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- चीन के मुकाबले चौकड़ी
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। एलएसी पर महीनों से दबाव बनाने और गाहे-बगाहे गीदड़ भभकी देने वाले चीन के खिलाफ एकजुटता की भारत की कोशिश तब रंग लायी जब अमेरिका व जापान के बाद आस्ट्रेलिया ने भी बंगाल की खाड़ी में होने वाले महत्वाकांक्षी नौसेना अभ्यास मालाबार अभियान में भाग लेने की सहमति दे दी। ऐसा उसने भारत के आग्रह पर किया है। अब तेरह साल बाद ये चारों देश समुद्र में चीन की आक्रामक नौसैनिक हरकतों के खिलाफ सख्त संदेश देने की स्थिति में होंगे। ये चारों देश सामरिक व अन्य आपसी सहयोग के लिये बनाये गये संगठन क्वाड समूह के भी सदस्य हैं। यह चीन के लिये साफ संकेत है कि भारत के साथ दुनिया के तमाम ताकतवर देश खड़े हैं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि चीन न केवल भौगोलिक सीमाओं में अपने पड़ोसियों पर नाजायज दबाव बनाता रहता है बल्कि समुद्री इलाकों में भी छोटे देशों की समुद्री सीमाओं का अतिक्रमण करता रहता है। बीते वर्षों में फिलीपीन्स की समुद्री सीमा के अतिक्रमण का मामला अंतर्राष्ट्रीय अदालत में गया था, जिसका फैसला फिलीपीन्स के पक्ष में आने पर चीन को मुंह की खानी पड़ी थी। चीन अब तक कई समुद्री द्वीपों पर नाजायज कब्जा कर चुका है। ऐसे में मालाबार युद्धाभ्यास में अमेरिका, भारत, जापान व आस्ट्रेलिया का एक साथ जुटना ड्रैगन के लिये साफ संदेश है कि उसकी निरंकुशता का करारा जवाब दिया जा सकता है। यही वजह है कि अमेरिका लगातार दक्षिण चीन सागर को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रूप में मान्यता देता रहा है। निस्संदेह भारत के इन सफल कूटनीतिक प्रयासों से भारतीय नौसेना को भी ताकत मिलेगी और इन विकसित देशों की नौसेना से बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा। बीते साल सितंबर में जापान के तट पर तीनों देशों में जोरदार युद्धाभ्यास हुआ था। नये कूटनीतिक प्रयासों के बाद लगता है कि भारत ने भी एलएसी पर पर्याप्त तैयारी के बाद अब समुद्र में भी चीन को घेरने के लिये कमर कस ली है। दरअसल, इस बहुचर्चित युद्धाभ्यास में आस्ट्रेलिया की भागीदारी को लेकर विमर्श इस माह के आरंभ में टोक्यो में क्वाड देशों के विदेश मंत्री स्तर की बैठक के बाद हुआ था। इस कदम के महत्व का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी नौसेना, आस्ट्रेलिया के रक्षा व विदेश मंत्रालय ने भी इस पहल का स्वागत किया है जो बदलते सामरिक समीकरणों के नजरिये से बेहद महत्वपूर्ण है। इन प्रयासों से नौसेना की जो साझी ताकत बनेगी, उसके खास मायने होंगे। साथ ही बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में युद्धाभ्यास के नये अनुभव हासिल होंगे जो समुद्री सुरक्षा के लिहाज से भारत की जरूरतों की पूर्ति करेंगे। यह साझा अभियान आस्ट्रेलिया के साथ भारत के रक्षा सहयोग बढ़ाने की दिशा में भी बड़ा कदम साबित हो सकता है। यही वजह है कि आस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री लिंडा रेनॉल्ड्स ने कहा है कि यह युद्धाभ्यास ऑस्ट्रेलिया के रक्षा बलों के लिये एक मील का पत्थर साबित होगा। दरअसल, भारत-अमेरिकी नौसैनिक अभ्यास की मालाबार शृंखला की शुरुआत वर्ष 1992 में हुई थी मगर इस अभ्यास का चीनी सामरिक रणनीति के जवाब के रूप में विस्तार वर्ष 2000 के बाद हुआ। जिसकी वजह चीन सागर व प्रशांत महासागर में चीन का निरंकुश व्यवहार रहा है। धीरे-धीरे इस अभ्यास में अपनी सामरिक जरूरतों की पूर्ति के लिये कुछ अन्य देश भी जुड़े। शुरुआती दौर में आस्ट्रेलिया भी इस साझे अभ्यास से जुड़ा लेकिन कालांतर किसी वजह से अलग हो गया। वर्ष 2015 में जापान भी समुद्री इलाकों में चीन की आक्रामकता का प्रतिकार करने के लिये इस मुहिम का हिस्सा बना। हाल के दिनों में आस्ट्रेलिया और चीन के बीच जारी तनातनी और आर्थिक द्वंद्व के बीच एक बार फिर आस्ट्रेलिया की मालाबार अभियान में भागीदारी शुरू हो रही है। दरअसल, बदलते हालात में यह युद्धाभ्यास रणनीतिक हितों के नजरिये से बेहद महत्वपूर्ण हो गया है जो क्षेत्र में शक्ति संतुलन के लिहाज से भी बहुत जरूरी है।