सम्पादकीय

जवाबदेही का सवाल है

Triveni
21 Jun 2021 3:00 AM GMT
जवाबदेही का सवाल है
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लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत होता है- जवाबदेही। यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें किसी को निरंकुश नहीं होना चाहिए।

लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत होता है- जवाबदेही। यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें किसी को निरंकुश नहीं होना चाहिए। यानी सबकी किसी ना किसी के प्रति जवाबदेही होती है। इसलिए अगर किसी कानून का दुरुपयोग हो रहा हो या उसकी खामियां सामने आ रही हों, तो न्यायिक व्यवस्था को यह अवश्य बताना चाहिए कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। साथ ही उस दुरुपयोग या खामी की कीमत जिन्हें चुकानी पड़ी, उनके नुकसान की भरपाई कौन करेगा। चूंकि अपने देश में यह जवाबदेही नहीं निभाई जाती, इसलिए कहा जा सकता है कि भारतीय लोकतंत्र कभी अपनी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सका। पिछले कुछ सालों में तो यह जहां तक पहुंचा था, वहां से भी वापस लौटता दिखता है। बहरहाल, ये सारे सवाल एक ताजा न्यायिक फैसले से उठे हैँ। पिछले हफ्ते गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) के तहत लगे आरोप में नौ साल जेल में बिताने के बाद मोहम्मद इलियास और मोहम्मद इरफान नाम के दो व्यक्तियों को एक विशेष अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया।

अदालत ने कहा कि दोनों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। 33 साल के मोहम्मद इरफान और 38 साल के मोहम्मद इलियास को महाराष्ट्र पुलिस के आतंक विरोधी दस्ते (एटीएस) ने अगस्त 2012 में गिरफ्तार किया था। उनके अलावा दो और लोगों को गिरफ्तार किया गया था। पांचों के खिलाफ आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा से संबंध होने के आरोप लगाए गए थे। चूंकि मामला हथियार बरामद होने और राजनेताओं, पुलिस अफसरों और पत्रकारों की हत्या करने की योजना बनाने की एक साजिश का था, 2013 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने जांच अपने हाथों में ले ली थी। लेकिन एनआईए भी मोहम्मद इलियास और मोहम्मद इरफान के खिलाफ ऐसे सबूत नहीं जुटा पाई, जिनसे अदालत उन पर लगे आरोपों पर भरोसा कर सके। रिहाई के बाद मोहम्मद इरफान ने जो कहा- असल सवाल वही है। उन्होंने कहा- "बस, नौ साल, जो गए, सब हवा में।" किसी जिदंगी में नौ साल और उस दौरान झेली गई मानसिक और अन्य यांत्रणाओं का क्या महत्त्व होता है, इसे एक मानवीय व्यवस्था ही समझ सकती है। यहां गौरतलब है कि यूएपीए के दो चरण हैं। पहला चरण 2008 में मुंबई पर आतंकवादी हमलों के बाद का है, जब ये कानून बना था। दूसरा चरण नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से इसे दिए गए नए रूप का है। नए रूप में इस कानून को जो कहर टूटा है, वह और भी भयानक है।


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