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इसी सप्ताह टोननेर और फ्रिगेट नाम के दो फ्रांसीसी जहाज ‘ला पेरोज’ संयुक्त अभ्यास में हिस्सा लेने के लिए जब कोच्चि बंदरगाह पहुंचे तो
विवेक ओझा। इसी सप्ताह टोननेर और फ्रिगेट नाम के दो फ्रांसीसी जहाज 'ला पेरोज' संयुक्त अभ्यास में हिस्सा लेने के लिए जब कोच्चि बंदरगाह पहुंचे तो भारत और फ्रांस की सामरिक साङोदारी की महत्ता का पता लगा। इन जहाजों ने बंगाल की खाड़ी में फ्रांसीसी नौसेना के नेतृत्व में होने वाले संयुक्त अभ्यास में भी हिस्सा लिया। वर्ष 2018 में फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस संदर्भ में अपनी इंडो पैसिफिक रणनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की थी और इस क्षेत्र की सुरक्षा, स्थिरता और विकास को विश्व शांति व समृद्धि के लिए आवश्यक माना था। भारत और फ्रांस की नौसेनाओं ने पिछले वर्ष हिंद महासागर के रीयूनियन द्वीप में संयुक्त पेट्रोलिंग की थी। यह द्वीप हिंद महासागर में फ्रांस के नियंत्रण वाला विदेशी क्षेत्र है। यह मेडागास्कर और मॉरीशस से निकट भी है।
फ्रांस हिंद महासागर में एक मजबूत नौसैनिक शक्ति है जिसके अड्डे अबू धाबी, जिबूती, मायोट और रियूनियन द्वीप में हंै और इसके साथ ही दक्षिणी प्रशांत महासागर में फ्रेंच पोलिनेशिया और न्यू कैलेडोनिया में भी इसके नौ सैनिक अड्डे हैं। इसी साल फ्रांस इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन का 23वां पूर्ण सदस्य देश बना है जिससे हिंद महासागर को चीन जैसे देशों के एकाधिकारवादी मानसिकता के दायरे से बाहर निकालने की फ्रांस की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इसके साथ ही अप्रैल के अंतिम सप्ताह में भारत और फ्रांस के बीच पश्चिमी हिंद महासागर में वरुण नौसैनिक अभ्यास को संपन्न किया जाना है। इससे जाहिर होता है कि फ्रांस भारत और मिलते विचारों वाले देशों के साथ मिलकर महासागरीय सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं। विभिन्न देशों के साथ नौसैनिक अभ्यासों को संपन्न करने के साथ ही भारत की मैरीटाइम डिप्लोमेसी तो मजबूत हो रही है, साथ ही भारत की ब्लू वॉटर नेवी बनने के लिए आवश्यक सामथ्र्य का भी विकास हो रहा है
अभी पिछले माह ही क्वाड के सदस्य देशों के नेताओं की पहली वर्चुअल मीटिंग हुई थी जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के शासनाध्यक्षों के बीच जिस मुद्दे पर सबसे प्रमुख रूप में बात हुई वह थी इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा और भारत का सागर विजन। इस बीच कोविड वैक्सीन को लेकर भारत और अन्य सदस्यों ने जिस तरह से सकारात्मक सोच को जाहिर किया उसने क्वाड को एक सकारात्मक और समावेशी सोच वाले फोरम के रूप में बनाए रखा, सदस्य देशों ने इसमें जलवायु परिवर्तन, सागरीय सुरक्षा, महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी सहयोग और आपूíत प्रणालियों पर चर्चा कर इसे चीन के प्रति संतुलन करने वाले ब्लॉक पर एक बहुआयामी महत्व वाले समूह के रूप में प्रस्तुत किया। ऑस्ट्रेलिया का कहना था कि 21वीं सदी हिंद-प्रशांत क्षेत्र की है जो दुनिया की तकदीर तय करेगी।
महासागरीय सहयोग : भारत ने हिंद महासागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जागरूकता, सतर्कता और परोक्ष चेतावनी के देने के मकसद से बड़ी शक्तियों के साथ मिलकर मालाबार और रिमपैक जैसे अभ्यासों को संपन्न किया है। अमेरिका के साथ युद्ध अभ्यास भी भारत विशेष मकसद से ही करता है। मालाबार संयुक्त अभ्यास के तर्ज पर भारत ने अंडमान सागर में सिंगापुर और थाइलैंड के साथ वार गेम्स भी संपन्न किया है। वहीं वियतनाम की नौसेना के साथ मिलकर दिसंबर 2020 में दक्षिण चीन सागर में भारत द्वारा पैसेज एक्सरसाइज भी महासागरीय सहयोग के नाम पर संपन्न किया गया। इन सब अभ्यासों से दो देशों की नौसेनाओं के मध्य पारस्परिक विश्वास और आपसी समझ बढ़ती है। आतंकवाद निरोधक क्षमता विकसित करने में मदद मिलती है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि महासागरीय संसाधनों के अनधिकृत दोहन की कुछ राष्ट्रों की प्रकृति का सामूहिक प्रतिकार करने का अवसर इससे मिलता है। वर्तमान समय में चीन की पश्चिमी हिंद महासागर के पॉलीमेटालिक अन्वेषण पर चीन की निगाह लगी हुई है।
चीन के बदले सुर : बंगाल की खाड़ी में हुए इस नौसैनिक अभ्यास के बाद चीन के सुर में थोड़ा बदलाव दिख रहा है। चीन का कहना है कि क्वाड की महाशक्तियों का यह अभ्यास क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने पर केंद्रित होना चाहिए, न कि प्रतिस्पर्धा के भाव से इसे बढ़ावा दिया जाए। हिंद महासागर क्षेत्र में हुआ यह नौसैनिक अभ्यास इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि बंगाल की खाड़ी क्षेत्र और बिमस्टेक दक्षिण व दक्षिण पूर्वी एशिया में क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिहाज से अहम क्षेत्र है। भारत के नौसैनिक जहाजों सतपुड़ा और किलतान ने भारत के पी-8 आइ लॉन्ग रेंज मैरिटाइम पैट्रोल एयरक्राफ्ट के साथ इस संयुक्त अभ्यास में भाग लिया। यह वही एयरक्राफ्ट है जो भारत को अमेरिका से मजबूत प्रतिरक्षा संबंधों के चलते मिला था। भारत ने कुछ समय पूर्व इस एयरक्राफ्ट को ओमान की खाड़ी में तैनात किया था जिसका मकसद समुद्री डकैतों की गतिविधियों पर निगाह रखना था। इसी बीच छह अप्रैल को भारत और वियतनाम ने वर्चुअल स्तर पर अपना दूसरा समुद्री सुरक्षा संवाद भी आयोजित कर यह संदेश दिया कि वे इंडो पैसिफिक की सुरक्षा के लिए बहुस्तरीय कार्य में संलग्न हैं। वियतनाम पहला दक्षिण पूर्वी एशियाई देश है जिसने एपेक संगठन में भारत की सदस्यता को एशिया प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और विकास के दृष्टिकोण से आवश्यक मानते हुए भारत की सदस्यता का समर्थन वर्ष 2000 से ही किया है।
समुद्री रास्ते से संकीर्ण मलक्का जलडमरूमध्य तक अपनी आपूíतयों के लिए चीन अंडमान सागर को एक 'चोक प्वाइंट' के रूप में देखता है। इसलिए अंडमान सागर में अंतरराष्ट्रीय नियमों को चीन बर्दाश्त नहीं कर पाता। चीन दक्षिण एशिया के राष्ट्रों श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर अपने लिए वैकल्पिक समुद्री और स्थल आधारित आपूíत मार्ग के निर्माण की मंशा रखता है और इसके लिए सक्रिय भी है। इसके साथ ही मध्य पूर्व से चीन तक ऊर्जा आपूíत में मलक्का स्ट्रेट की भूमिका किसी से छुपी नहीं है। यही कारण है कि चीन की ईरान से भी दोस्ती लगातार बढ़ रही है। दोनों ने अभी 25 वर्षीय सहयोग समझौते पर भी हस्ताक्षर किया है। इंडो पैसिफिक क्षेत्र में पूर्वी अफ्रीकी देश भी आते हैं जहां चीन अपनी आíथक कूटनीतिक पहुंच को बढ़ाने के प्रयास में है। इस लिहाज से भी हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा का प्रश्न संवेदनशील है। अभी तक अमेरिका की रुचि तेल पर नियंत्रण रखने की थी, पर अब अमेरिका तेल का बड़ा उत्पादक बन गया है। इससे मध्यपूर्व पर ऊर्जा के लिए उसकी निर्भरता कम हुई है। वहीं, चीन के लिए तेल का मुख्य जरिया मध्यपूर्व ही है। इस लिहाज से चीन की हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती रुचि पर लगाम लगाना राष्ट्रों के लिए जरूरी हो गया है।
क्वाड की परिकल्पना वर्ष 2004 में सुनामी के बाद सामने आई थी। उस वर्ष भारत ने अपनी नौसैनिक क्षमता दिखाते हुए सिद्ध किया था कि वह ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान न केवल तमिलनाडु और अंडमान निकोबार द्वीपसमूह को सुरक्षा दे सकता है, बल्कि अपने पड़ोसियों मालदीव, श्रीलंका और इंडोनेशिया को भी सहायता दे सकता है। भारत के 32 जहाजों और करीब 5,500 कार्मिकों ने हिंद महासागर की सुनामी के समय अपनी मानवतावादी सहायता पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराई थी। इसके बाद जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने 'आर्क ऑफ प्रोस्पेरिटी एंड फ्रीडम' और दो महासागरों के संगम (कांफ्लूएंस ऑफ टू सीज) की धारणा के जरिये हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के संगम को इस क्षेत्र के राष्ट्रों के लिए साङो हित के रूप में प्रस्तुत किया था जिसने क्वाड को एक नया आकार देने की कोशिश की थी। दिसंबर 2006 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी जापान के 'आर्क ऑफ प्रोस्पेरिटी एंड फ्रीडम' की धारणा का समर्थन किया था। वर्ष 2007 में मालाबार संयुक्त सैन्य अभ्यास के आयोजन के साथ क्वाड की धारणा को एक नया आधार मिला। जब यह विशाखापत्तनम में आयोजित हुआ तो जापान, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर को भी इससे जोड़ा गया। जब ये सब हो रहा था और दो महासागरों के संगम की धारणा को जापान मजबूती देने में लगा था, तब चीन और रूस ने क्वॉड को एशियाई नाटो के रूप में प्रस्तुत कर इसके प्रति अपनी आशंकाएं प्रकट की थीं।
इस बीच उत्तर कोरिया के साथ 'सिक्स पार्टी' वार्ता में अमेरिका को चीन का सहयोग चाहिए था, पर उसने क्वाड के प्रति अपना रुझान उस दौर में हल्का कर दिया था और ऑस्ट्रेलिया ने भी स्वयं को संयुक्त अभ्यासों से बाहर रखा था। इसके बाद क्वॉड एक दशक के लिए प्रभावहीन हो गया, लेकिन एक बार फिर से इसे नई ऊर्जा 2017 में मिली। दरअसल डोकलाम विवाद और चीन की एशिया खासकर दक्षिण एशिया में बढ़ती विस्तारवादी नीति और डोकलाम मुद्दे पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तनातनी को देखते हुए इस विवाद के एक महीने बाद ही क्वाड के चारों देशों के नेता मनीला में इंडिया, ऑस्ट्रेलिया, जापान, यूएस वार्ता के लिए मिले और यहां से क्वाड की धारणा को अधिक मजबूती मिली। भारत ने हंिदू महासागर और प्रशांत महासागर में नौ गमन की स्वतंत्रता, महत्वपूर्ण वाणिज्यिक समुद्री मार्गो से अबाधित आवाजाही को एक नया वैश्विक आंदोलन बना दिया है जिसमें उसे अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया समेत आसियान, पूर्वी एशियाई और अफ्रीकी देशों का सहयोग मिला है।
यही कारण है कि 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की गई और वर्ष 2015 में दोनों देशों ने 'जापान भारत विजन 2025 विशेष सामरिक और वैश्विक साङोदारी' की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य हिंद प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति और समृद्धि के लिए काम करना है। हाल ही में कनाडा ने भी जापान के साथ मिलकर मुक्त और स्वतंत्र इंडो पैसिफिक क्षेत्र की आवश्यकता पर बल देते हुए अपनी इंडो पैसिफिक पॉलिसी बनाने का संकेत दिया है। ब्रिटेन ने भी इंडो पैसिफिक रणनीति में रुचि लेनी शुरू कर दी है। इस प्रकार चीन द्वारा वैश्विक विधियों के अतिक्रमण को रोकने के लिए यूरोप के कई देश लगातार इंडो पैसिफिक के मुद्दे पर लामबंद हो रहे हैं।
[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]
Gulabi
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