सम्पादकीय

चीन को घेरता क्वाड : एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत के लिए दृढ़ प्रतिबद्धता वाले संगठन की जरूरत, आखिर क्यों ?

Neha Dani
7 Jun 2022 1:45 AM GMT
चीन को घेरता क्वाड : एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत के लिए दृढ़ प्रतिबद्धता वाले संगठन की जरूरत, आखिर क्यों ?
x
मोदी सरकार की नीति को व्यक्त करता है और टोक्यो शिखर सम्मेलन इसका ताजा सबूत है।'

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और ऑस्ट्रेलिया के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज की मोहक मुस्कान, व्यक्तिगत रिश्ते, लंबे संयुक्त बयान और नई पहल 24 मई को टोक्यो में आयोजित क्वाडसम्मेलन की एक बड़ी सफलता थी। दो वर्षों से भी कम समय में क्वाड नेताओं की यह चौथी बैठक थी, जो क्वाड और उसके विस्तृत एजेंडे का महत्व बताती है।

हाल ही में विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि मोदी सरकार के आठ साल के कार्यकाल की एक प्रमुख उपलब्धि क्वाड का गठन रही है। उन्होंने आगे कहा कि टोक्यो शिखर सम्मेलन अब तक का सबसे उपयोगी सम्मेलन रहा, जो क्वाड की यात्रा एवं इसके भावी विकास की संभावनाओं को रेखांकित करता है। शिखर सम्मेलन का संयुक्त बयान इस क्षेत्र के लिए ठोस लाभ हासिल करने के सदस्यों के इरादे और उनकी 'एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत के लिए दृढ़ प्रतिबद्धता' को रेखांकित करता है, जो समावेशी और लचीला है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि क्वाड 'अच्छाई की ताकत' है, जो लोकतांत्रिक शक्तियों को मजबूत करता है और वैक्सीन वितरण, जलवायु कार्रवाई, आपूर्ति शृंखला में लचीलापन और आपदा प्रतिक्रिया के लिए सहयोग बढ़ाता है। हालांकि संयुक्त बयान में चीन का नाम नहीं लिया गया, पर सदस्य देशों ने जिन मुद्दों पर विरोध दर्ज किया, वे चीन की ओर इशारा करते हैं। क्वाड नेताओं ने हिंद-प्रशांत में यथास्थिति को बदलने की किसी भी जबरन कोशिश, एकतरफा कार्रवाई, विवादित सुविधाओं का सैन्यीकरण, तटरक्षक जहाजों और समुद्री लड़ाकों के खतरनाक उपयोग और अन्य देशों के तटीय संसाधनों की दोहन संबंधी गतिविधियों को बाधित करने के प्रयासों का विरोध किया।
जाहिर है, क्वाड की नजर में चीन संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि सहित अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने वाले स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत के लिए मुख्य खतरा है। क्वाड नेताओं ने कहा कि वे स्वतंत्रता, कानून के शासन, लोकतांत्रिक मूल्यों, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांतों का पुरजोर समर्थन करते हैं, बिना किसी धमकी या बल प्रयोग के विवादों का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं और यथास्थिति और नौवहन की स्वतंत्रता को बदलने के किसी भी एकतरफा प्रयास का विरोध करते हैं।
ये सभी सिद्धांत हिंद-प्रशांत क्षेत्र और दुनिया की शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए आवश्यक हैं। पर क्या इनमें से अधिकांश सिद्धांतों का यूक्रेन में खुलेआम उल्लंघन नहीं हो रहा है? क्वाड के नेताओं की इस क्षेत्र और उससे बाहर इन सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए निर्णायक रूप से काम करने की प्रतिज्ञा पाखंडी लगती है, खासकर, जब वे संयुक्त बयान में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा भी नहीं करते, जिसने उसकी स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन किया है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के मुताबिक, आक्रमण के सौ दिन में रूस ने यूक्रेन के बीस फीसदी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। क्या अफगानिस्तान में स्वतंत्रता, कानून के शासन और लोकतांत्रिक मूल्यों के सिद्धांतों का पालन किया जा रहा है? क्वाड को नया जीवन देने का श्रेय पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जाता है, जिन्होंने 2017 में अपने पड़ोसियों के प्रति चीन की मुखर, आक्रामक और डराने वाली नीतियों पर लगाम लगाने के लिए एक समूह के रूप में इसे सक्रिय किया था।
ट्रंप प्रशासन ने दक्षिण चीन सागर में और अधिक अमेरिकी बल तैनात किए और नौवहन के स्वतंत्र संचालन को बढ़ाया। ट्रंप ने ही भारत के महत्व को रेखांकित करते हुए एशिया-प्रशांत की जगह इसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र नाम दिया। क्वाड और हिंद-प्रशांत को मजबूत करने के लिए राष्ट्रपति बाइडन के प्रयासों के पीछे हिंद-प्रशांत और आसियान में अमेरिका की नेतृत्वकारी भूमिका को फिर से हासिल करने का उनका संकल्प है, जिस पर ट्रंप के ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) से हटने के बादसवाल उठ रहा था।
इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करना भी है। क्वाड नेताओं ने आसियान एकता के लिए अपने अटूट समर्थन और हिंद-प्रशांत की केंद्रीयता पर जोर दिया है। लेकिन क्या केवल बयान ही काफी हैं? भले ही बाइडन ने इस सवाल का जवाब 'हां' में दिया कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया, तो क्या अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप करेगा, लेकिन उनके प्रशासन ने दोहराया कि अमेरिका की सामरिक नीति अब भी पहले जैसी ही है। यह चीन पर अमेरिकी दबाव बनाने की सीमा को दर्शाता है।
केवल बड़ी-बड़ी घोषणाओं से चीन के प्रभाव का मुकाबला नहीं किया जा सकता। यह नहीं भूलना चाहिए कि आसियान के प्रत्येक सदस्य देश का चीन बड़ा व्यापार साझीदार है। क्वाड के सदस्य देश कहते हैं कि क्वाड और हिंद-प्रशांत चीन के खिलाफ नहीं है, पर चीन और रूस जोर देकर कहते हैं कि ऐसा ही है। ट्रंप के शुल्क युद्ध ने चीनी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया था। उस पृष्ठभूमि में देखें, तो पिछले दो वर्षों की गतिविधियों से क्वाड ने चीन को झकझोर दिया है।
शुरू में चीन ने क्वाड का मजाक उड़ाया था, पर अब वह क्वाड को अमेरिकी वर्चस्व बनाए रखने के लिए चीन को घेरने का मंच बता रहा है। भारत ने इस झिझक पर काबू पा लिया है, कि उसे अमेरिका का करीबी माना जाएगा। गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ ने क्वाड के प्रति भारत की झिझक दूर कर दी है। यूक्रेन पर रूसी हमले ने भी विश्व व्यवस्था को झकझोरा और ध्रुवीकृत कर दिया। अमेरिका, यूरोपीय संघ एवं उनके सहयोगियों के दबाव के बावजूद भारत राष्ट्रहित में रूस के प्रति अपने स्वतंत्र रूख पर कायम रहा।
जाहिर है, भारतीय कूटनीति ने राष्ट्रीय हितों के लिए सभी नैतिक दुविधाएं पार कर ली है! विदेशमंत्री जयशंकर ने इसे संक्षेप में इस तरह कहा कि 'दुनिया को एक परिवार मानने के बावजूद क्वाड भारत के हित को अपनी सोच के केंद्र में रखने की मोदी सरकार की नीति को व्यक्त करता है और टोक्यो शिखर सम्मेलन इसका ताजा सबूत है।'

सोर्स: अमर उजाला

Next Story