सम्पादकीय

सवाल स्वदेशी उद्यमिता का

Subhi
27 Jan 2022 3:20 AM GMT
सवाल स्वदेशी उद्यमिता का
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उद्यमिता एक ऐसा दृष्टिकोण है, जिसमें रोजगार के साथ सामाजिक-आर्थिक विकास और जीवन सम्मान का संदर्भ भी निहित है। आमतौर पर उद्यमिता का तात्पर्य किसी उद्यमी के उस क्रियाकलाप से लगाया जाता है |

उद्यमिता एक ऐसा दृष्टिकोण है, जिसमें रोजगार के साथ सामाजिक-आर्थिक विकास और जीवन सम्मान का संदर्भ भी निहित है। आमतौर पर उद्यमिता का तात्पर्य किसी उद्यमी के उस क्रियाकलाप से लगाया जाता है, जो जोखिम उठा कर लाभ कमाने के इरादे से कोई गतिविधि करता है। व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो स्वदेशी उद्यमिता सतत और समावेशी विकास के दायरे से बाहर नहीं है।

महात्मा गांधी ने औपनिवेशिक काल के दिनों में जो सपने बुने थे, उनमें ग्राम स्वराज और सर्वोदय के अलावा स्वदेशी भी था। स्वदेशी का सीधा सरोकार बिना स्वदेशी उद्यमिता से फलित नहीं हो सकता था। भारत गांवों का देश है। ऐसे में ग्राम उदय से भारत उदय की संकल्पना अतार्किक नहीं है। कृषि की दृष्टि से स्वदेशी उद्यमिता भी बहुतायत में है।

वर्ष 2013 से 2017 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर कृषि आधारित नवाचारी उद्योगों की संख्या तीन सौ छियासठ थी। इन उद्योगों को स्टार्टअप इंडिया, अटल इनोवेशन मिशन, न्यूजेन मिशन और उद्यमिता विकास केंद्र व लघु कृषक एग्री बिजनेस संघ जैसी योजनाओं सहयोग भी मिला था। आज कृषि से जुड़े नवाचारी उद्योगों की संख्या साढ़े चार सौ के पार निकल चुकी है। जाहिर है ये उद्योग कहीं न कहीं उद्यमिता को एक नया आयाम दे रहे हैं और कृषि उत्पादों को स्वदेशी विनिर्माण के साथ बड़ा बाजार भी प्रदान कर रहे हैं।

किसानों की आय बढ़ाने और युवाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए कृषि क्षेत्र के नवाचारी उद्योगों को प्रोत्साहित करने वाली सरकार की हालिया नीति भी कुछ इसी प्रकार का संदर्भ लिए हुए है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत नवाचार और कृषि उद्यमिता विकास कार्यक्रम को अपनाया गया है जिसमें एक सौ बारह कृषि उद्योगों को एक हजार एक सौ छियासी लाख रुपए देने की बात है। आजादी के बाद बहुत कुछ बदला है। उद्यमों के स्वरूप भी बदले हैं। नए-नए प्रयोग भी हुए हैं।

स्वदेशी उद्यमिता एक ऐसा विचार और व्यवहार है जो आर्थिक रूप से बहुत सशक्त तो नहीं, मगर देशीयकरण में बहुत उपजाऊ है। कोविड-19 के बुरे दौर में स्वदेशी उत्पाद और स्वदेशी उद्यम दोनों का फलक पर होना स्वाभाविक हो गया। गांव में डेरी उद्योग से लेकर तमाम कच्चे माल को परिष्कृत कर बाजार में उपलब्ध कराना और आत्मनिर्भर भारत की कसौटी पर खरे उतरने की परिकल्पना में कदमताल करना स्वदेशी उद्यमिता का ही परिचायक है।

विश्व बैंक ने वर्षों पहले कहा था कि यदि भारत की महिलाएं रोजगार और उद्यम के मामले में सक्रिय हो जाएं तो देश की जीडीपी में चार फीसद से ज्यादा की बढ़ोत्तरी तय है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि स्वदेशी उद्यम रोजगार को आसमान तो देते ही हैं, आत्मनिर्भरता को भी ऊंचाई देने में कामयाब हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने लोकल के लिए वोकल बनाने का जो नारा महामारी के दौर में दिया है, वह कहीं न कहीं स्वदेशी उद्यमिता की अवधारणा को और प्रखर करता है।


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