सम्पादकीय

क्‍वाड की रणनीति

Neha Dani
14 Feb 2022 1:50 AM GMT
क्‍वाड की रणनीति
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यह बैठक चीन के लिए इस बात का भी संदेश है कि भारत, जापान या आस्टेÑलिया अब अकेले नहीं रह गए हैं। सब मिल कर उसकी चुनौतियों से निपटेंगे।

मेलबर्न में पिछले हफ्ते क्वाड समूह के देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में चीन को लेकर जो चिंताएं उभरी हैं, वे कोई बेवजह नहीं हैं। क्वाड के सदस्य देश अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत सभी चीन की बढ़ती विस्तारवादी गतिविधियों से चिंतित हैं। पिछले एक दशक में दक्षिण एशिया प्रशांत क्षेत्र और खासतौर से दक्षिण चीन सागर में चीन की सैन्य गतिविधियां आक्रामक ढंग से बढ़ी हैं। इससे सभी देशों के लिए चुनौती तो बढ़ ही रही है, साथ ही क्षेत्रीय शांति भी खतरे में पड़ती जा रही है।

इस लिहाज से मेलबर्न में क्वाड विदेश मंत्रियों के संवाद का महत्त्व और बढ़ जाता है। इस बैठक की बड़ी उपलब्धि यह रही है कि चारों देशों ने हिंद प्रशांत क्षेत्र के दूसरे देशों को भी साथ लेकर काम करने का संकल्प किया। ऐसा इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन से निपटना किसी एक देश के बूते की बात है नहीं। इसलिए चीन से निपटने के लिए कई देश एकजुट हो रहे हैं। क्वाड के गठन के पीछे असल मकसद भी चीन की घेरेबंदी करना ही था।
इसमें कोई दो राय नहीं कि एशिया प्रशांत क्षेत्र वैश्विक महाशक्तियों की जोर-आजमाइश का नया केंद्र बन गया है। यह भी कि इसके पीछे सबसे बड़ी वजह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर जैसे समुद्रों पर आधिपत्य कायम करने की बड़े और ताकतवर देशों की महत्त्वाकांक्षा है। सामरिक दृष्टि से भारत के लिए हिंद महासागर की खास अहमियत है। इसी तरह आस्ट्रेलिया और जापान के लिए प्रशांत महासागर का अपना महत्त्व है। दक्षिण चीन सागर भी इसी हिस्से में पड़ता है। इन दोनों महासागरों से गुजरने वाले जलमार्ग से वैश्विक व्यापार का तीस फीसद से ज्यादा व्यापार होता है।
ऐसे में चीन क्यों नहीं चाहेगा कि यहां उसकी ही सत्ता चले। इसीलिए वह वर्षों से दक्षिण चीन सागर में अपने सैन्य ताकत बढ़ाने में लगा है। यहां के जलमार्गों से गुजरने वाले जहाजों के लिए उसने ऐसे समुद्री यात्रा कानून थोप दिए हैं जो दूसरे देशों को नागवार गुजर रहे हैं। जबकि कायदे से दुनिया के सभी जलमार्गों के लिए संधियां संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत बनी हैं, पर चीन यहां किसी की नहीं सुन रहा। इससे टकराव और बढ़ रहा है। इसलिए क्वाड देशों की बैठक में यह सहमति बनी है कि इन महासागरों को चीन से बचाना है।
जहां तक सवाल है भारत का, तो क्वाड देशों में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। इस चौगुटे के सदस्य देश भलीभांति समझ रहे हैं कि बिना भारत को साथ लिए चीन से मुकाबला कर पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। वैसे भी भारत हर तरह से आस्टेÑलिया, अमेरिका और जापान का साथ देता आया है। इस बैठक में आतंकवाद का भी मुद्दा उठा।
भारत के लिए बड़ा हासिल यह रहा कि बैठक के बाद जारी साझा बयान में चारों देशों ने मुंबई हमले के गुनाहगारों को न्याय के कठघरे में लाने, सीमापार आंतकवाद और पकिस्तान में चल रहे आतंकी नेटवर्कों को खत्म करने का संकल्प दोहराया। गौरतलब है कि भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों से ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। क्वाड के सदस्य भारत के इस संकट को महसूस भी कर रहे हैं। हालांकि इस बैठक को लेकर चीन की बौखलाहट भी सामने आ गई। यह बैठक चीन के लिए इस बात का भी संदेश है कि भारत, जापान या आस्टेÑलिया अब अकेले नहीं रह गए हैं। सब मिल कर उसकी चुनौतियों से निपटेंगे।

सोर्स: जनसत्ता

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