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कल्पना कीजिए कि आप बड़े कॉर्पोरेशन के सीनियर एग्जीक्यूटिव हैं
एन. रघुरामन का कॉलम:
कल्पना कीजिए कि आप बड़े कॉर्पोरेशन के सीनियर एग्जीक्यूटिव हैं। सोमवार की सुबह, बुरे ट्रैफिक से 30 मिनट जूझने के बाद आप ऑफिस आते हैं। ऑफिस रोज की तरह साफ-सुथरा है। तयशुदा जगह पर रखा गुलदस्ता महक से आपका गर्मजोशी से स्वागत कर रहा है। आप केबिन में अपना बैग रखते हैं, कुर्सी पर बैठकर एक गिलास पानी पीते हैं और काम पर ध्यान लगाते हैं। लेकिन फिर भी आप बेहतर गुणवत्ता का काम नहीं कर रहे हैं। चौंक गए? आगे पढ़िए।
मुंबई में 2005 से 2011 के बीच डीएनए अखबार के लिए काम करते हुए मेरी एक अजीब आदत थी कि मैं सोमवार को एक घंटे पहले ऑफिस पहुंच जाता था। वहां हाउसकीपिंग स्टाफ का हालचाल जानता था। इस दौरान मैं उन्हें ऐसे फूलों के नामों, खुशबू और खास मौसम में उनकी उपलब्धता के बारे में बताता था, जो आंखों को अच्छे लगते हैं और बहुत महंगे नहीं होते।
चूंकि हमारा ऑफिस लोअर परेल में था, जो कि दादर के होलसेल फूल बाजार से दो स्टेशन ही दूर है, इसलिए मैंने एक बार वहां से बड़े और नामचीन फूल वितरक को ऑफिस बुलाया। उन्होंने हाउसकीपिंग के प्रमुख को फूल सजाने के विभिन्न तरीके सिखाए। तब से सही फूल चुने जाने लगे, जो न सिर्फ आंखों को अच्छे लगते थे, बल्कि खुशबू से ऑफिस आने वाले हर व्यक्ति की पांचों इंद्रियों को प्रभावित करते थे।
मुझे यह बात हाल ही में तब याद आई, जब राजस्थान में एक प्रोजेक्ट के दौरान मेरा पेट गड़बड़ हो गया और मैंने कॉर्डिनेटर से डिनर में खिचड़ी खाने की बात कही। हालांकि प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर की खुद की सफल होटल थी लेकिन उन्होंने खासतौर पर घर में अपनी पत्नी से खिचड़ी बनवाई।
मैं दूसरे होटल के कमरे में खिचड़ी का इंतजार कर रहा था। मुझे लगा कि साथ में दही भी खाना चाहिए क्योंकि यह प्रोबायोटिक होता है, जिससे पेट की परेशानी हल हो सकती है। जब मेरे सहकर्मी ने होटल के मैनेजर को मेरे पेट की समस्या बताई तो उसने कहा, 'ओह, मैं बस पांच मिनट में ब्रांडेड ताजा दही लाता हूं।' उन्होंने मेरे सहकर्मी की हां या न का इंतजार नहीं किया और तुरंत गाड़ी लेकर निकल पड़ा। लेकिन उनके हाउसकीपिंग डिपार्टमेंट का व्यवहार इससे विपरीत था।
हाउसकीपिंग डिपार्टमेंट मेरा कमरा साफ नहीं कर पाया था क्योंकि मेरी तबीयत ठीक नहीं थी और मैं आराम कर रहा था। लेकिन जब मैंने शाम को कमरा साफ करने को कहा तो कर्मचारी बेमन से आया क्योंकि उसकी ड्यूटी का समय पूरा हो चुका था। वह दुखी था क्योंकि उसे और काम करने कहा जा रहा था। इसका असर उसके काम में भी दिखा, जिससे होटल की प्रतिष्ठा धूमिल हुई।
दरअसल, किसी भी काम में हम वही गुणवत्ता देते हैं, जो गुणवत्ता हमारे अंदर होती है। हमारी गुणवत्ता, हमारे काम की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। हमारे काम की गुणवत्ता इस पर निर्भर करती है कि हमारी गुणवत्ता या गुण कैसे हैं। हो सकता है कि आपके काम में मौजूद गुणवत्ता पर कई बार ज्यादा लोगों का ध्यान नहीं जाए, लेकिन मेरा यकीन मानिए, गुणवत्ता न होने पर, सभी का इसपर ध्यान जरूर जाता है।
गुणवत्ता का मतलब है उन क्षेत्रों में भी बेहतरीन काम करना, जिसपर दूसरे शायद ध्यान भी न दें। ध्यान रखें, एक फूल खुशबू के बिना भी फूल होता है। लेकिन खुशबू की मौजदूगी से ही बड़ा फर्क आता है।
फंडा यह है कि गुणवत्ता के प्रति सजगता लाना चाहते हैं तो खुद के लिए दूसरों की उम्मीद से भी कहीं ज्यादा ऊंचे मानक तय करें।
Gulabi
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