सम्पादकीय

राष्ट्रीय हित का सवाल

Rani Sahu
31 July 2023 7:03 PM GMT
राष्ट्रीय हित का सवाल
x
आजकल मुझे न जाने क्या हो गया है। साँस भी भरता हूँ तो लगता है कि राष्ट्र हित में ले रहा हूँ। जब से मुझ में राष्ट्र हित के लक्षण नजऱ आने लगे हैं, किसी काम से सरकारी विभागों में जाने पर लौटते समय उसके भवन में कोई कोना देख कर खैनी या पान की पिचकारी अवश्य मारता हूँ। इसके अलावा सडक़ पर जब भी मौक़ा मिलता है, किसी दीवार की आड़ लेकर उसे गीला कर देता हूँ। पर प्लीज़ आप इसके लिए मुझे गाली न दें। मैं प्रैस वार्ता से भागने और संसद के भीतर मणिपुर साम्प्रदायिक हिंसा और बलात्कार पीडि़तों की नग्न परेड पर बयान देने से बचने वाले भारतीय प्रधानमंत्री की तरह कायर नहीं हूँ। विपक्ष भले संसद में न आने पर प्रधानमंत्री को भगौड़ा घोषित कर चुका हो, पर वह मेरी तरह राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखने वाले एक अरब से अधिक उन लोगों से पंगा लेने की हिम्मत नहीं कर सकता जो उसका भी वोट बैंक है। प्रधानमंत्री भले की तरह मेरे जैसे तमाम राष्ट्र हितधारक कभी अपना चरित्र कमज़ोर नहीं होने देते।
जहाँ भी और जिस जगह या दीवार पर मौक़ा मिलता है, थूक या मूत्र विसर्जन से नहीं चूकते। चाहे उस पर किसी देवता या नेता की तस्वीर बनी हो या ‘गधे के पूत यहाँ न मूत’ जैसे सार्वभौमिक वाक्य लिखे हों। मैं अपने बारे में दावे के साथ कह सकता हूँ कि मैं ये सारे काम सिर्फ राष्ट्र हित में करता हूँ और प्रधानमंत्री की तरह सहानुभूति बटोरने के लिए कभी यह दावा भी नहीं करता कि ‘एक अकेला सब पर भारी।’ मैं सिर्फ अपना भार हलका करने में विश्वास रखता हूँ। विसर्जन के ये सारे काम हमारे स्वच्छता अभियान की सफलता को दर्शाते हैं। मैंने आज भी नित्य कर्म से निवृति के लिए सुबह-सवेरे खड्ड पर जाना नहीं छोड़ा है। खुले में शौच के साथ नहाने का प्रबन्ध भी हो जाता है। पर आप इसके लिए शहर में सार्वजनिक सुविधाओं की कमी के लिए सरकार या स्थानीय प्रशासन को न कोसें। एक तो सार्वजनिक शौचालय इतने स्वच्छ होते हैं कि उन्हें गन्दा करने का मन नहीं करता। दूसरे, हर भारतीय की तरह राष्ट्र हित मेरी रगों में लहू बन कर दौड़ता है।
राष्ट्र हितधारकों की ताक़त और सफलता का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिला नाग़ा हर माह के अन्तिम रविवार रेडियो पर ‘मन की बात’ पेलने वाले विश्वविजयी प्रधानमंत्री आज तक मुझ जैसे राष्ट्र हितसेवियों के सार्वजनिक थूक और मूत्र विसर्जन पर इस कार्यक्रम में कुछ नहीं बोल पाए हैं। राष्ट्रीय हित में सत्ता संभालते ही डंकेश लोकतंत्र के मन्दिर की चौखट पर ऐसे दण्डवत् हुए थे, मानो उपकृत होने के बाद कोई पहुँचा हुआ शिष्य कृतज्ञतावश अपने गुरू के पाँव छूने के लिए झुक रहा हो। पर कई बार ऐसा पहुँचा हुआ शिष्य झुकने के दौरान अपने गुरू के पाँव के नीचे से उस दरी को खींच लेता है जिस पर गुरू खड़ा होता है। आज बेचारा लोकतंत्र का मन्दिर औंधा पड़ा है। राष्ट्र हित में दिन में अठारह-अठारह घंटे काम करने के साथ डंकेश ऐसा योग साधने में अपने आपको होम कर रहे हैं, जिससे वह चौबीस घंटे जागते हुए राष्ट्रहित साध सकें। पर उनकी प्रतिभा इतनी विलक्षण है कि पता नहीं चल पाता है कि वह सोते हुए जागते हैं कि जागते हुए सोते हैं। जऱा सोचिए जब दिन में राष्ट्रहति में उनके अठारह घंटे काम करने से देश विश्वगुरू बन चुका है तो चौबीस घंटे काम करने से देश किस गति से किस दिशा में अग्रसर होगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि सभी देशवासी गुजरात और मणिपुर मॉडल की अपार सफलता के बाद राष्ट्रहित में इन्हें अन्य राज्यों में लागू करने में अपना भरपूर योगदान देंगे। इससे राष्ट्रहित में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के सभ्य, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण समापन के लिए अनिवार्य लुच्चे और टुच्चेपन की परम्परा को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। इससे विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने से कहीं पहले हम विश्व गुरूघंटाल के आसन पर विराजमान होंगे।
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story