैं। शराब के चलते सैकड़ों परिवार बर्बाद हाे चुके हैं। महिलाओं को ज्यादा परेशानियां थीं। शराबियों के आतंक से महिलाएं घर और बाहर आतंकित रहती थीं। गरीब परिवार आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे थे। जुलाई 2015 को पटना में आयोजित ग्रामवार्ता में जीविका से जुड़ी महिलाओं ने शराबबंदी का मुद्दा उठाया था तब नीतिश कुमार ने महिलाओं को आश्वस्त किया था कि नई सरकार के गठन के बाद शराबबंदी लागू कर दी जाएगी। नीतीश कुमार के शराबबंदी लागू करने पर सबसे ज्यादा तारीफ महिलाओं ने की थी।शराबबंदी जिस किसी राज्य में लागू की गई वहां निराशा ही हाथ लगी है। 1977 में जननायक कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में शराब पर पाबंदी लगाई थी लेकिन शराब की कालाबाजारी और कई अन्य परेशानियों की वजह से यह पाबंदी ज्यादा दिन तक नहीं चली। आंध्र प्रदेश में एन.टी. रामाराव ने शराबबंदी लागू की थी लेकिन इससे राज्य को राज्सव का नुक्सान उठाना पड़ा और राज्य का खजाना खाली होने लगा। स्कूली शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों काे वेतन देने के लिए सरकार के पास धन नहीं बचा था। शिक्षक और सरकारी कर्मचारी सड़कों पर उतर कर आंदोलन करने लगे तो सरकार को शराबबंदी का फैसला वापिस लेना पड़ा।संपादकीय :दिल्ली को जहर का चैम्बर हमने खुद बनाया हैसिद्धू के कांग्रेस विरोधी 'लच्छन'पेट्रोल-डीजल के दाम में कमीपाक का अमानवीय रवैयाजग-मग दीपावली का सन्देशसदस्यों को दिवाली का तोहफा... Meradocहरियाणा में बंसीलाल के शासनकाल में शराबबंदी लागू की गई लेकिन अवैध शराब माफिया लोगों के घर-घर शराब की सप्लाई करने लगा। यद्यपि गुजरात में पूर्ण शराबबंदी लागू है लेकिन एक बड़ी आबादी शराब का सेवन करती है। राज्य में कई तरह के अपवादों के जरिये छूट दी गई क्योंकि पूरी तरह से पाबंदी असम्भव है।अगर पूर्ण प्रतिबंध कामयाब नहीं है तो फिर राज्य सरकारें इसे लागू करने की कोशिश क्यों करती हैं। एक मान्यता यह है कि इससे बेहतर और नैतिक रूप से जिम्मेदार समाज बनता है। शराबबंदी के तीन प्रभाव नजर आते हैं। एक तो शराब से चलने वाली अर्थव्यवस्था भूिमगत हो जाती है। कभी-कभार शराब पीने वाला भी अपराधी हो जाता है और इससे पुलिस का अपराधीकरण होता है। अमेरिका का उदाहरण हमारे सामने है। अमेरिका में 1920 में शराब पर प्रतिबंध के समय कई बड़े माफिया लीडरों ने जन्म ले लिया था, जिससे अल कापोने भी शामिल था, जिसने शिकागो जैसे शहरों की पुलिस व्यवस्था को भ्रष्ट बना दिया था।यही कुछ शराबबंदी वाले राज्यों में हो रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि शराब पीने वालों की भी बड़ी गलती है लेकिन शराब बनाने वाले और शराब बनने देने वालों की भी जवाबदेही है। शराबबंदी के चलते नकली शराब बनाने वाले छोटे-बड़े माफिया पनप चुके हैं। गांव स्तर तक उनकी सप्लाई चैन बनी हुई है। पुलिस से उनकी हर स्तर पर साठगांठ है। कोरोना काल में पूर्ण लॉकडाउन के दौरान भी हर जगह शराब ब्लैक हुई थी। शराब के नए-नए ठिकाने चल निकले थे। नकली शराब से हो रही मौतों को सहजता से स्वीकार करना प्रशासन के लिए भी कठिन होगा।धर्मशास्त्रों के मुताबिक शराब पीना भीषण पापों में शामिल है। हम कितने भी तर्क दें लेकिन पीने वाले कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं। कोई भी सरकार लोगों के खानपान की आदतें तय नहीं कर सकती। नागरिकों को अपनी पसंद का खानपान करने की आजादी है। शराबबंदी कानून अपनी जगह है मगर जमीनी हकीकत कोसों दूर है। शराब तस्करी और भट्ठियों पर बनने वाली शराब पर रोक व्यावहारिक नहीं। भट्ठियों पर जो शराब बनती है उसमें उतनी सावधानी नहीं बरती जाती, लिहाजा शराब के जहरीला होने की सम्भावना अधिक रहती है। पूर्ण शराबबंदी कानून की समीक्षा की जानी चाहिए। कम से कम यह तो सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि लोगों की जहरीली शराब से मौतें न हों। कानूनों के बावजूद अपराधों पर कोई अंकुश नहीं लगा है तो फिर पूर्ण शराबबंदी कैसे लागू हो सकती है। इस समय एक बार फिर से जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है और दोषियों को दंडित करने की भी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का रुख सख्त है। फिर भी उन्होंने छठ महापर्व के बाद शराबबंदी की समीक्षा करने का फैसला किया है। ऐसी शराबबंदी का भी क्या औचित्य जिससे लोग बेमौत मारे जाएं।