सम्पादकीय

QUAD अमेरिकी कूटनीति में बहुत बड़े बदलाव का संकेत है, भारत के लिए भी हैं सुनहरे अवसर

Gulabi
24 Sep 2021 2:04 PM GMT
QUAD अमेरिकी कूटनीति में बहुत बड़े बदलाव का संकेत है, भारत के लिए भी हैं सुनहरे अवसर
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भारत के लिए भी हैं सुनहरे अवसर

विष्णु शंकर।

भारतीय समय के हिसाब से आज रात 11.30 बजे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) वाशिंगटन में QUAD ग्रुप के अपने तीन साथियों- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री, स्कॉट मॉरिसन की मेज़बानी करेंगे. QUAD के नेताओं की यह पहली आमने-सामने की मुलाक़ात है. इससे पहले इसी साल मार्च महीने में ये चारों नेता वर्चुअली QUAD के शिखर सम्मलेन के लिए मिले थे.
अमेरिकी विशेषज्ञों की राय में वाशिंग्टन में हो रही शिखर बैठक अमेरिकी विदेश नीति में एक बहुत बड़े बदलाव की तरफ इशारा करती है. राष्ट्रपति बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका अब यूरोप केंद्रित कूटनीति से हट कर अपने मौजूदा प्रतिद्वंदी चीन पर ध्यान दे रहा है. जो बाइडेन राष्ट्रसंघ में अपने भाषण में कह चुके हैं कि अब अमेरिका के लिए जंग हमेशा आखिरी विकल्प होगा, न कि पहला. और अमेरिका सभी विवादों को सुलझाने के लिए कूटनीति का ही सहारा लेगा.

पड़ोसियों के साथ चीन का व्यवहार साउथ चाइना सी में तनाव बढ़ा रहा है
चीन से अमेरिका की स्पर्धा अब इंडो पैसिफिक इलाके में हो रही है. चीन के लिए इंडो पैसिफिक इलाके पर नियंत्रण इसलिए ज़रूरी है क्योंकि उसकी तेल के साथ-साथ व्यापार की अन्य चीज़ों की आवाजाही मुख्यतः इंडो पैसिफिक क्षेत्र से ही होती है. परेशानी यह है कि चीन अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में किसी भी तरह की चुनौती बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है, भले ही ऐसी हरकतें अंतरराष्ट्रीय नियमों और क़ायदों के खिलाफ ही क्यों न जाती हों. इसीलिए South China Sea में अपने पड़ोसियों से उसका व्यवहार अब इन देशों को सतर्क कर रहा है. साथ ही वहां समुद्र की सीमा पर उन देशों के दावों को भी चीन खारिज करता है. ये सभी बातें धीरे-धीरे इस इलाके में तनाव बढ़ा रही हैं.

चीन पर अंकुश लगाने के साथ QUAD देशों के जिम्मे और भी काम हैं
चीन बरास्ता पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पूरे पाकिस्तान से होते हुए ग्वादर में अरब सागर और उसके बाद हिन्द महासागर में अपनी एंट्री चाहता है. इससे भारत के राष्ट्रीय हित गंभीर तरीके से प्रभावित होते हैं. अमेरिका का भी खरबों का व्यापार इण्डो पैसिफिक के रास्ते होता है, इसलिए उसके लिए भी इस इलाके को अपने दोस्तों के सहारे नियंत्रित करना उसकी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है.

हालांकि सभी मानते हैं कि QUAD ग्रुप का सबसे अहम गोल चीन पर अंकुश रखना है, लेकिन सिर्फ यही इसके चारों सदस्य देशों का अकेला लक्ष्य नहीं है. ये चारों जनतांत्रिक देश आपसी सहयोग से और बहुत कुछ हासिल करना चाहते हैं. इनमें प्रमुख हैं, ग़रीब मुल्कों के लिए करीब एक अरब कोरोना वायरस वैक्सीन उपलब्ध कराना, ताकि ये इस जानलेवा बीमारी का मुकाबला कर सकें. इस काम में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भारत का अहम रोल देखते हैं क्योंकि इस वैक्सीन का अधिकतर उत्पादन भारत में ही होगा.

साइबर हमलों से निपटने पर भी ध्यान देंगे QUAD देश
साथ ही 5G टेक्नोलॉजी के विकास में चारों सहयोग करना चाहते हैं, ताकि प्रतिस्पर्धा में चीन से आगे रहें. दुनिया के अलग-अलग कोनों में साइबर अटैक बढ़ते जा रहे हैं. इनमें से बहुतों का स्रोत चीन में पाया गया है, QUAD देश साइबर हमलों पर भी रोक लगाना चाहते हैं, लेकिन यह एक लगातार चलते रहने वाली ज़िम्मेदारी है, जिसमें चारों में घनिष्ठ आपसी सहयोग ज़रूरी होगा.

पिछले दो साल से सभी QUAD देश मालाबार नौसैनिक अभ्यास की मदद से आपस में मिल कर काम करने पर भी ध्यान दे रहे हैं, ताकि अगर ये कभी ज़रूरी हो जाए तो इन अभ्यासों का अनुभव काम आ सके. चारों देश आपस में इंटेलिजेंस एकत्र कर उसे शेयर करने पर भी ध्यान दे रहे हैं जो कभी भी सैनिक या आर्थिक कार्रवाई के दौरान काम आएगा.

सेमीकंडक्टर चिप्स पर बन सकती है नई रणनीति
कोरोनाकाल में सेमीकंडक्टर चिप्स की बड़ी कमी हो गयी है. इसकी दो वजहें हैं. एक तो यह कि कोरोनाकाल में इन चिप्स को बनाने के लिए आवश्यक कच्चे माल की सप्लाई रुक गई. दूसरा ये कि सेमीकंडक्टर चिप्स के सबसे बड़े उत्पादक, चीन ने इसे बेचने से इंकार कर दिया, जिसके चलते इसकी क़ीमत बेतहाशा बढ़ गयी. फिर सप्लाई में रुकावट के चलते मोबाइल्स से लेकर मोटर कार तक सभी में सेमीकंडक्टर चिप्स की कमी ने इन चीज़ों के उत्पादन में कमी कर दी. QUAD देश अब चाहते हैं कि वे आपस में सेमीकंडक्टर चिप्स के उत्पादन के लिए एक मज़बूत सप्लाई चेन स्थापित करें ताकि भविष्य में इसकी कमी न हो. इसमें भी भारत के लिए टेक्नोलॉजी सेक्टर में सुनहरा मौक़ा हो सकता है.

भारत जैसे विकासशील देश के लिए कार्बन उत्सर्जन का मुद्दा टेंशन दे सकता है
ख़ुशी की बात यह है कि कमोबेश इन सभी मुद्दों पर भारत और बाकी QUAD देशों की सोच लगभग एक जैसी है. इसलिए मिल कर काम करने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए. इनके साथ-साथ अमेरिका के नेतृत्व में QUAD देश कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने और स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन को भी प्राथमिकता देंगे ऐसी उम्मीद है. यह मुद्दा भारत के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है क्योंकि एक विकासशील देश जिसमें ग़रीबों की तादाद बहुत ज़्यादा है वहां विकास के लिए ऊर्जा के सभी स्रोतों की ज़रूरत है. इनमें से कई स्रोत ऊर्जा उत्पादन में ग्रीनहाउस गैस भी बनाते हैं जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है.

चीन की चुनौतियों का सामना एक साथ करेंगे QUAD देश
बाइडेन प्रशासन का कहना है कि वह जहां हो सकेगा, चीन से सहयोग करेगा, मसलन जलवायु परिवर्तन पर. जहां ज़रूरत हो वह चीन से कम्पीट करेगा, मिसाल के तौर पर नई टेक्नोलॉजी के विकास में. और जहां ज़रूरी हो जाए, वहां अमेरिका चीन को आड़े हाथों लेगा, जैसे तब जब चीन अपने पड़ोसियों पर काबिज़ होने की कोशिश करे.

एक छोटी सी समस्या यह है कि चीन ऐसी किसी भी ताकत का सहयोग नहीं करेगा जिसे वह अपने लिए खतरा मानता हो. QUAD को चीन ऐसी चुनौती मानता है जो उसे अपने लक्ष्य से दूर रखने की कोशिश कर रही है. चीन का सपना हर तरह से दुनिया का सबसे ताक़तवर देश बनना है. इसलिए चारों मित्र देशों को बहुत सोच समझकर कदम उठाने होंगे.
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