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- क्वाड का संदेश
लगभग 15 वर्षों की कोशिशों के बाद चार देशों भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान का 'क्वाड' समूह साकार हुआ है। चारों देशों के नेताओं ने पहली शिखर बैठक में हिस्सा लिया। महामारी कोरोना के चलते यह बैठक आनलाइन हुई। क्वाड समूह को शुुरू करने का लक्ष्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सामरिक सुरक्षा और व्यापारिक सुरक्षा को सुनिश्चित बनाना था। भारत चाहता है कि यह समूह संस्थागत स्वरूप हासिल करे। फिलहाल कोरोना वैक्सीन की बात की गई। बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया के लिए भारत एजैंडा वैक्सीन और जलवायु परिवर्तन बताया।
उन्होंने स्पष्ट किया है कि क्वाड देशों की भावना उन्हें भारत की प्राचीन अवधारणा 'वसुधैव कुटम्बकम' से मिलती-जुलती लगती है। इस समय क्वाड देशों का वैक्सीन इलिशियेटिव सबसे महत्वपूर्ण कदम है। चारों देशों ने लोगों की जानें बचाने और महामारी पर काबू पाने के लिए अपने वित्तीय संसाधनों, उत्पादन क्षमता सहित अन्य सुविधाओं के जरिये सहयोग की बात की है। इस बैठक में दो महत्वपूर्ण संदेश भी दिए गए। एक संदेश तो चीन के लिए दिया गया। इसे आप कड़ी चेतावनी भी कह सकते हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिंद सुगा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिन्द प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र और खुला रखने का संदेश दिया है। दरअसल इस बैठक से पहले ही चीन भांप गया था कि उसके दादागिरी वाले व्यवहार पर निशाना साधा जा सकता है। चीन ने बैठक से पहले ही कहा था कि देशों को आपस में मिलने के दौरान आपसी मुद्दों पर बातचीत करनी चाहिए न कि किसी थर्ड पार्टी को निशाना बनाना चाहिए। दरअसल क्वाड की बैठक से चीन परेशान हो उठा है।
चीन का पूर्वी चीन सागर में कभी जापान के साथ तो कभी फिलीपींस के साथ टकराव रहा है। नेविगेशन की स्वतंत्रता को बाधित किया जाता है। वहीं भारत का दृष्टिकोण हमेशा समावेशी और अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के अनुपालन का समर्थक रहा है। भारत चाहता है कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में किसी भी तरह के टकराव की स्थिति न रहे। चीन जिस तरह से अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघ करता रहा उससे अनेक देश प्रभावित हैं। आस्ट्रेलिया और जापान के साथ चीन के अपने झमेले हैं। अमेरिका के साथ कई वर्षों से कई मुद्दों पर टकराव चल रहा है। अमेरिका और चीन में ट्रेड-वार तो चल ही रहा है। आसियान देशों से भी भारत के काफी अच्छे रिश्ते हैं। आसियान देशों में भी चीन को लेकर नाराजगी है। छोटे-छोटे देश भी चीन से आतंकित रहते हैं।