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- शुचिता का सवाल
Written by जनसत्ता: नई आबकारी नीति के तहत शराब के ठेके देने में हुई कथित अनियमितताओं का मामला अब भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच मूंछ की लड़ाई में तब्दील हो गया है। उपराज्यपाल ने इस पर अपनी तरफ से कार्रवाई की, तो सीबीआइ ने भी छापेमारी कर तथ्य इकट्ठा करने का प्रयास किया। मगर इसके समांतर भाजपा और आम आदमी पार्टी दिनोंदिन नए-नए पैंतरे बदल कर एक-दूसरे पर वार करने का प्रयास कर रही हैं।
कुछ दिन पहले आम आदमी पार्टी ने सीधे उपराज्यपाल पर निशाना साधते हुए कहा कि जब वे खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष थे, तब नोटबंदी के दौरान उन्होंने चौदह सौ करोड़ रुपए की गड़बड़ी की थी। अब इस पर उपराज्यपाल ने आम आदमी पार्टी के पांच नेताओं को नोटिस भेज कर जवाब तलब किया है। यह मामला चल ही रहा था कि आम आदमी पार्टी ने दावा किया कि शराब घोटाले की जांच के लिए गठित सीबीआइ टीम में एक अधिकारी ने इसलिए खुदकुशी कर ली कि उस पर गलत तरीके से काम करने का दबाव बनाया जा रहा था। यह दावा खुद उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने किया था। इस पर सीबीआइ ने स्पष्ट किया है कि खुदकुशी करने वाले अधिकारी का शराब घोटाला जांच से कोई संबंध नहीं था। इस तरह आम आदमी पार्टी के दावे कमजोर होते दिखने लगे हैं।
अब भाजपा एक खुफिया तरीके से बनाया गया वीडियो लेकर आई है, जिसमें शराब घोटाले के एक आरोपी के पिता से बातचीत की गई है, जिसमें उन्होंने माना है कि आम आदमी पार्टी ने उन लोगों को भी शराब के ठेके दे दिए, जो पहले से काली सूची में थे। शराब के नए ठेके में दुकानदार करोड़ों रुपए सीधे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को पहुंचाते थे। उस वीडियो को आम आदमी पार्टी फर्जी बता रही है। उसका कहना है कि इस तरह किसी को भी पकड़ कर बातचीत करके मनचाही बातें उगलवा लेना और फिर दावा करना कि वह सच है, एक मजाक से अधिक कुछ नहीं है।
वीडियो की जांच होनी चाहिए। इस पर स्वाभाविक ही कुछ लोग पूछ रहे हैं कि जो सरकार पहले खुद कहती थी कि अगर कोई अधिकारी घूस मांगता या भ्रष्टाचार करता पाया जाता है, तो उसका वीडियो या बातचीत रिकार्ड करके भेजो, तुरंत कार्रवाई होगी। अब वही सरकार अपने खिलाफ सबूत के तौर पर आए वीडियो को कैसे नकार रही है। हालांकि आम आदमी पार्टी शुरू से कहती आ रही है कि उसे काम न करने देने के इरादे से केंद्र के इशारे पर ये सब कार्रवाइयां हो रही हैं। फिर वह इसे गुजरात विधानसभा चुनाव से भी जोड़ कर देखती है।
हैरानी की बात नहीं कि जब ऐसे घोटाले उजागर होते हैं, तो सरकारें अपने बचाव में उसे राजनीतिक रंग देकर सारा दोष विपक्षी दल पर मढ़ने का प्रयास करती हैं। मगर सवाल है कि इस मामले को इतने लंबे समय तक खींचा क्यों जा रहा है। शराब घोटाले से जुड़े मामले की जांच पहले खुद मुख्य सचिव के स्तर पर हो चुकी है। सीबीआइ भी तथ्य खंगाल चुकी है। अब प्रवर्तन निदेशालय इसके तथ्य खंगाल रहा है। अगर वास्तव में अनियमितताएं हुई हैं, तो जल्दी से जल्दी नतीजे पर पहुंचना चाहिए। देर तक इसे खींचते रहने से बेवजह राजनीतिक दंगल चलता रहेगा और आम लोगों के मन में धुंध बनी रहेगी। अगर जांच में लगता है कि घोटाला हुआ है और उसके दोषियों की पहचान जाहिर है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई में देर क्यों होनी चाहिए।