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- क्वाड की चुनौतियां
Written by जनसत्ता: तोक्यो में संपन्न हुई क्वाड शिखर बैठक में यूक्रेन युद्ध से लेकर हिंद प्रशांत क्षेत्र का मुद्दा छाया रहना बड़े देशों की मुश्किलों को बताने के लिए काफी है। सम्मेलन में अमेरिका सहित दूसरे सदस्य देशों के रुख से यह भी साफ हो गया कि सभी देश आने वाले वक्त में ऐसे आर्थिक और व्यापारिक गठजोड़ बनाने के पक्षधर हैं जो उन्हें बदलती वैश्विक व्यवस्था की चुनौतियों का सामना करने की ताकत दे सके।
इसीलिए अमेरिका की अगुआई में हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचे की नींव रख दी गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिका की इस कवायद का मकसद भी चीन की घेराबंदी ही है। वैसे भी क्वाड का गठन चीन से निपटने के लिए ही मुख्य रूप से हुआ है। शिखर बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खुले शब्दों में चीन को भले न ललकारा हो, पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और उसे एक स्वतंत्र व खुला क्षेत्र बनाने को लेकर जो कदम उठाए हैं, वे भविष्य की रणनीतियों का संकेत देते हैं। जाहिर है, आने वाले वक्त में अमेरिका चीन को सिर्फ सैन्य मोर्चों पर ही नहीं, व्यापार के मोर्चे पर भी पटखनी देने के रास्ते पर बढ़ रहा है। इसीलिए चीन ने प्रतिक्रिया देते हुए इसे अमेरिका की उकसाने वाली रणनीति करार देने में जरा देर नहीं लगाई।
क्वाड देशों का शिखर सम्मेलन ऐसे वक्त में हुआ है जब रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है। शिखर वार्ता में अमेरिकी राष्ट्रपति ने यूक्रेन पर हमले के लिए रूस को आड़े हाथों लिया। गौरतलब है कि इस मुद्दे पर चीन भी रूस के साथ है। हालांकि भारत ने यूक्रेन के मसले पर यहां भी अपना रुख साफ रखा और तटस्थता की नीति कायम रखते हुए कुछ भी कहने से परहेज किया।
भारत शुरू से ही शांति का पक्षधर रहा है और युद्ध विराम के प्रयासों की वकालत करता रहा है। भारत के इस रुख से अब क्वाड समूह के बाकी सदस्यों को भी यह स्पष्ट संदेश तो गया ही है कि यूक्रेन के मामले पर उसे दबाव में लेने के प्रयास व्यर्थ ही जाएंगे। जहां तक सवाल है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर, तो इसका सरोकार सीधे भारत से जुड़ा है। इसलिए क्वाड बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र और खुला बनाने के लिए भारत भी अमेरिका व दूसरे देशों के साथ खड़ा है।
क्वाड बैठक से अलग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मुलाकात भी भारत और अमेरिका के मजबूत होते रिश्तों को रेखांकित करती है। यूक्रेन के मसले पर भारत अमेरिकी गुट में भले शामिल न हो, फिर भी अमेरिका भारत को साथ लेकर चल रहा है तो इसका मतलब यही माना जाना चाहिए है कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में वह भारत की अहमियत समझ रहा है।
इसीलिए दोनों देशों ने भविष्य की प्रौद्योगिकियों पर भारत-अमेरिकी पहल की शुरुआत की, जिसमें क्वांटम कंप्यूटिंग, 5जी, 6जी, जैव तकनीक, अंतरिक्ष और सेमी कंडक्टर जैसे बड़े क्षेत्रों में मिल कर काम होना है। भारत ने भी रक्षा क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियों को न्योता दिया है। इसके अलावा जलवायु संकट, ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भी एक दूसरे का सहयोग करने की बात है। जाहिर है, अमेरिका और भारत एक दूसरे के लिए उपयोगी तो हैं ही, अपरिहार्य भी हैं। आतंकवाद के मसले पर भी क्वाड देश भारत के साथ खड़े हैं। पर हैरानी की बात यह है कि अमेरिका जैसा दोस्त हुए भी भारत के प्रति पाकिस्तान की आतंकी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है, न ही पाकिस्तान ने आज तक किसी भी वांछित आतंकी को भारत के हवाले किया।