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पुतिन की पकड़ पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है
रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की लोकप्रियता तीन बातों पर निर्भर है. पहला, उन्होंने रूस को राजनीतिक स्थिरता प्रदान की. दूसरा, उन्होंने रूस को विकास के पथ पर अग्रसर किया. और तीसरा, उन्होंने विदेश नीति में रूस की स्वायत्तता बहाल की, जो पिछली अवधि के दौरान पश्चिमी प्रभाव में थी. लेनिन और स्टालिन के बाद, पुतिन रूस के सबसे लोकप्रिय नेता बन गये हैं. उन्होंने पिछले 23 वर्षों से बिना किसी बड़े विरोध के रूस पर शासन किया है. लेकिन, वैगनर विद्रोह ने रूस की स्थिरता और पुतिन की पकड़ पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है.
पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस की अर्थव्यवस्था पहले से ही दबाव में थी और अब क्रेमलिन के एक अंदरूनी शख्स ने विद्रोह कर दिया. और यह संघर्ष किसी बाहरी व्यक्ति ने नहीं, बल्कि पुतिन के विश्वासपात्र रहे प्रिगोझिन ने शुरू किया है. ऐसे में विशेषज्ञों ने रूस में पुतिन के प्रभाव पर असहज सवाल उठाना शुरू कर दिया है. रूसी आधिकारिक बयानों को देखा जाए, तो ऐसा प्रतीत होगा कि पुतिन ने वैगनर मिलिशिया के नेता येवगेनी प्रिगोझिन के साथ बातचीत करके संकट को अच्छी तरह से संभाल लिया है. लेकिन अगर हम सतह के नीचे देखें, तो हम पाते हैं कि एक नयी प्रक्रिया चल रही है. रूस में एक प्रतिद्वंद्वी शक्ति केंद्र उभर रहा है. एक ऐसी शक्ति, जिसे आसानी से दबाया नहीं जा सकता.
प्रिगोझिन के समर्थक अधिक रूढ़िवादी, असहिष्णु, और हिंसक हैं. उन्होंने बखमुत और सोलेडर की लड़ाई में निर्णायक भूमिका निभायी है. रूसी नागरिक उन पर भरोसा करते हैं और उन्हें पश्चिम के एजेंट के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता है. प्रिगोझिन को बेलारूस में निर्वासित कर दिया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उन लाखों लोगों का क्या होगा, जिन्होंने उनका समर्थन किया और जिन्हें अब लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है. प्रिगोझिन रूस में एक अति-राष्ट्रवादी गुट का प्रतिनिधित्व करते थे. अपने संदिग्ध अतीत के बावजूद, वह रूस में एक लोकप्रिय व्यक्ति बन गये. वैगनर सेना ने रूस-यूक्रेन युद्ध में बड़े जोर-शोर से लड़ाई की.
सर्वेक्षणों में, प्रिगोझिन रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु से भी अधिक लोकप्रिय निकले. बड़ी संख्या में लोगों का मानना है कि रूस के रक्षा मंत्रालय ने संकट को गलत तरीके से संभाला है. उन्हें रूसी सेनाओं की मौत और हताहतों पर रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं है. इस तरह का अविश्वास पहले नहीं था. लोगों का मानना था कि पुतिन ने रूस को एक नई दिशा दी है. लेकिन अब वह भ्रम टूटता नजर आ रहा है. रूसी नागरिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं. वे नहीं जानते कि यह युद्ध कब तक चलेगा. उन्हें यह भी नहीं पता कि रूस युद्ध में सफल होगा या नहीं. पश्चिम से रूस का आर्थिक अलगाव कम से कम एक दशक तक बना रहेगा. रूसी कुलीन वर्ग और मध्यम वर्ग चिंतित है कि पश्चिम से आर्थिक अलगाव से उनकी आय, रोजगार, शिक्षा और जीवनशैली प्रभावित होगी.
उन्हें इस बात की भी चिंता है कि अलगाव के कारण रूस को चीन और भारत जैसे देशों के साथ समझौता करना होगा और रियायतें देनी होंगी. यह लोगों के लिए परेशानी वाली स्थिति है. यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध के दौरान लोग इन मुद्दों को उठाना नहीं चाहते, लेकिन ये चिंताएं वहां के लोगों में व्यापक रूप से व्याप्त हैं. जब प्रिगोझिन ने युद्ध के मकसद पर सवाल उठाया, तो क्रेमलिन की ओर से कोई ईमानदार जवाब नहीं मिला. युद्ध में मरने वालों और हताहतों की संख्या के बारे में भी लोग निश्चित नहीं हैं. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि एक लाख से ज्यादा सैनिक मारे गये हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रूस में यह सबसे बड़ी त्रासदी है. रूस इस तरह की क्षति के लिए तैयार नहीं था. इस विद्रोह का सीधा असर यूक्रेन में चल रहे युद्ध पर पड़ेगा. जब लड़ने वाली ताकतों द्वारा युद्ध के उद्देश्यों पर सवाल उठाया जाता है, तो सैनिकों की प्रतिबद्धता भी सवालों के घेरे में आ जाती है.
यह पूछा जाने लगता है कि सैनिक अपना जीवन क्या शासक वर्ग के उन लोगों के लिए बलिदान कर रहे हैं जो सत्ता में बने रहना चाहते हैं और अपने विशेषाधिकारों की रक्षा के लिए एक-दूसरे से लड़ना चाहते हैं. सैनिक अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित करते हैं, शासक वर्ग के लिए नहीं. इसके अलावा, वैगनर सेनानियों की अनुपस्थिति, सेना में हिंसक तत्व को कुंद कर देगी. भविष्य में होने वाली बातचीत के दौरान रूस कमजोर स्थिति में होगा. पश्चिमी देश पुतिन के शासन के खिलाफ वैगनर बलों का उपयोग करेगा. दूसरी ओर, रूसी सेना में दरार से यूक्रेनी सेना का हौसला बढ़ेगा.
उनके जवाबी हमले को एक नई गति मिलेगी और वे इसे अपने संघर्ष को तेज करने के लिए एक सही अवसर के रूप में उपयोग करेंगे. यूक्रेन का जवाबी हमला सफल नहीं हो रहा था और उसकी वैधता पर सवाल उठने शुरू हो गये थे. लेकिन, अब पश्चिम अधिक हथियारों से यूक्रेन का समर्थन करेगा और इसलिए युद्ध के और खिंचने की संभावना है . यह ध्यान रखना चाहिए कि रूस एक परमाणु राष्ट्र है और वह किसी भी अपमान को हल्के में स्वीकार नहीं करेगा. यह दुनिया के लिए एक खतरनाक स्थिति है.
इस घटनाक्रम का भारत के साथ रूस के संबंधों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रभाव पड़ेगा. रूस उस तरह से अस्त्र-शस्त्रों की आपूर्ति करने की स्थिति में नहीं होगा जैसा वह पहले करता था. वह भारत को लगातार रियायती मूल्य पर तेल की आपूर्ति नहीं कर सकता. चीन पर रूस की निर्भरता कई गुना बढ़ जाएगी और यह भारत के लिए अनुकूल स्थिति नहीं है. यह भी संभव है कि पुतिन जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत आने से बचें. यह सब, भारत-रूस संबंधों के लिए अच्छा संकेत नहीं है. ऐसे हालात में, भारत को रूस में स्थिरता लाने में सक्रियता दिखानी चाहिए. पुतिन अभी भी रूस में लोकप्रिय हैं, लेकिन उनकी छवि धूमिल की गयी है. प्रिगोझिन को दरकिनार कर दिया गया है और निकट भविष्य में उनके रूस वापस आने की संभावना नहीं है. लेकिन, एक नई रूढ़िवादी और अनुदार ताकत लोकप्रियता हासिल कर रही है. यह भी डर है कि पुतिन का शासन इन ताकतों को नियंत्रित करने के लिए और अधिक दमनकारी हो सकता है. यह रूसी लोगों और दुनिया के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
CREDIT NEWS: prabhatkhabar
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Triveni
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