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- साख का सवाल
Written by जनसत्ता: पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह से देश की संस्थानों की गरिमा पर आंच आई है और उनकी साख पर सवालिया निशान लगे हैं, वैसे में उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से एक कठिन सवाल का जवाब जानने की इच्छा जताई कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का संविधान में जिक्र तो है, लेकिन प्रक्रिया का अभाव है। पिछले बहत्तर वर्षों में भी यह बनाना संभव नहीं हुआ। भारत एक लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश है।
यह विभिन्न जातियों और धर्मों वाला एक गुलदस्ता है, जिसकी खुशबू से पूरी दुनिया महकती है। यही भारत की ताकत भी है। ऐसी स्थिति को बनाए रखने में हमारी एजंसियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती थी, क्योंकि तब इसमें सांविधानिक स्वीकार्यता होती थी। मगर उच्चतम न्यायालय ने याद दिलाया है कि सन 2004 से किसी भी आयुक्त ने छह साल तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसी स्वतंत्र एजंसी के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी होती है। मगर अफसोस कि यहां की राजनीतिक व्यवस्था ने ऐसे जिम्मेदार पद को अपने स्वार्थ के लिए उपकृत करने का एक माध्यम बना दिया है। हाल ही में वीआरएस लेने के तुरंत बाद अरुण गोयल को केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करके यह साबित कर दिया। न्यायालय ने यह भी कहा कि संविधान ने मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों के नाजुक कंधों पर भारी शक्तियां रख दी गई हैं। अदालत ने मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में टीएन शेषन का जिक्र करते हुए कहा कि किस तरह से वे चुनाव व्यवस्था को साफ करने में कामयाब रहे। ऐसे भी अधिकारी देश में रहे हैं।
सबसे पहले देश में ऐसी व्यवस्था खत्म करने की आवश्यकता है कि सेवानिवृत्त होने के बाद उनको सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियां कहीं न कहीं पदासीन कर देती हैं। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं। आज देश की एजंसियां जिस तरह की दिशा में काम कर रही हैं, उससे संस्था की छवि धूमिल हुई है। तभी उन्हें अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है।
देश में बीते कुछ समय से ऐसे आरोप लगातार सामने आए हैं कि सत्ताधारी पार्टी ने अपने राजनीतिक हित को साधने के लिए इन संस्थाओं को प्रयोग किया है। इसकी वजह से देश में इन संस्थाओं की साख गिरी है। अदालत ने हाल ही में यह भी कहा कि चुनाव आयोग में नियुक्ति में ऐसी पारदर्शिता होनी चाहिए कि अगर किसी वजह से पीएम भी दोषी हैं तो उन पर भी कार्रवाई करने में आयोग के कदम नहीं डगमगाने चाहिए।
मगर यह तब संभव है जब पद पर मजबूत व्यक्ति बैठा हो। अब जब उच्चतम न्यायालय ने पहल की है तो इसे मजबूत बनाने की कोशिश होनी चाहिए, ताकि लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाया जा सके। इसके साथ-साथ देश के अन्य प्रमुख संस्थानों में भी नियुक्ति को पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। तभी एजंसियों को जो तोते की उपाधि मिली है ऐसे शब्दों से निजात मिल सकेगी और देश की जनता में एजंसियों के प्रति विश्वास पैदा हो सकेगी। ये एजंसियां ही देश को मजबूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।